गुन-गुन धूप तोड़ लाती हैं,
सूरज से मिलकर आती हैं,
कितनी प्यारी लगे पतंगें,
अंबर में चकरी खाती हैं।
ऊपर को चढ़ती जाती हैं,
फर-फर फिर नीचे आती हैं,
सर्र-सर्र करती-करती फिर,
नीलगगन से बतियाती हैं।
डोरी के संग इठलाती हैं,
ऊपर जाकर मुस्काती हैं,
जैसे अंगुली करे इशारे,
इधर-उधर उड़ती जाती हैं।
कभी काटती, कट जाती हैं,
आवारा उड़ती जाती हैं,
बिना सहारे हो जाने पर,
कटी पतंगें कहलाती हैं।
तेज हवा से फट जाती हैं,
बंद हवा में गिर जाती हैं,
उठना-गिरना जीवन का क्रम,