बड़ा हो गया फिर भी
रेल की सीटी बजते
मन डोल-डोल जाता
रेलगाड़ी देखना
अपनापन-सा लगता
देख उसे
मन ही मन मुस्कुराता
रेलगाड़ी के चलाने वाले भैया
बड़े ही नसीबवान होते
बिना टिकट ही
वन-उपवन
गांव-नगर घूम-घूम आते
ऊपर से वेतन भी पाते
नहीं होती चाह सबकी पूरी
पर उनको देख
मैं बहुत खुश हो जाता हूं।