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बाल कविता : दीपू का घोड़ा

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

कितना तेज दौड़ता-फिरता, यह दीपू का घोड़ा है, 
उड़ता जाता गिरता-पड़ता, यह दीपू का घोड़ा है। 
 
आटा लाता सब्जी लाता, दूध दही घी लाता है, 
वही एक है करता-धरता, यह दीपू का घोड़ा है।
 
आज लंच लेगा दिल्ली में, डिनर करेगा चेन्नई में, 
पहुंच रहा तेजी से उड़ता, यह दीपू का घोड़ा है। 
 
आसमान में गधे उड़ रहे, उल्लू भी डेरा डाले, 
बांहें चढ़ाकर उनसे लड़ता, यह दीपू का घोड़ा है।
 
कुत्ते कभी भौंकने लगते, सियार कभी चिल्लाते हैं,
एकसाथ दोनों से लड़ता, यह दीपू का घोड़ा है। 
 
सच्चाई रग-रग में है, ईमान कभी ना छोड़ा है, 
सूरज जैसा तेज दमकता, यह दीपू का घोड़ा है।
 
चोरी भ्रष्टाचार मिटे यह, बीड़ा अभी उठाया है,
कटा सियार कुत्तों का पत्ता, यह दीपू का घोड़ा है। 
 
चिल्लाने वाले चिल्लाते, खूब मचाया हो-हल्ला,
नहीं रोक पाए हैं रास्ता, यह दीपू का घोड़ा है।
 
हाथ बढ़ाकर निर्बल कमजोरों की, सेवा करता है,
दुखियों के हर दिन दुःख हरता, यह दीपू का घोड़ा है। 

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