रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कैश ऑन डिलिवरी पर अहम खुलासा किया है। आरबीआई ने एक आरटीआई के जवाब में ई-कॉमर्स के सबसे पसंदीदा पेमेंट ऑप्शन कैश ऑन डिलिवरी को गैरकानूनी बताया है। आरबीआई की मानें तोकैश ऑन डिलीवरी 'रेगुलेटरी ग्रे एरिया' हो सकता है।
देश में ई-कॉमर्स कंपनियों का आधा बिजनेस कैश ऑन डिलिवरी पर आधारित है। इसके तहत फ्लिपकार्ट, ऐमजॉन और दूसरे मार्केटप्लेस अपने ग्राहकों से थर्ड पार्टी वेंडर्स की तरफ से सामान की डिलिवरी के वक्त नकद भुगतान लेते हैं। आरबीआई ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि अग्रिगेटर्स और ऐमजॉन-फ्लिपकार्ट जैसी पेमेंट इंटरमीडियरीज पेमेंट्स ऐंड सेटलमेंट्स सिस्टम्स ऐक्ट, 2007 के तहत अधिकृत नहीं हैं।
कुछ लीगल एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये रूल्स कैश ऑन डिलीवरी को अवैध नहीं ठहराते। इस एक्ट में इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन पेमेंट का जिक्र किया गया है, लेकिन इसमें स्पष्ट तौर पर कैश ऑन डिलिवरी के जरिए पेमेंट लेने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
आरटीआई में आरबीआई से पूछा गया था कि फ्लिपकार्ट और अमेजॉन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों का ग्राहकों से कैश कलेक्ट करना और उसे अपने मर्चेंट्स में बांटना क्या पेमेंट्स सेटलमेंट्स सिस्टम्स एक्ट, 2007 के तहत आता है? क्या इस कानून के मुताबिक वे पेमेंट सिस्टम की परिभाषा और सिस्टम प्रोवाइडर के दायरे में हैं? अगर हां तो क्या कानून के सेक्शन 8 के तहत ये अधिकृत हैं?' रिजर्व बैंक ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि ऐसे लेनदेन के नियम तय नहीं किए गए हैं और न ही कोई खास निर्देश दिए हैं।
पेमेंट्स एक्ट में इंटरमीडियरीज की परिभाषा के बारे में कहा गया है। इसमें उन सभी एंटिटी को शामिल माना गया है, जो मर्चेंट्स तक पैसा पहुंचाने के लिए ग्राहकों से इलेक्ट्रोनिक और ऑनलाइन पेमेंट के जरिए भुगतान लेती हैं। यह पैसा मर्चेंट्स की तरफ से बेचे गए सामान और सर्विस की एवज में लिया जाता है। बाद में भुगतान करने वाले ग्राहकों के ऑब्लिगेशन को पूरा करने के लिए इसे मर्चेंट्स के बीच बांटा जाता है।
फ्लिपकार्ट ने साल 2010 में कैश ऑन डिलीवरी की शुरुआत की थी। इससे कंपनी को अपना बिजनेस बढ़ाने में काफी मदद मिली थी। फ्लिपकार्ट के बाद दूसरे प्लेयर्स ने भी इस पेमेंट मोड को अपनाना शुरू किया।