पहचानते है मुझे ? नहीं ?? अरे, मैं नन्ही चिड़िया गुनगुन। यहीं पास ही के पेड़ पर रहती हूं। रोज आती तो हूं तुम्हारे आंगन में दाना चुगने। वो नीम के पेड़ पर घोंसला है मेरा। ओह ! तुम कैसे पहचानोगे मुझे। रोज कई पंछी देखते हो तुम तो। कभी आंगन में, कभी पेड़ पर तो कभी आसमान में। हमारा घोंसला तो सिर्फ रात को सोने के लिए है।
घास-तिनके का बना घोंसला तो है मेरा। पर उसमें कोई सामान नहीं है। ना टीवी, ना अलमारी और ना ही खाने के डिब्बे। यही तो अंतर है हम पंछियों और इंसानों में। हम रोज का दाना-पानी रोज चुगते हैं। संग्रह नहीं करते। इसलिए पौ फटते ही घोंसला छोड़ देते हैं।
पूरा आसमान होता है हमारा घर। दाने-पानी की तलाश में कभी इस दिशा में, कभी उस दिशा में। और सांझ ढलते ही अपने घर।
प्रकृति ने हमें उड़ने के लिए दो पंख और खुला आसमान दिया है। पर इन दिनों आसमान में हमारी जान पर खतरा मंडराता रहता है। पता है कैसे ?
पतंग का नाम तो सुना ही होगा सबने। कुछ ने उड़ाई भी होगी। रंग-बिरंगी, कागज की बनी एक डोर के सहारे आसमान तक जाती है नन्हीं सी पतंग।
पतंग की तरह हर बच्चा सपना देखता है आसमान तक ऊंचा उड़ने का। नन्हा सा, प्यारा सा खिलौना है पतंग। उड़ाने वाला खुश, देखने वाला खुश, पेंच लड़ानेवाला खुश और लूटनेवाला तो सबसे खुश।
पर आजकल पतंग की डोर जिसे मांजा कहते है, वह हमारी मौत का कारण बन रहा है। मांजे को पक्का बनाने के लिए लोग उसे सरस, कांच के चूरे में लपेटते हैं। चीन से आनेवाला मांजा प्लास्टिक का और खतरनाक होता है। मांजे की पतली डोर आसमान में हमें दिखाई नहीं देती और उड़ान के बीच में आ जाती है। बस ! पल भर में ही गर्दन कटी और हम धरती पर !!
कितने ही पंछी हर साल मांजे से मौत का कारण बनते हैं। आपकी खुशी हमारी मौत ? यह तो सही नहीं... आप चाहें तो हमें बचा सकते हैं। पतंग उड़ाएं पर मांजा मौत का न हो ! प्लीज, बचा लो हमें।
पतंग खुशियों का आसमान छुए। इसलिए ध्यान रखें -
पतंग कागज की, छोटी, रंग-बिरंगी और खूबसूरत हो। अधिक भारी नहीं।
मांजा सूत का हो। कांच लगा, चीनी कंपनी का न हो।
पतंग खुले मैदान में उड़ाएं। घर की छत पर या सड़क पर नहीं।
ध्यान दें कि आसपास पक्षी न उड़ रहें हों।
बिजली के खंबों के पास भी पतंग न उड़ाएं।
धूप में अधिक देर तक पतंग न उड़ाएं।
बीच-बीच में नाश्ता-पानी करते रहें।
यदि कोई घायल पंछी दिखे तो तुरंत उसका उपचार करवाएं।