नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआई के मामले में न्याय-मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस नरसिम्हा को देश में क्रिकेट प्रशासन से संबंधित तमाम विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थ नियुक्त किया।
न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एएम सप्रे की पीठ को नरसिम्हा ने सूचित किया कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डी के जैन ने बीसीसीआई के लोकपाल का पदभार ग्रहण कर लिया है। पीठ ने क्रिकेट प्रशासन में विवादों को हल करने के लिए नरसिम्हा को मध्यस्थ के रूप में काम करने के लिए कहते हुए टिप्पणी की, ‘खेल जारी रहना चाहिए।’
पीठ ने नरसिम्हा को प्रशासकों की समिति द्वारा विभिन्न क्रिकेट एसोसिएशनों को धन देने से संबंधित विवादों पर भी गौर करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, पीठ ने देश की सभी अदालातों को बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों से संबंधित किसी भी मामले में कार्यवाही के लिए दायर याचिका पर विचार करने से रोक दिया है।
शीर्ष अदालत ने 21 फरवरी को न्यायमूर्ति डीके जैन को बीसीसीआई का प्रथम लोकपाल नियुक्त किया था। इससे पहले की सुनवाई के दौरान कुछ राज्यों की क्रिकेट एसोसिएशनों के वकीलों ने आरोप लगाया था कि प्रशासकों की समिति ने उन्हें धन उपलब्ध नहीं कराया है।
महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि बहुत अजीब स्थिति हो गई है। उनका स्टेडियम न्यायालय की कार्यवाही में कुर्क है और प्रशासकों की समिति ने भी उन्हें धन नहीं दिया है। एक अन्य राज्य क्रिकेट एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल का कहना था कि पिछले तीन साल से उसे एक भी पैसा नहीं मिला है।
प्रशासकों की समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता परम त्रिपाठी ने पीठ से कहा था कि संबंधित ठेकेदारों को उनके द्वारा किए गए काम के लिए सीधे भुगतान किया गया है। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता नरसिम्हा से कहा था कि वह प्रशासकों की समिति को क्रिकेट के कार्यो के लिए राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों को धन देने की सलाह दें।
शीर्ष अदालत ने 2017 में बीसीसीआई के कामकाज और आर एम लोढा समिति की सिफारिशें लागू करने के लिए पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय की अध्यक्षता में प्रशासकों की चार सदस्ईय समिति नियुक्त की थी। समिति के अन्य सदस्यों में भारतीय महिला क्रिकेट की पूर्व कप्तान डायना एडुल्जी, इतिहासकार रामचन्द्र गुहा और बैंकर विक्रम लिमए शामिल थे।
लेकिन रामचन्द्र गुहा और विक्रम लिमए ने बाद में इस समिति से इस्तीफा दे दिया और इसके बाद समिति में विनोद राय और डायना एडुल्जी ही शेष रह गए हैं। इन दोनों सदस्यों के बीच भी मतभेद उत्पन्न हो गए हैं।