किसी नगर में एक पुरोहित था। वह लोगों की धरोहर वापस नहीं देता था। एक बार एक गरीब आदमी उसके घर धरोहर रखकर परदेश चला गया। वापस आने पर जब उसने धरोहर मांगी तो पुरोहित ने कहा- 'मेरे यहां तुम्हारी कोई धरोहर नहीं है'।
उस आदमी ने राजा के मंत्री से शिकायत की। मंत्री ने राजा से कहा। राजा ने पुरोहित को बुलाकर उसकी थैली लौटा देने को कहा, परंतु पुरोहित ने कहा- 'महाराज, वह आदमी मुझे बदनाम करता है, उसने मेरे यहां कोई थैली नहीं रखी।'
उधर राजा ने धरोहर रखने वाले से बातचीत की। उसकी बात सुनकर राजा को विश्वास हो गया कि इसमें पुरोहित की बेईमानी है।
एक दिन राजा ने पुरोहित को चौसर खेलने बुलाया। खेल-खेल में राजा ने उसकी अंगूठी अपनी अंगूठी से बदल दी और उसे चुपके से अपने आदमी को देकर पुरोहित की स्त्री के पास कहला भेजा कि पुरोहित जी ने वह थैली मांगी है।
अपने पति नाम की अंगूठी देखकर पुरोहित की स्त्री ने रुपयों की थैली निकालकर उसके हवाले कर दी। राजा ने उस थैली को अन्य थैलियों के बीच में रखकर उस आदमी को बुलाया और अपनी थैली उठा लेने को कहा। रुपयों की थैली जिसकी थी उसे मिल गई।
नोट : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि पैसे के लालच में कभी भी बेईमानी नहीं करनी चाहिए।