कई लोग समुद्र की लहरों की चपेट में आकर अपनी जिंदगी गवां बैठे हैं और कई लोग की जान जाते जाते बची है। मछुआरे, सैनिक और शोधकर्ता तो इन लहरों का सामना करना जानते हैं परंतु आम आदमी जब समुद्री तट पर जाता है तो वह शायद ही जान पाता है होगा कि समुद्र के कितने भीतर तक जाना चाहिए और कहां किस तरह की लहर आ सकती है।
ऐसे कई समुद्री तट हैं जहां पर लहरों का प्रकोप ज्यादा होता है और ऐसे में कई समुद्री तट है जहां पर लहरें कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाती है। जैसे द्वारिका क्षेत्र का समुद्र ज्यादा उछाल मारता है जबकि उड़िसा क्षेत्र का समुद्र नहीं। ऐसे समुद्री तट की पहचना जरूरी है। हवाओं की दिशा को भी जानकर लहरों का बर्ताव जाना जा सकता है।
समुद्री लहरों का रहस्य : समुद्र की लहरों को समुद्र विज्ञानी ही जानता है। समुद्र की लहरें 3 तरह से पैदा होती हैं। पहली समुद्र की सतह पर बहने वाली हवा, दूसरी चंद्रमा के कारण उत्पन्न हुआ ज्वार और तीसरी समुद्र के भीतर कहीं आया भूकंप।
1. हवा या तूफान से उत्पन्न लहरें भूमि के पास उथले पानी में पहुंचने पर मंद पड़ने लगती हैं फिर भी कभी-कभी इनकी ऊंचाई 30 से 50 मीटर तक हो सकती हैं। अधिक ऊंची लहरें अस्थिर हो जाती हैं और अंतत: सागर तट पर झाग के रूप में टूटती हैं।
2. 'सुनामी' नामक लहरें समुद्र तल पर आए भूकंप या भूस्खलन की वजह से उत्पन्न होती हैं और सागर के बाहर बमुश्किल ही दिखाई देती हैं, लेकिन किनारे पर पहुंचने पर ये लहरें प्रचंड और विनाशकारी रूप धारण कर लेती हैं।
3. चंद्रमा से उत्पन्न लहरें भी कभी-कभी विनाशकारी साबित होती हैं। चंद्रमा के कारण दैनिक रूप से 2 बार उत्पन्न होती हैं- सुबह और शाम। यह घटना चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर लगाए जाने वाला गुरुत्व बल के कारण घटित होती है। इसके बाद अमावस्या को समुद्र शांत रहता है जबकि पूर्णिमा को अशांत। अत: सुबह और शाम के अलावा पूर्णिमा के दिन समुद्री तट पर जाएं तो सावधान रहें।
4. जब समुद्री जल ऊपर आती है तो उसे ज्वार और जब नीचे आती है तो भाटा कहते हैं। चंद्रमा सूर्य से 2.6 लाख गुना छोटा है लेकिन सूर्य की तुलना में 380 गुना पृथ्वी के अधिक समीप है। फलतः चंद्रमा की ज्वार उत्पादन की क्षमता सूर्य की तुलना में 2.17 गुना अधिक है।
5. अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों में एक सीध में होते होते हैं। इन तिथियों में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के संयुक्त प्रभाव के कारण ज्वार की ऊंचाई सामान्य ज्वार से 20% अधिक होती है। इसे वृहद् ज्वार या उच्च ज्वार कहते हैं। इन दिनों में समुद्री तटों पर जाने से बचना चाहिए।