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चटपटी बाल कहानी : नहीं नाक में कभी घुसेंगे

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Funny kids story 
 
ऐसे-ऐसे एक थी नाक। नाक बहुत मोटी और बड़ी थी। बड़ी और मोटी इसलिए थी क्योंकि नाक का मालिक बहुत मोटा और बड़ा था। नाक जब सोती तो विचित्र सी आवाज करती थी। कभी घुर्र-घुर्र करती तो कभी हुर्र-हुर्र। कभी-कभी तो फुर्र-फुर्र भी करने लगती। ऐसा लगता जैसे कोई चिड़िया उड़ रही हो। घुर्र-घुर्र या हुर्र-हुर्र करती यह नाक कभी-कभी तो कुछ क्षणों के लिए साइलेंट भी हो जाती, पिन ड्रॉप साइलेंट। पिन गिरती तो उसकी आवाज साफ-साफ सुनाई पड़ती थी। 
 
हालांकि यह नाक के मूड पर निर्भर था की कब साइलेंट होना है। लेकिन कोई पक्का नियम नहीं था। साइलेंट हो गई तो हो गई, नहीं तो घुर्र-घुर्र या हुर्र-हुर्र तो होना ही था। 
 
नाक में दो छेद थे। नाक बहुत बड़ी और मोटी थी जाहिर तौर पर छेद भी बहुत बड़े ही थे। छेदों में से सांस आती-जाती। कभी आती कभी जाती, कभी जाती कभी आती। लोग कहते थे सांस कभी रुकना नहीं चाहिए। सांस रुकी तो प्राणी भी रुक जाता है। सांस फिर नहीं चलती कितना भी चलाओ। लेकिन इसमें एक बात थी एक ही छेद से सांस आती-जाती। जब तक एक छेद सांस को चलाता था, दूसरा छेद चुपचाप पड़ा आराम करता रहता था। न किसी को भीतर जाने देता न ही किसी की भीतर से बाहर आने देता। 
 
जब एक छेद काम करते-करते थक जाता तो दूसरे छेद की डयूटी लगा देता। और दूसरा छेद सांस को चलाने लगता। सांस आती सांस जाती, सांस जाती सांस आती। अब पहला छेद आराम के मूड में आ जाता। और चुपचाप रेस्ट करता लेकिन दूसरे छेद की घुर्राहट सुनकर कुढ़ता रहता। 
 
'घुर्र-घुर्र कुछ कम करो जी।' वह चिल्लाता।
 
'क्या तुमने कम की थी अपनी घुर्र-घुर्र जो मैं करूं।' दूसरा छेद हंसकर बोलता।' फिर तुम तो घुर्र-घुर्र के घोड़े पर ऐसे सवार होकर दौड़ रहे थे कि तुम्हें मेरा अंतर्नाद सुनाई ही नहीं पड़ता था।'
 
पहला छेद बेचारा क्या कहता। गलती तो थी ही उसकी। जो गलती स्वयं कर उसे दूसरे को करने से कैसे रोक सकते हैं। 
 
वहीं एक चूहा रहता था। दुबला पतला सा, पतला दुबला सा। पेट पिचका, टांगें टिड्डे जैसी और मरियल सी पूंछ। वह नाक के घुर्राने की आवाज बड़े ध्यान से सुनता। कान लगाकर सुनता। कान दिए ही इसलिए गए हैं कि दूसरों की बातें ध्यान से सुने। 
 
'यह कैसी आवाज है' उसे विचित्र सा लगता। वह एक दिन उस पलंग पर चढ़ गया जहां नाक सो रही थी। सिरहाने पहुंचकर नाक के ऊपर झांकने लगा। तभी हुर्र-हुर्र की आवाज बड़े जोर से आई। चूहा डरकर नीचे भाग आया। चंचलमन चूहा थोड़ी देर में फिर चढ़ गया पलंग पर। देखने लगा बड़े ध्यान से नाक को। उसे वहां दो बड़े-बड़े छेद स्पष्ट दिख रहे थे। किसी अंधेरी गुफा के समान थे दोनों छेद। 
 
'इनके भीतर जाकर वहां का हाल जाना जाए।' वह सोचने लगा।
 
'नहीं-नहीं, अगर किसी ने भीतर पकड़ लिया तो, कहीं बिल्ली छुपी बैठी हो तो वह तो मुझे मार ही डालेगी।' 
 
वह बहुत देर तक सोचता रहा' भीतर जाऊं कि न जाऊं, अंधेरा भी तो बहुत है।' तभी मां की बात स्मरण हो आई-' बहादुर बच्चे डरते नहीं, जो सोच लिया उसे कर ही डालना चाहिए।' 
 
'क्या वह बहादुर नहीं है?' उसने अपने आप से पूंछा-' बहादुर! अरे वह तो महावीर है, परमप्रतापी एक अजेय योद्धा। एक बड़े देवता का वाहन भी तो है वह।' 
 
उसने अपना सिर झटक दिया और नाक के मुहाने तक जा पहुंचा। समुंदर, नदी और तालाब के मुहाने तो कई बार जा चुका था, लेकिन नाक के मुहाने तक जाना उसका प्रथम अनुभव था। नाक के दोनों छिद्रों का निरीक्षण किया और फिर एक छेद में जो हिमालय की वादियों सा शांत था प्रवेश कर गया। यह छिद्र जहां बिलकुल शांत था दूसरे छिद्र में घुर्र-घुर्र के गोले चल रहे थे। नाक के नीचे होठों पर बैठी मूंछों ने कुछ भय पैदा करना तो चाहा था लेकिन उसकी दृढ इच्छा शक्ति के आगे मूंछें भी नतमस्तक हो चुकीं थीं।
 
नाक की वह अंधेरी सी गुफा बड़ी मुलायम और गुदगुदी सी थी। उसे बहुत मजा आ रहा था। भीतर कोई चिपचिपा सा पदार्थ था तो, लेकिन उसकी ख़ुशी में रोड़ा नहीं बन रहा था। उसने डर को जीत लिया था। वह मस्ती में आ गया था। कभी अपनी पूंछ हिलाता तो कभी मूंछ। कभी बैठ जाता तो कभी शरीर उठा-उठाकर कसरत करने लगता। कभी आंखें फाड़कर आगे का रास्ता तलाशने लगता। लेकिन आगे का रास्ता अनजाना था इसलिए वह वापस आ गया। लेकिन फिर भीतर चला गया। भीतर बाहर का यह खेल उसे बिलकुल नया था। भीतर बाहर-बाहर भीतर, कितनी शानदार जगह है, यहां बिल्ली भी नहीं आ सकती। वह आनंद की हिलोरों में झूलने लगा। 
 
'अगर नाक जाग गई तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी।'  उसने खुद से ही प्रश्न किया। 
 
'अरे अभी नहीं जागेगी अभी तो बाजू वाले छेद में से बम के गोले निकल रहे हैं।'  
 
अपने ही जबाब से संतुष्ट होकर उसने चालीस पचास फेरे बाहर भीतर के लगा लिए। 
 
'क्या नाक के नीचे बैठी मूछों में से इसकी एक मूंछ उखाड़ लूं?, मजा आएगा।' उसने सोचा।' लेकिन अगर नाक उठ गई तो बहुत मारेगी।' उसने अपना विचार त्याग दिया। 
 
एक बार फिर हिम्मत बांधी और भीतर घुस के आगे बढ़ता गया। भीतर ही भीतर नाक के दूसरे छिद्र में पहुंच गया। 
 
'अरे बाप रे कहां आ गया, यहां तो घुर्र-घुर्र, हुर्र-हुर्र हो रही है। वापस भागूं जल्दी से लेकिन उफ, अब तो बहुत देर हो गई। वह बुरी तरह से डर गया। अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत। 
 
'हुर्रररररर..........' की बहुत तेज आवाज हुई और वह बंदूक की गोली की तरह बाहर फेक दिया गया और सामने दीवार से जा टकराया। फिर लद्द से नीचे जमीन पर आ गिरा। उसे लगा जैसे उसे किसी ने दीवार पर दे मारा हो। 
 
'उई माँ मर गया वह रोता चीखता अपने बिल की तरफ भागा। शायद उसकी टांग में चोट आई थी। 
 
उसे रोता हुआ देखकर उसकी मम्मी उसके पास दौड़ी आई। 
 
'क्या हुआ मेरे लाल को, क्या हुआ पुत्तर, यह क्या हाल बना रखा है। क्या बिल्ली ने मारा है। देखती हूं उस बिल्ली की बच्ची को। मेरे लाडले को जो भी छेड़ेगा उसे मैं छोडूंगी नहीं।' 
 
'नहीं मम्मी मुझे किसी ने नहीं मारा, नाक के उस छेद ने पटक दिया है और उसने मां को सारी बात बताई, कैसे वह नाक के एक छेद में घुसा और दूसरे छेद से बाहर फेक दिया गया। 
 
'अरे तू वहां क्यों गया था बेटा, नाक में घुसा था और वह भी आदमी की! वह तो बड़ी खतरनाक होती है। अरे बेटा वह कभी चढ़ जाती है, कभी कट जाती है, कभी ऊंची हो जाती है, कभी नीची हो जाती है और कभी-कभी तो फूल भी जाती है। मेरे प्यारे बेटे कभी-कभी तो वह चने तक चबवा देती है और कभी-कभी तो नाक की नाक में भी दम कर देते हैं लोग। अरे, और तो और यह कहीं भी घुस भी जाती है। अच्छा हुआ तू बचकर आ गया, अब कभी मत जाना नाक के आसपास भी। 
 
'जी मम्मी जी, अब कभी भूल से भी नहीं जाऊंगा नाक के पास।' उसने अपने दोनों कान पकड़ लिए। 
 
'क्या मैं अपने दोस्तों को बता दूं यह बात?' 
 
'हां-हां बिलकुल अपने सब मित्रों को बता दो, कोई भी आदमी की नाक में न घुसे। जब तक मैं हल्दी चूना लाती हूं, जहां-जहां तुझे चोट लगी है, वहां-वहां लगा दूंगी 
 
सब में खबर कर दी गई। बहुत सारे चूहे उसके बिल के पास एकत्रित हो गए। नाक पिटे चूहे ने अपनी दास्तान अपने मित्रों को बताई और वादा लिया कि आदमी की नाक में कभी न घुसें। 
 
हाथ ऊंचा करके उसने जोर से नारा लगाया-' नहीं घुसेंगे-नहीं घुसेंगे-नहीं नाक में कभी घुसेंगे।'  
 
सारे मित्रों भी दुहरा रहे हैं-' नहीं घुसेंगे-नहीं घुसेंगे-नहीं नाक में कभी घुसेंगे।'  
 
सब मस्ती में नाच रहे हैं, गा रहे हैं-नहीं घुसेंगे-नहीं घुसेंगे कभी .................।' जब से कोई भी चूहा आदमियों की नाक में नहीं घुसता। 
 
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