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बाल कहानी : धरती का इंद्रधनुष

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Flowers story
- नीलम राकेश, लखनऊ

इतवार का दिन था, पूरा घर अलसाया हुआ था। कॉल बेल की घंटी बजते ही मां ने दरवाजा खोला। सामने एक अनजान बच्चा खड़ा था।
'नमस्ते आंटी, मैं विपुल, शिवम का नया दोस्त, अभी एक हफ्ता पहले ही मेरा हूं दाखिला शिवम की क्लास में हुआ है।' हाथ जोड़कर विपुल बोला।
'आओ विपुल' कहते हुए मां ने पूरा दरवाजा खोल दिया।
विपुल को देखते ही शिवम चहका। 
'विपुल!!'
'मैंने कहा था ना, मैं आऊंगा। देख मैं आ गया।' विपुल ने नाटकीय अंदाज में अपने हाथ हिलाए।
उसकी अदा पर सबके चेहरे पर मुस्कान खिल उठी।
'सच में यार, तुम तो बहुत स्मार्ट निकले। मेरा तो अभी सवेरा हो रहा है।' शुभम ने दोनों हाथ फैलाकर अंगड़ाई ली।
'अब फटाफट उठो और मुझे अपने प्यारे दोस्तों से मिलवाओ।' विपुल ने हुक्म सुनाया।
'बंदा जरूर हुकूम बजाएगा। आपने अपना वादा निभाया, तो मैं भी अपना वादा निभाऊंगा।' खड़े होकर, आधा झुक कर, सलाम करने वाले अंदाज में शिवम बोला।
मम्मी पापा दोनों बच्चों की इस अदा पर खिलखिला उठे। 
मम्मी हंसते हुए बोलीं, 'अच्छा अब तुम दोनों मस्ती करो। मैं तुम दोनों के लिए गाजर का हलवा बनाती हूं।'
'नेकी और पूछ पूछ! आंटी मेरे मुंह में तो अभी से पानी आ रहा है। मुझे गाजर का हलवा बहुत पसंद है।' विपुल बोला।
'मेरा तो, ‘ऑल टाइम फेवरेट है।' शिवम ने आगे जोड़ा।
'अच्छा अब बातें मत बनाओ। पहले मेरी दोस्ती अपने दोस्तों से कराओ।' 
मां ने आश्चर्य से शिवम की ओर देखा।
'कुछ नहीं मां। हम दोनों ऊपर छत पर जा रहे हैं' कहते हुए शिवम, विपुल के साथ छूमंतर हो गया। 
'तेरे दोस्त छत पर हैं? फिर तू नीचे क्या कर रहा था?' सीढ़ी चढ़ते हुए विपुल ने पूछा।
'विपुल, तेरे अंदर ना, सब्र ही नहीं है। ऊपर तो पहुंच। सब समझ में आ जाएगा।'
'ओह हो! माइ गॉड!! इतना सुंदर बगीचा! शिवम तू सच मे बहुत भाग्यशाली है।' दोनों हाथ गाल पर रखे हुए विपुल चारों ओर खिले, फूलों की सुंदरता में खो सा गया।
'…………।' मौन शिवम अपने दोस्त की प्रतिक्रिया देखता रहा।
'छत पर, गमलों में इतना सुंदर बगीचा! मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था।' मुग्ध भाव से विपुल बोला। 
'ये मेरी सबसे प्रिय जगह है।' शिवम बोला।
'होगी ही। यह तो जगह ही ऐसी है। और तेरे दोस्त?' अचानक जैसे विपुल को याद आया।
'ये फूल ही मेरे सबसे प्यारे दोस्त हैं।' शिवम मुस्कुराया।
'अ.. मैं समझा नहीं।' आश्चर्य से विपुल, शिवम की ओर घूम गया।
'दोस्त, मैं बहुत छोटा था। शायद चार साल का रहा होऊंगा। एक दिन सुबह आकाश में मुझे बहुत सुंदर ढेर सारे रंगों की माला सी दिखाई दी। मैं खुशी से पागल हो गया। बाबा जी मेरे पास में थे मैं उन्हें दिखाने लगा। उन्होंने बताया कि इसका नाम इंद्रधनुष है۔'
"फिर क्या हुआ?' विपुल की उत्सुकता जग गई थी।
'फिर क्या, मुझे तो इंद्रधनुष चाहिए था। और मेरी बाल हठ शुरू हो गई। मैंने रो रोकर घर सिर पर उठा लिया।'
'वाह मेरे दोस्त।' विपुल हंसा।
'फिर बाबा जी ने मुझे गोद में उठाया और लेकर घर से थोड़ी दूर एक पार्क में गए। वहां पर उन्होंने मुझे बहुत सारे फूल दिखाएं और बताया, बेटा, ईश्वर ने बहुत सुंदर-सुंदर रंग बनाए। और उन रंगों को धरती पर इन फूलों के रूप में बिखरा दिया। और आकाश पर इंद्रधनुष के रूप में सजा दिया। अब तुम इन फूलों से दोस्ती कर लो। तब धरती का ये इंद्रधनुष तुम्हारे पास होगा। और बस, उसी दिन से इन फूलों से मेरी दोस्ती हो गई। ये मेरे इंद्रधनुष हैं। मेरे बाबा के आशीर्वाद के रूप में हमेशा मेरे साथ रहते हैं। और मुझे हमेशा खुशी देते हैं।' शिवम ने अपनी बात पूरी की।
'शिवम, तेरे ये प्यारे दोस्त, आज से मेरे भी पक्के साथी होंगे। मैं भी कुछ गमले ला कर इंद्रधनुष को अपने घर लाऊंगा।' 
'और फिर मैं तेरे घर, तेरे दोस्तों से मिलने आऊंगा।' चहक कर शिवम बोला।
और दोनों दोस्त धरती के इंद्रधनुष के सौंदर्य में खो गए।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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