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वैदिक ज्योतिष से एकदम अलग है लाल किताब, कैसे जानिए...

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अनिरुद्ध जोशी

यदि आप किसी लाल किताब के विशेषज्ञ से अपनी कुंडली की जांच करवा रहे हैं तो आपको फिर वैदिक ज्योतिष के उपायों को नहीं करना चाहिए। दोनों की बाते मानकर आप दोनों ही तरह की विद्या के उपाय आजमा रहे हैं तो हो सकता है कि यह आपके लिए सही न हो। लेकिन यदि आप ज्योतिष हैं तो आप जातक को किसी एक विद्या के उपाय ही बताएं। लाल किताब में कहा गया है कि व्यक्ति को दोरंगी नहीं होना चाहिए। एकरंगी ही होना चाहिए।
 
 
*भारतीय वैदिक ज्योतिष और लाल किताब के सिद्धांतों में बहुत अंतर है। वैदिक ज्योतिष में जहां लग्न राशि का बहुत महत्व है जबकि लाल किताब के अनुसार लग्न राशि का कोई महत्व नहीं। लाल किताब के अनुसार लग्न हमेशा मेष ही होता है। मेष राशि ही लग्न है और वही खाना नंबर एक या पहला भाव है।
 
*लाल किताब का गणित भी अलग है। वैदिक ज्योतिष में जहां वर्ग कुंडली अर्थात नवांश, दशंमाश आदि के आधार पर फलादेश निकालने का नियम है वहीं लाल किताब में अंधी कुंडली, अंधराती कुंडली, नाबालिग कुंडली आदि तरह की कुंडली बनाकर ही भविष्य बताया जाता है।
 
 
*लाल किताब के दशा या महादशा 36 साला और 35 सला चक्कर को माना जाता है। दूसरा यह कि उसमें वर्षफल का महत्व है। लाल किताब में उपायों से अधिक महत्व सावधानी और सिद्धांत पर है।
 
*वैदिक ज्योतिष के उपाय सिद्धांत, गणित और ज्ञान पर आधारित है, जबकि लाल किताब का ज्ञान लोक प्रचलित अनुभवों पर आधारित सिद्धांत, सावधानी और उपायों का संग्रह है।
 
 
*वैदिक ज्योतिष में कुंडली के ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर ही फलकथन का प्रचलन है जबकि लाल किताब में सामुद्रिक शास्त्र और वास्तु शास्त्र का भी समावेश किया गया है। लाल किताब मूलत: हस्तरेखा पर आधारित किताब है।
 
*लाल किताब में प्रत्येक खाने को अलग ही तरह से परिभाषित किया गया है।
 
*लाल किताब में दृष्टि:
वैदिक ज्योतिष के सिद्धान्त में प्रत्येक ग्रह की सप्तम दृष्टि होती है। मान लो सुर्य तृतीय भाव में स्थित होकर नवम भाव में स्थित चंद्रमा को देख रहा है तो नवम भाव का चंद्रमा भी तृतीयस्थ सुर्य को सप्तम दृष्टि से देखेगा अर्थात सुर्य व चन्द्र दोनों ग्रहों की एक दूसरे पर दृष्टि होगी। परन्तु लाल किताब में एसा नहीं है। लाल किताब अनुसार सूर्य तो देख रहा है लेकिन चंद्रमा नहीं देखेगे। लाल किताब में परस्पर दृष्टि संबंध नहीं होता तथा ना ही भाव की विपरीत दृष्टि होती है। 
 
लाल किताब की एक भाव की दूसरे भाव पर दृष्टि के नियम भी अलग है। लाल किताब अनुसार दृष्टि भावों की होती है ग्रहों की नहीं। भाव विशेष में ग्रह के होने से ग्रह को भाव की दृष्टि मिलती है। उदाहरण के लिए प्रथम भाव सप्तम भाव को पुर्ण दृष्टि (100%) से देखता है, तो यदि कोई भी ग्रह लग्न भाव में आ जाए तो वह भी सप्तम भाव को पुर्ण दृष्टि से देखेगा। परन्तु उस ग्रह के अन्य भाव में जाने पर यह नियम लागू नहीं होगा। लाल किताब के आधार पर भाव की पुर्ण (100%), आधी (50%) एवं चौथाई (25%) दृष्‍टि होती है।
 
 
जिस घर पर ग्रह की दृष्टि हो वह घर पूर्णरूपेण प्रभावित रहता है। दृष्टि करने वाले ग्रह को "दृष्टा" कहते हैं। जिस ग्रह पर दृष्टि पड़े उसे "दृश्य" कहते हैं। हर ग्रह की सातवीं दृष्टि "पूर्ण दृष्टि" होती है। 'दृष्टा' गृह 'दृश्य' ग्रह पर अपना प्रभाव डालता है। परन्तु "दृश्य" ग्रह "दृष्टा" ग्रह पर कोई प्रभाव नहीं डालता। 2, 5, 8, 11 घरों में स्थित उच्च ग्रह अपनी राशि पर उच्च प्रभाव रखते हैं।
 
पहला घर सातवें पर पूर्ण दृष्टि डालेगा। चौथा घर दसवें पर पूर्ण दृष्टि डालेगा। तीसरा घर 9वें और 11वें घर पर अर्ध दृष्टि डालेगा। 5वां घर 9वें घर पर अर्ध दृष्टि डालेगा। दूसरा घर 9वें घर पर एक चौथाई दृष्टि डालेगा। पांचवां घर 12वें घर पर एक चौथाई दृष्टि डालेगा। नौवां घर दूसरे घर पर एक चौथाई दृष्टि डालेगा। 
 
*टकराव की दृष्टि:
लाल किताब अनुसार ग्रह एक दूसरे से छटे और आठवें ग्रह के फल को दूषित करता है तथा उसकी अशुभता एक सी होती है चाहे वो ग्रह मित्र हो या परम शत्रु। जैसे लग्न में चन्द्रमा स्थित है तथा अष्टम भाव में बृहस्पति है तो इस स्थिति में चन्द्रमा, बृहस्पति के फल को दूषित करेगा क्योंकि चन्द्र और बृहस्पति के मध्य टकराव की दृष्टि है। चन्द्र और बृहस्पति आपस में मित्रवत है, परन्तु इस दृष्टि के सिद्धान्त में इस मित्रता का कोई महत्व नहीं। यहां टकराव की दृष्टि वाला सिद्धान्त कार्य करेगा जिसका परिणाम अशुभ है।
 
अत: दृष्टि के इस सिद्धान्त में कोई भी ग्रह एक-दूसरे का नैसर्गिक शत्रु या मित्र नहीं है केवल दृष्टि सम्बन्ध ही उन ग्रहों में शत्रुता या मित्रता स्थापित करता है। 
 
*ग्रहों की मित्रता :
लाल किताब में नैसर्गिक ग्रहों की मित्रता एवं शत्रुता अस्थाई होती है, जबकि वैदिक ज्योतिष में ऐसा नहीं होता। उदाहरण के लिए सुर्य एवं शनि में नैसर्गिक शत्रुता है। लाल किताब की कुण्डली में सुर्य प्रथम भाव तथा शनि नवम भाव में स्थित है। चूंकि शनि, सुर्य से नवम भाव में स्थित है तो शनि सुर्य की बुनियाद है अतः यहां पर शनि, सुर्य से मित्रता का भाव रखते हुए उसकी भरपूर मदद करेगा।
 
 
दूसरी ओर सुर्य एवं मंगल आपस में नैसर्गिक मित्र हैं। सुर्य पंचम भाव तथा मंगल दशम भाव में स्थित है तो इस स्थिति में मंगल अपनी आंठवीं टकराव की दृष्टि से सुर्य को हानि पहुंचाएगा। इससे यह सिद्ध होता है कि लाल किताब में ग्रहों की मित्रता और शत्रुता का संबंध कुंडली पर आधारित है। 
 
*आपसी मदद
आपसी मदद की कुण्डली में किसी भी भाव में स्थित ग्रह अपने से पाचवें भाव में स्थित ग्रह को अपनी दृष्टि द्वारा मदद प्रदान करेगा चाहे वो ग्रह पहले ग्रह का नैसर्गिक मित्र हो या शत्रु। माल लो प्रथम भाव में सूर्य और पंचम भाव में बृहस्पति तथा नवम भाव में शनि स्थित है। 
 
यह तीनों ग्रह एक-दूसरे से पांचवें भाव में है। सूर्य और शनि में नैसर्गिक शत्रुता है लेकिन लाल किताब अनुसा वे यहां आपसी मदद की स्थिति में होते हैं। कुण्डली में शनि अपनी पंचम स्थिति (दृष्टि) से सूर्य ग्रह की मदद करेगा। इसी प्रकार सूर्य अपनी पांचवी दृष्टि से बृहस्पति की मदद करेगा। लाल किताब में यह एक अनोखा नियम है कि ग्रह अपनी पंचम दृष्टि से दूसरे ग्रह की मदद ही करता है चाहे वह उस ग्रह का शत्रु ही क्यूं न हो।
 
 
जबकि वैदिक ज्योतिष का नैसर्गिक शत्रु/मित्र वाला सिद्धान्त यहां रद्द हो जाता है। यहां एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि यदि दृष्टि डालने वाला ग्रह अपनी स्वराशी, उच्च राशी या पक्के भाव में स्थित हो तो ग्रह की शुभ प्रभाव देने की शक्ति अधिक होती है तथा नीच राशी या अशुभ भाव में होने पर ग्रह शुभ प्रभाव तो करता है परन्तु उसमें शक्ति थोड़ी कम होती है।
 
तो यह था लाल किताब और वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों का मूल अंतर। हालांकि और भी बहुत कुछ बाते हैं जो दोनों ही विद्याओं के अंतर को विस्तार से स्पष्ट करती है।

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