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बिहार में शराबबंदी को कौन लगा रहा पलीता

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DW

, शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021 (08:07 IST)
शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब पकड़ी जा रही है, बनाई जा रही है और पुलिस वाले हों या नेता या फिर आम लोग इसका सेवन भी कर रहे हैं।
 
देसी या नकली विदेशी शराब जब जहरीली हो जा रही तो लोगों की जान जा रही है। आखिर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दृढ़ निश्चय व तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद राज्य में शराबबंदी क्यों विफल होती दिख रही है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार, जनवरी, 2021 से अक्टूबर तक प्रदेश में 38 लाख लीटर से अधिक शराब पकड़ी जा चुकी है जबकि 62 हजार से अधिक लोग गिरफ्तार किए गए हैं। वाकई, यह प्रश्न लाजिमी है कि बिहार में यह कैसी शराबबंदी है।
 
जहरीली शराब पीने से लगातार हो रहीं मौतें भी इस पर प्रश्नचिन्ह लगा रहीं हैं। बीते नवंबर माह में सात दिनों के अंदर प्रदेश में 45 से अधिक लोगों की मौत के बाद बिहार सरकार पूरी तरह एक्शन में आ तो गई, लेकिन शायद ही कोई दिन बीतता है कि शराब बरामदगी तथा धंधेबाजों के पकड़े जाने की खबर मीडिया की सुर्खियां न बनती हों। शीतकालीन सत्र के दौरान बिहार विधानसभा परिसर में शराब की तीन खाली बोतलें मिलीं और अब समस्तीपुर जिले के हथौड़ी थाना क्षेत्र के बल्लीपुर गांव में बीते दो-तीन दिनों में जहरीली शराब पीने से फिर चार लोगों की मौत हो गई। ग्रामीण साफ तौर पर शराब पीने से मौत की बात कह रहे, किंतु पुलिस हर बार की तरह इससे सहमत नहीं है और उसे पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है।
 
फैसला कितना व्यावहारिक?
एकबारगी, फिर बहस तेज हो गई है कि क्या यह एक ऐसा अव्यावहारिक निर्णय था, जिसे कभी अमली जामा नहीं पहनाया जा सकता है। शायद यही वजह रही होगी कि बिहार की एनडीए सरकार की प्रमुख घटक बीजेपी भी शराबबंदी की समीक्षा करने की मांग कर चुकी है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल साफ तौर पर कह चुके हैं कि राज्य में शराबबंदी कानून फेल है। उन्होंने बिहार पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए।

बांका जिले के कटोरिया की भाजपा विधायक निक्की हेम्ब्रम ने तो विधानसभा में कह दिया कि आदिवासियों का एक तबका शराब के कारोबार से जीविका चलाता है। इस कानून से उन्हें दिक्कत होती है। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें बीच में ही यह कह कर रोका कि शराब के कारोबार पर आश्रित आदिवासी आबादी न्यूनतम है। अगर उनके पास इस कानून के लागू होने के बाद बेरोजगार हुए लोगों की सूची है तो वे उसे सरकार को दें, उन्हें रोजगार के साधन मुहैया कराए जाएंगे।
 
एनडीए के एक और सहयोगी दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी ने भी शराबबंदी पर सवाल उठाते हुए कहा था कि बिहार में 50 हजार करोड़ की शराब की खपत होती है। माफिया, पुलिस व पदाधिकारी मालामाल हो रहे हैं और गरीब जनता पिस रही है। इस कानून से कोई फायदा नहीं है।

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी बार-बार सरकार से पूछते रहे हैं कि क्या बिहार में शराब सिर्फ बोतलों में बंद है। दूसरे राज्यों से आने वाली खेप आखिर चार-पांच जिलों को पार कर गंतव्य स्थल तक कैसे पहुंच जाती है। हालांकि, इसके जवाब में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने साफ किया है कि इसे सफल बनाने की जिम्मेदारी बीजेपी की भी है। इतना ही नहीं जदयू ने तो कहा है कि यह सभी दलों की जिम्मेदारी है। विधानसभा में सबों ने इसकी शपथ ली थी। बिहार में शराबबंदी अप्रैल, 2016 से लागू है।
 
सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार
जानकार बताते हैं, इस स्थिति के लिए कोई एक नहीं, बल्कि आज की पूरी व्यवस्था जिम्मेदार है। हर स्तर पर लापरवाही बरती जा रही है। पद्मश्री सुधा वर्गीज साफ कहती हैं, ‘‘सरकार की शराबबंदी को पुलिस ने हाईजैक कर लिया है। पुलिस शराबबंदी के नाम पर कमाई में लगी हुई है। सरकार ने शराब का कारोबार करने वालों को कोई अल्टरनेटिव नहीं दिया है। जब उन्हें कोई विकल्प नहीं मिलता है तो वे फिर से इसके धंधे से जुड़ जाते हैं।'' थाने में बैठकर शराब की दावत उड़ाने व शराब के धंधेबाजों को संरक्षण देने के आरोप पुलिस पर लगते रहे हैं।
 
शराबबंदी कानून के लचर कार्यान्वयन के कारण प्रदेश में समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी हो गई है। यह स्थिति तब है जब सख्ती से शराबबंदी लागू करने के लिए बनाए गए एक्शन प्लान में मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर यह घोषणा कर रखी है कि जिस क्षेत्र में शराब मिली, उस इलाके के थानेदार तुरंत सस्पेंड होंगे तथा एसपी को निलंबित कर दिया जाएगा। लेकिन, कोई विवश होकर इसे बना व बेच रहा तो किसी के लिए यह बेहिसाब कमाई का जरिया बन गया है। जिस महकमे को शराब के अवैध धंधे की रोकथाम का जिम्मा दिया गया है, उनके अधिकारियों की धंधेबाजों से साठगांठ की वजह से यह अवैध कारोबार खूब फल-फूल रहा है।
 
बीते बुधवार को मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) के उत्पाद अधीक्षक अविनाश प्रकाश के तीन ठिकानों पर स्पेशल विजिलेंस यूनिट (एसवीयू) की टीम ने छापेमारी की तो करोड़ों की अवैध संपत्ति का पता चला। उनके ठाठ-बाट देख टीम दंग रह गई। यह तो एक बानगी भर है। एसवीयू के एक अधिकारी के अनुसार ऐसे अफसरों की लंबी लिस्ट है, जिन पर शराब माफिया से साठगांठ कर अकूत संपत्ति अर्जित करने का आरोप है।

शराब के धंधे में राजनेता भी पीछे नहीं हैं। दो दिन पहले ही सिवान के राजद नेता व सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक के चेयरमैन को पुलिस ने पकड़े गए शराब तस्करों की निशानदेही पर गिरफ्तार किया। पत्रकार सुधीर कुमार कहते हैं, "नेता, पुलिस व अफसर का गठजोड़ बिहार में शराबबंदी को सफल बनाने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है।"
 
खुली सीमा की कैसे हो निगरानी
दरअसल, राज्य में शराब तस्करी के दो मॉडल हैं। एक तो उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, झारखंड व दिल्ली से विदेशी शराब बिहार पहुंच कर विभिन्न शहरों में डंप की जाती है और फिर स्थानीय धंधेबाजों द्वारा इसकी सप्लाई होती है। शहरी इलाकों में मुख्य रूप से इसी मॉडल पर काम होता है, वहीं ग्रामीण इलाकों में स्प्रिट की खेप मंगा कर या महुआ चुलाकर स्थानीय स्तर पर देसी शराब बनाई जाती है। यही शराब नशीली बनाने के चक्कर में कभी कभी जहरीली हो जाती है। राज्य में अवैध शराब की तस्करी में एक तिहाई से अधिक हिस्सेदारी देसी शराब की है। बिहार से सटे झारखंड, पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश में शराबबंदी नहीं है।
 
नेपाल का बड़ा इलाका भी बिहार से सटा है। पुलिस की सक्रियता मुख्य मार्गों पर रहती है। खुली सीमा होने के कारण शराब के धंधे को रोक पाना मुश्किल होता है। यही वजह है कि केवल नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में शराब की दुकानों की संख्या में पिछले पांच सालों में काफी वृद्धि हुई है। उत्तर बिहार के पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण और मधुबनी के ग्रामीण इलाकों में शराब की तस्करी जोरों पर है। इन इलाकों में उत्तर प्रदेश से तो शराब आती ही है, नेपाल के सुस्ता से भी नाव के जरिए कच्ची शराब लाई जाती है। यही स्थिति नेपाल के सीमावर्ती वीरगंज, रौतहट, सर्लाही, परसा व मुसहरवा के इलाके में है। नेपाल के इन इलाकों में शाम ढलते ही पीने-पिलाने का दौर शुरू हो जाता है।
 
खुली सीमा होने के कारण लोग आराम से इस पार से उस पार चले जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक केवल रक्सौल बॉर्डर से रोजाना दो हजार से अधिक लोग शराब रोजाना शराब पीने नेपाल जाते हैं। यही हाल नेपाल से सटे पूर्वी बिहार के इलाकों का भी है। इंडो-नेपाल बार्डर को इसलिए शराब के तस्करों का सेफ जोन माना जाता है। हालांकि जहरीली शराब से मौत की घटनाओं के बाद सरकार ने राज्य की सीमा पर सख्ती बरतने तथा शराब तस्करी के रूट की पहचान कर उन्हें सील करने का निर्देश जारी किया है।
 
कैरियर बना धंधेबाज देते रोजगार
शराब तस्कर अपने धंधे में बेरोजगार युवाओं का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। ये युवा ही इनके लिए कैरियर बनकर शराब की होम डिलीवरी करते हैं। इनमें अधिकतर छात्र या वैसे युवा होते हैं, जो कुछ कमाई के चक्कर में इनकी गिरफ्त में आ जाते हैं। अगर ये पकड़ लिए गए तो छूटकर आने के बाद सिंडिकेट के लोग उन्हें डरा-धमका कर फिर से इस दलदल में धकेल देते हैं।

भागलपुर में बच्चे द्वारा कैरियर का काम करने का मामला संज्ञान में आया है। विभिन्न इलाकों से अब तक करीब चार दर्जन से अधिक बच्चे इस सिलसिले में पकड़े जा चुके हैं। दरअसल, तस्कर आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे को टारगेट करते हैं। पहले छोटे-मोट लालच देकर ये बच्चों से थोड़ी दूरी तक शराब की ढुलाई करवाते हैं। फिर बच्चे को मोबाइल फोन थमा होम डिलीवरी के काम में लगा देते हैं। अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी एस के सिंह कहते हैं, ‘‘हर शहर में यहां तक कि गांवों-कस्बों में युवा लालच में आकर तस्करों के लिए कैरियर का काम कर रहे हैं। बच्चों-महिलाओं पर कोई शक नहीं करता, इसलिए ये उनके लिए सॉफ्ट टारगेट होते हैं।'' मद्य निषेध विभाग के आंकड़ों के अनुसार शराब बरामदगी तथा गिरफ्तारी के मामले में मुजफ्फरपुर राज्य में सबसे अव्वल है।
 
जहरीली हुई शराब तो सक्रिय हुई सरकार
शराबबंदी कानून पर सख्ती से अमल के लिए सरकार ने एकबार फिर केके पाठक नामक उस कडक़ आइएएस अफसर को कमान सौंपी, जिन्हें पहले महकमे की जिम्मेदारी सौंपने के बाद हटा दिया गया था। अब सख्ती का आलम यह है कि पुलिस तथा मद्य निषेध व उत्पाद विभाग हर घंटे छापेमारी कर रहा है। बीते एक हफ्ते में 13,405 छापे मारे गए और 2220 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें सबसे अधिक 1131 लोग शराब बेचने के आरोप में पकड़े गए।
 
होम डिलीवरी के नेटवर्क को ध्वस्त करने पर सरकार का विशेष जोर है। अब जंगल, पहाड़ व दियारा वाले इलाकों में धंधेबाजों की निगरानी ड्रोन से की जाएगी। वहीं शहरों के कुछ खास इलाकों की पहचान कर ऑनलाइन सिस्टम के जरिए निगाह रखी जाएगी। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बड़ी बेबाकी से ऐलान कर चुके हैं कि राज्य में न शराब आने देंगे और न किसी को पीने देंगे।

पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद वे राज्य की यात्रा पर निकलेंगे और इस दौरान खासकर महिलाओं को शराबबंदी के बारे में बताएंगे और उनसे इससे सफल बनाने की अपील करेंगे। जाहिर है, सरकार तमाम प्रयास कर रही है और सामाजिक संगठन भी सक्रिय हैं, लेकिन जब तक आम लोग जागरूक नहीं होंगे तथा भ्रष्ट अफसरों पर कानून का डंडा नहीं चलेगा तब तक पूर्ण शराबबंदी की कल्पना बेमानी है।
रिपोर्ट: मनीष कुमार, पटना
 

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