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मजेदार कविता : लेकिन गुस्सा भी आता है

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

, मंगलवार, 3 दिसंबर 2024 (14:40 IST)
खड़ी हुई दर्पण के सम्मुख,
लगी बहुत मैं सीधी सादी।
पता नहीं क्यों अम्मा मुझको,
कहती शैतानों की दादी।
 
मैं तो बिलकुल भोली भाली,
सबकी बात मानती हूं मैं।
पर झूठे आरोप लगें तो,
घूंसा तभी तानती हूं मैं।
फिर गुस्सा भी आ जाता है,
कोई अगर छीने आज़ादी।
 
नील गगन में उड़ना चाहूं,
जल में मछली बनकर तैरूं।
पकड़ू ठंडी हवा सुबह की,
हाथ पीठ पर उसके फेरूं।
पर शैतानों की दादी कह,
अम्मा ने क्यों आफत ढादी।
 
अपनी-अपनी इच्छाएं सब,
सदा रोप मुझ हैं देते।
मेरी भी तो कुछ चाहत है,
टोह कभी इसकी न लेते।
बस जी बस, दादाजी ही हैं,
जो कहते मुझको शाहजादी।
 
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)
 

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