इंदौर। कोई जीत के जुनून में 9 साल से घर नहीं गया तो किसी ने शादी के बाद हनीमून की जगह अभ्यास को तरजीह दी। ऐसी न जाने कितनी संघर्ष, सब्र और समर्पण की कहानियां छिपी हैं मध्यप्रदेश को साढ़े छह दशक के लम्बे अंतराल के बाद रणजी ट्रॉफी में मिली खिताबी जीत के पीछे जिसके सूत्रधार रहे कोच चंद्रकांत पंडित।
41 बार रणजी चैंपियन रह चुकी मुंबई टीम को पटखनी देकर इतिहास रचने वाले मध्यप्रदेश के कप्तान आदित्य श्रीवास्तव ने सोमवार को बताया, हम अपने कोच चंद्रकांत पंडित के मार्गदर्शन में पिछले दो साल से रणजी ट्रॉफी स्पर्धा की सख्त तैयारी कर रहे थे और हमारा पूरा ध्यान इस मुकाबले पर था।
श्रीवास्तव ने बताया,मेरी सालभर पहले ही शादी हुई है। मैंने कोच (पंडित) से कहा कि मुझे शादी के लिए बस दो-चार दिन का समय दे दीजिए। उनकी मंजूरी मिलते ही मैं शादी के तुरंत बाद फिर मैदान पर लौटकर खेल की तैयारियों में जुट गया था।
28 वर्षीय क्रिकेटर ने कहा कि वह अपनी शादी के बाद पत्नी के साथ लम्बी छुट्टी पर नहीं गए हैं। उन्होंने कहा,रणजी खिताब जीतना हमारे लिए एक मिशन की तरह था। चूंकि अब यह मिशन पूरा हो गया है। लिहाजा मैं जुलाई में खेल से 10-20 दिन का विराम लेकर परिवार के साथ वक्त बिताऊंगा।
मध्यप्रदेश के कप्तान ने कोच पंडित को मुश्किल कामों को अंजाम देने में माहिर बताते हुए कहा,सख्त अनुशासन पसंद करने वाले कोच की अगुवाई में हमारे लिए हर चीज काफी व्यवस्थित थी। पूरी रणजी स्पर्धा के दौरान हमने केवल बेहतरीन प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित किया और मैच के नतीजों की ज्यादा परवाह नहीं की।
मध्यप्रदेश के पहले रणजी खिताब के शिल्पकारों में शामिल फिरकी गेंदबाज कुमार कार्तिकेय के क्रिकेट के प्रति गजब के जुनून और समर्पण की कहानी भी लोगों का ध्यान खींच रही है।
मूलतः उत्तर प्रदेश के कानपुर से ताल्लुक रखने वाले इस 24 वर्षीय क्रिकेटर ने महज 15 साल की उम्र में इस जिद के साथ घर छोड़ दिया था कि वह खेल की दुनिया में खुद को एक दिन साबित करके दिखाएंगे।
कार्तिकेय ने कहा,मैंने क्रिकेट के लिए घर छोड़ा था और मैं पिछले नौ साल से अपने माता-पिता से नहीं मिला हूं।
गौरतलब है कि इंदौर की तत्कालीन होलकर टीम ने 1940-41 से 1954-55 के बीच चार बार रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट जीता था। होलकर टीम के आधार स्तंभ रहे महान बल्लेबाज सैयद मुश्ताक अली अक्सर कहा करते थे कि वह उनके जीते जी मध्यप्रदेश को पहला रणजी खिताब जीतते देखना चाहते हैं। हालांकि उनकी यह ख्वाहिश उनके जीते जी पूरी नहीं हो सकी और 18 जून 2005 को उनका निधन हो गया था।
अली के बेटे गुलरेज अली ने कहा, मेरे पिता के देहांत के 17 साल बाद मध्यप्रदेश ने अपना पहला रणजी खिताब आखिरकार जीत ही लिया है। मध्यप्रदेश की इस बहुप्रतीक्षित कामयाबी से मेरे पिता की रुह बेहद खुश हो रही होगी।(भाषा)