राजकोट। अपने पदार्पण टेस्ट मैच में एक परिपक्व बल्लेबाज की तरह खेलकर शतक जड़ने वाले पृथ्वी शॉ ने कहा कि मैं इंग्लैंड में कड़ी परिस्थितियों में भी बेहतर आक्रमण के सामने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के लिए भी अच्छी तरह से तैयार था। यह अलग बात है कि इंग्लैंड में मुझे खेलने का मौका नहीं दिया गया
इंग्लैंड में पदार्पण का मौका नहीं मिला : सनद रहे कि पृथ्वी शॉ को इंग्लैंड के खिलाफ अंतिम दो टेस्ट मैचों के लिए टीम में शामिल किया गया था लेकिन उन्हें पदार्पण का मौका नहीं दिया गया। भारत ने यह टेस्ट सीरीज शर्मनाक परिस्थितियों में 1-4 से गंवाई थी। यही नहीं, इस सीरीज में जिन खिलाड़ियों को भी मौका दिया गया, उनमें से अधिकांश ने भारत की लुटिया डुबोई थी। सिर्फ हनुमा विहारी ने अपने चयन को सार्थक किया था।
शतक जड़ने वाले सबसे युवा भारतीय : पृथ्वी शॉ ने वेस्टइंडीज के खिलाफ दो टेस्ट मैचों की श्रृंखला के पहले मैच में 134 रन बनाकर स्वर्णिम शुरुआत की। वह अभी 18 साल 329 दिन के हैं और अपने पदार्पण टेस्ट मैच में शतक जड़ने वाले सबसे युवा भारतीय हैं। उन्होंने पहले दिन का खेल समाप्त होने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यह कप्तान और कोच का फैसला था। मैं इंग्लैंड में भी तैयार था लेकिन आखिर में मुझे यहां मौका मिला।
इंग्लैंड में सीनियरों के साथ समय बिताने से बढ़ा मनोबल : पृथ्वी ने कहा, ‘लेकिन इंग्लैंड में अनुभव शानदार रहा। टीम में मैं सहज महसूस कर रहा था। विराट भाई ने कहा कि टीम में कोई सीनियर या जूनियर नहीं होता है। पांच साल से भी अधिक समय से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल रहे खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम में साथ में रहना बहुत अच्छा अहसास है। अब सभी दोस्त हैं।’ वह मैच से पहले थोड़ा नर्वस थे लेकिन इंग्लैंड में सीनियर साथियों के साथ समय बिताने से उन्हें अपने पदार्पण मैच को एक अन्य मैच की तरह लेने में मदद मिली।
मुझे गेंदबाजों पर दबदबा बनाना पसंद : पृथ्वी के अनुसार मैं शुरू में थोड़ा नर्वस था लेकिन कुछ शॉट अच्छी टाइमिंग से खेलने के बाद मैं सहज हो गया। इसके बाद मैंने किसी तरह का दबाव महसूस नहीं किया जैसा कि मैं पारी के शुरू में महसूस कर रहा था। मुझे गेंदबाजों पर दबदबा बनाना पसंद है और यही मैं कोशिश कर रहा था। मैंने ढीली गेंदों का इंतजार किया।
मैंने कुछ नया करने की कोशिश नहीं की : रणजी और दुलीप ट्रॉफी में पदार्पण पर शतक जड़ने वाले पृथ्वी ने उच्च स्तर पर भी यही कारनामा किया। पृथ्वी ने जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं जब भी क्रीज पर उतरता हूं तो गेंद के हिसाब से उसे खेलने की कोशिश करता हूं और इस मैच में भी मैं इसी मानसिकता के साथ खेलने के लिए उतरा। मैंने यह सोचकर कि यह मेरा पहला टेस्ट मैच है कुछ भी नया करने की कोशिश नहीं की। मैंने उसी तरह का खेल खेला जैसे मैं भारत ए और घरेलू क्रिकेट में खेलता रहा हूं।
काफी रणनीतियां बनानी होती है अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में : उन्होंने कहा, ‘हां अगर आप अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और अंडर-19 या घरेलू क्रिकेट की तुलना करो तो इसमें काफी अंतर है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में काफी रणनीतियां बनानी होती है। आपको अधिक तेज गेंदबाजी करने वाले गेंदबाजों का सामना करना होता है। कई बार घरेलू क्रिकेट में भी काफी तेज गेंदों का सामना करना पड़ता है लेकिन यहां अनुभव और विविधता होती है।
पिता को समर्पित किया पृथ्वी ने अपना शतक : पृथ्वी ने अपना शतक अपने पिता को समर्पित किया, जिन्होंने अकेले ही उन्हें पाला पोसा। पृथ्वी जब केवल 4 साल के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया था। उन्होंने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था मुझे अंडर-19 विश्व कप में जीत के बाद भारत से पदार्पण का मौका मिल जाएगा। मैं मैच दर मैच आगे बढ़ा और आखिर में आज मैंने पदार्पण किया। मैं इस पारी को अपने पिताजी को समर्पित करता हूं। उन्होंने मेरे लिये काफी बलिदान किए।
पिता के बलिदान को नहीं भूले पृथ्वी : पृथ्वी ने कहा, मैं अपने डैड के बारे में सोच रहा था और उन्होंने मेरे लिए काफी बलिदान किए। जब मैं शतक बनाता हूं तो उनके बारे में सोचता हूं और यह मेरा पहला टेस्ट शतक है और यह पूरी तरह से उन्हें समर्पित है। साव से पूछा गया कि मैच से पहले उनके पिता ने उनसे क्या कहा था, उन्होंने कहा कि वह क्रिकेट के बारे में बहुत अधिक नहीं जानते। उन्होंने यही कहा कि जाओ और अपने पदार्पण का लुत्फ उठाओ। इसे एक अन्य मैच की तरह खेलो।