Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

एवेल्यूशन थ्योरी क्या है?

हमें फॉलो करें एवेल्यूशन थ्योरी क्या है?

अनिरुद्ध जोशी

क्या कभी कोई एवेल्यूशन थ्योरी पर सवाल उठाता है? स्कूल और कॉलेजों में अभी भी वही थ्योरी पढ़ाई जाती है जिस पर अब वर्तमान के वैज्ञानिकों को संदेह होने लगा है। क्या डार्विन के विकासवादी सिद्धांत में बुनियादी रूप से कई गड़बड़ियों को उजागर किया जा सकता है? डार्विन ने अपनी इस थ्‍योरी को 'द ओरिजिन ऑफ स्पीशीस' में विस्तार से लिखा है। हालांकि यह सोचने वाली बात है कि यह थ्योरी कितनी सही है। सोचो। जिस तरह ओल्ड टेस्टामेंट के सिद्धांत पर सवाल उठाए जा सकते हैं उसी तरह इस थ्योरी पर भी। हालांकि यह थ्योरी पूरी तरह से गलत भी नहीं है। आखिर क्या है यह थ्योरी?
एवलुशन थ्योरी के अनुसार साढ़े 3 अरब साल पहले बैक्टीरिया आए, बैक्टीरिया से अमीबा बना, अमीबा से छोटे पौधे-पेड़ आदि बने, फिर कीड़े-मकौड़े और जानवर बने। अब सोचीए अमीबा से कैसे पेड़-पौधे और फिर जानवर बन सकते हैं? आगे इस थ्‍योरी के अनुसार  600 लाख साल पहले पानी के वाम से मैमल्स (स्तनधारी) बने। इसी तरह मैमल्स के बाद पक्षी बने, मछली बने और रेप्टाइल्स बने रेप्टाइल्स अर्थात उभयचर प्राणी। उभयचर प्राणी अर्थात जो जल में भी रह सके और धरती पर भी, जैसे मेंठक, मगरमच्छ, सील आदि।
 
70 मिलियन साल पहले सबसे पहले प्राइमेट्स बने। प्राइमेट्स वे होते हैं, जो चूहे जैसे थे, जो फल खाते थे। 40 लाख साल पहले प्राइमेट्स से बंदर बने और 20 मिलियन साल पहले बंदर से एब बने और 8 मिलियन साल पहले एब से गोरिल्ला बने। 5 लाख साल पहले चिंपाजी बने और 4 लाख साल पहले चिंपाजियों ने धीरे-धीरे 2 पैरों पर खड़े होकर हाथ उठाकर चलना शुरू किया। 
 
एवेल्यूशन थ्योरी के हिसाब से 15 लाख से 3 लाख साल पहले होमो इरेक्टस नाम के प्राणी बने। होमो इरेक्टस मतलब ह्युमन बीइंग्स, इरेक्टस मतलब जिसकी पीठ सीधी थी, जो खड़े होकर चलते थे। 
 
4 लाख से 2.50 लाख साल पहले होमो सेपियंस बने। होमो सेपियंस का मतलब इंसान। 1 लाख साल पहले आज का आधुनिक इंसान एशिया और अफ्रीका में हुआ। एशिया और अफ्रीका से ये मानव धीरे-धीरे दुनिया में फैले। 40 से 35 हजार वर्ष पूर्व योरप में हुए फैले। 30 हजार वर्ष पूर्व अमेरिका में और 25 हजार वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलिया में बसे। 
 
डार्विन के अनुसार यह एक छोटा-सा चूहा इंसान बन गया जो हालात के हिसाब से खुद को भिन्न-भिन्न रूप में ढालता गया और अंत में इंसान बन गया। इसके लिए उन्होंने एक और थ्योरी दी जिंस रिकॉम्बिनेशन अर्थात चूहे का किसी अन्य प्राणी के साथ निषेचन होना, जैसे एक शेर और एक सिंह से मिलकर एक नया जानवर बना जिसे 'लाइगर' कहते हैं।
 
इसी तरह मछलियां मेंढक बन गईं। मेंढक उछलते बहुत थे, तो प्रकृति ने उसे क्रोकोडाइल बना दिया। सांप बना दिया, छिपकली बना दिया, ड्रेंगन बना दिया। इसी प्रक्रिया में प्रकृति ने डायनासौर बना दिया। 65 लाख साल पहले सारे डायनासौर अचानकर गायब हो गए। कैसे यह अभी भी सवाल खड़ा है। डार्विन कहते हैं कि ये सभी पक्षी डायनासौर से आए हैं। 
 
हालांकि डार्विन के आलोचक कहते हैं कि जीवन के हालात या प्राकृतिक परिवर्तन से हमारी त्वचा में बदलाव हो सकता है, जैसे कोई चाइनीज है, कोई अफ्रीकी, कोई योरपीय और कोई भारतीय। लेकिन क्या वातावरण का परिवर्तन किसी को एक अलग जीव बना सकता है? यदि मनुष्य जल में रहने लगे तो क्या वह कुछ सालों बाद मछली बन जाएगा? यह भी सोचने की बात है कि कैसे डार्विन ने सोचकर ऐसा सिद्धांत रच दिया और लोग इसे मानते भी हैं। ऐसा है तो बंदर अभी तक बंदर क्यों है?
 
चिंपाजी से मनुष्य बना तो फिर चिंपाजी तो अभी भी चिंपाजी ही है। यदि हम रिकॉम्बिनेशंस प्रोसेस की बात करेंगे तो किसी तरह एक शेरनी के पेट से चीता जन्म ले सकता है? यदि इस थ्योरी के अनुसार ही जीवन बना और परिवर्तित हो रहा है तो फिर पिछले कई हजार वर्षों से मनुष्य में बदलाव क्यों नहीं हुआ? गोरिल्ला अभी तक गोरिल्ला क्यों है। मछली अभी तक मछली क्यों है।
 
आधुनिक मनुष्य को तो और भी अलग तरह का हो जाना चाहिए था। आज धरती पर इंसान की चमड़ी का रंग अलग है लेकिन है तो इंसान, जबकि हजारों मिलियन तरह के कीड़े-मकौड़े हैं, कम से कम 3 लाख तरह के टिड्डे हैं, 3,800 तरह के तो मेंढक हैं और कम से कम 20,000 तरह की मछलियां हैं। मछलियों की भिन्न प्रजातियां जो आपस में संबंध नहीं बनाती। तो इंसान एक ही तरह का क्यों है? और चूहा अभी तक चूहा क्यूं है?

डार्विन के अनुसार- जीवन-संघर्ष में योग्यता की हमेशा जीत होती है और अयोग्यता हमेशा हारती है। प्रकृति स्वयं अपने लिए अनुकूल जीवों का चयन करती है। डार्विन ने इसे प्राकृतिक चयन कहा था। जीवन-संघर्ष में वातावरण के अनुकूल जीवों का जीवित रहना व प्रतिकूल जीवों का नष्ट होना ही प्राकृतिक चयन है। इसी प्राकृतिक चयन को हर्बर्ट स्पेंसर ने योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the fittest) नाम दिया था।
 
डार्विन ने अपने प्रयोगों से यह भी निष्कर्ष निकाला कि विकास के दौरान बड़े जानवर भोजन की कमी, जीवन और वातावरणीय संघर्ष में समाप्त होते गए तथा छोटे आकार के प्राणी अपने प्राकृतिक आवास, स्वभाव में परिवर्तन के कारण जीवन को सुचारु रूप से चला सके। 

डार्विन ने अपने प्रयोगों से यह भी निष्कर्ष निकाला कि विकास के दौरान बड़े जानवर भोजन की कमी, जीवन और वातावरणीय संघर्ष में समाप्त होते गए तथा छोटे आकार के प्राणी अपने प्राकृतिक आवास, स्वभाव में परिवर्तन के कारण जीवन को सुचारु रूप से चला सके। 
 
अब सवाल यह उठता है कि ऐसे कई अयोग्य जीव है जो अभी तक अस्तित्व में हैं, जिसका कारण उनके रहने का स्थान हो सकता है,  जहां का वातावरण जीवन के अनुकूल हो। हालांकि ऐसे भी कई योग्य और शक्तिाशाली जीव थे जो लुप्त हो गए। हो सकता है कि उन्हें प्रकृति ने चयन नहीं किया हो। अभी भी कई पक्षी और पशु लुप्त हो रहे हैं मानवीय गतिविधियों के चलते। सोचो इस थ्योरी के बारे में।

प्रस्तुति : अनिरुद्ध

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi