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हिन्दी कविता : सूरज

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- डॉ. प्रत्यूष गुलेरी
 

 
 
जल देता है, गर्मी देता
दुनिया से कुछ कभी न लेता।
 
समता का है पाठ पढ़ाए,
घर-घर में उजियारा लाए।
 
जीव-जंतु भी इस पर निर्भर,
सागर, नदियां, कुएं, निर्झर।
 
जग का तम है दूर मिटाता,
बदरा में जा झट छुप जाता।
 
जब निकले घर चमके मेरा,
सूरज करता नया सवेरा।
साभार- देवपुत्र

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