- बद्रीप्रसाद वर्मा 'अनजान'
बधाई हो, बधाई हो, बधाई हो, सभी को बधाई हो गर्मी की। हमारी ओर से ढेर सारी बधाई हो।
अरे, सुबह-सुबह कौन बधाई देने आ गया। पंखा नींद में आंखें खोलते पूछ पड़ा।
अरे ओ पंखे, हमें पहचाना नहीं, मैं कूलर बोल रहा हूं तुम्हारा दोस्त।
कूलर भाई, तुम्हें कैसे पता चल गया कि गर्मी आ गई, अभी तो सर्दी पड़ रही है। तुमने मुझे नाहक नींद से जगा दिया।
हमें यह खबर सूरज की धूप आज आकर दे गई। तुम देख नहीं रहे हो। बाहर कितनी तेज धूप खिली है। हमें धूप ने बताया कि मैं आ रही हूं तथा सर्दी दादी पहाड़ों के ऊपर चली गई है।
वाह सर्दी दादी पहाड़ पर चली गई है, तब तो सचमुच गर्मी आ गई। 6 महीने से सोते-सोते मैं तो ऊब गया हूं। अब तो हमारी सबको जरूरत पड़ेगी। पंखा बोल पड़ा।
तुम्हारी भी पड़ेगी और हमारी भी पड़ेगी। कूलर बोल पड़ा।
तभी घर के एक कोने में खड़ी एसी बोल पड़ी, अरे ओ पंखे और कूलर भाई। तुम दोनों आपस में क्या बातें कर रहे हो, हमें भी बताओ ना।
बधाई हो, बधाई हो, तुम्हें भी एसी बहन बधाई हो। गर्मी आ गई। सर्दी पहाड़ पर चली गई। वाह, गर्मी आ गई। मजा आ गया। मैं भी 6 महीने से बैठी-बैठी ऊब गई थी। कोई मुझे पूछ भी नहीं रहा था। अब तो सबको हम सबकी जरूरत पड़ेगी। हमारी हर जगह इज्जत और सम्मान बढ़ेगा।
तभी घर के कोने में पड़ा फ्रिज सबके बीच आकर बोल पड़ा- गर्मी के आ जाने से हमारी खूब आव-भगत होगी। हमारी भी इज्जत और सम्मान बढ़ जाएगा। हमारी मांग बढ़ेगी।
इसी बात पर चलो हम सब 'गर्मी जिंदाबाद' का नारा लगाएं।
फ्रिज बोल पड़ा, मैं कहूंगा गर्मी तो तुम कहना जिंदाबाद! जिंदाबाद!!
गर्मी! जिंदाबाद! जिंदाबाद!! गर्मी! जिंदाबाद! जिंदाबाद!! गर्मी! जिंदाबाद! जिंदाबाद!!
'जिंदाबाद' की आवाज सुनकर घर की मालकिन दौड़ी-दौड़ी वहां आ पहुंची, जहां पर कूलर, पंखा, एसी और फ्रिज हाथ उठा-उठाकर 'गर्मी जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे।
घर की मालकिन सबको डांटकर चुप कराती हुई बोली कि तुम सबने बहुत लगा लिया 'गर्मी जिंदाबाद' का नारा। अब कोई 'गर्मी जिंदाबाद' का नारा नहीं लगाएगा। तुम सब अपनी-अपनी जगह पर चले जाओ।
मैं तुम सबको चालू कर देती हूं ताकि तुम सब हमें गर्मी से राहत दे सको। इतना कहकर घर की मालकिन ने सबका बटन गिराकर सबको चालू कर दिया।
पंखा, कूलर व फ्रिज, एसी चालू होते ही सभी खिलखिलाकर हंस पड़े।
साभार- देवपुत्र