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120 सालों में भारत का सबसे गर्म साल रहा 2024

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, रविवार, 5 जनवरी 2025 (08:14 IST)
2024 को अब तक के सबसे गर्म साल के रूप में याद किया जाएगा। इस साल रिकॉर्ड गर्मी और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता में वृद्धि हुई। भारत भी इन आपदाओं से अछूता नहीं रहा।
 
2024 भारत के लिए 123 सालों में सबसे गर्म साल रहा। भारतीय मौसम विभाग के निदेशक मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि 1901 के बाद यह देश का सबसे गर्म साल था। उन्होंने कहा, "भारत में 2024 का भूमि सतह का औसत वार्षिक तापमान 1991-2020 की अवधि के औसत से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक था।"
 
पिछले साल भारत ने अब तक की सबसे लंबी ताप लहर का सामना किया, जहां तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया। मई में दिल्ली में तापमान 49.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जो 2022 में दर्ज किए गए रिकॉर्ड के बराबर था।
 
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक है, लेकिन उसने 2070 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। फिलहाल, देश ऊर्जा उत्पादन के लिए मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है।
 
दुनियाभर में प्रभाव
यह साल दुनिया के लिए भी सबसे गर्म रहा। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि 2024 अब तक का सबसे गर्म साल साबित हुआ, जो एक दशक तक लगातार बढ़ती गर्मी का चरम था। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के विशेषज्ञों का कहना है कि 2024 में हुई लगभग सभी प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में जलवायु परिवर्तन की भूमिका थी। जलवायु वैज्ञानिक फ्रेडरिके ओटो ने कहा, "2024 में जीवाश्म ईंधनों से होने वाली तापमान वृद्धि के प्रभाव पहले से कहीं ज्यादा स्पष्ट और विनाशकारी थे। हम एक खतरनाक नए युग में जी रहे हैं।"
 
जून में सऊदी अरब में हज यात्रा के दौरान तापमान 51.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जिससे 1,300 से अधिक लोगों की जान चली गई। थाईलैंड, भारत और अमेरिका में भी गर्मी से दर्जनों लोगों की मौत हुई। मेक्सिको में हालात इतने गंभीर थे कि बंदर पेड़ों से गिरकर मरने लगे।
 
अप्रैल में संयुक्त अरब अमीरात में एक दिन में दो साल की बारिश हुई, जिससे दुबई का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बंद हो गया। पश्चिम और मध्य अफ्रीका में ऐतिहासिक बाढ़ से 1,500 से अधिक लोगों की मौत हुई और करीब 40 लाख लोग प्रभावित हुए। यूरोप, खासकर स्पेन, में भी भारी बारिश और बाढ़ के कारण सैकड़ों लोगों की जान गई।
 
अमेरिका और कैरिबियन में कई बड़े तूफानों ने तबाही मचाई, जिनमें मिल्टन, बेरील और हेलीन शामिल हैं। फिलीपींस में नवंबर में छह बड़े तूफान आए, जिनमें से एक तूफान यागी ने दक्षिण-पूर्व एशिया में भारी तबाही मचाई। दिसंबर में चक्रवात 'चीनो' ने मायोट द्वीप को बुरी तरह प्रभावित किया।
 
अमेरिका, कनाडा और अमेजन बेसिन में भीषण सूखे और जंगल की आग से लाखों हेक्टेयर भूमि जलकर खाक हो गई। दक्षिण अमेरिका में जनवरी से सितंबर तक जंगल की आग की 400,000 से अधिक घटनाएं दर्ज की गईं। दक्षिणी अफ्रीका में लंबे सूखे के कारण 2.6 करोड़ लोग भूखमरी के कगार पर पहुंच गए।
 
स्विस री इंश्योरेंस कंपनी ने 2024 में वैश्विक आर्थिक नुकसान का अनुमान 310 अरब डॉलर लगाया। ब्राजील में सूखे के कारण कृषि क्षेत्र को जून से अगस्त के बीच 2.7 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर वाइन उत्पादन 1961 के बाद सबसे कम रहा।
 
भारत के लिए चुनौतियां
जलवायु परिवर्तन ने न केवल भारत के तापमान को बढ़ाया है, बल्कि बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति भी बढ़ाई है। इससे कृषि उत्पादन और जनजीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
 
2024 में भारत ने सबसे लंबी ताप लहर, भीषण बाढ़ और सूखे का सामना किया, जिससे हजारों लोगों की जान गई और अरबों का आर्थिक नुकसान हुआ।
 
विशेषज्ञों के मुताबिक गर्मी और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए भारत को अपने ऊर्जा स्रोतों को फिर से जांचने और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने की जरूरत है। भारत को 2070 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में पर्यावरणीय खतरों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
 
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर त्वरित और ठोस कदम उठाना जरूरी हो गया है। 2024 ने यह चेतावनी दी है कि यदि तुरंत कार्रवाई नहीं की गई, तो इसके परिणाम और भी भयावह हो सकते हैं।
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)

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