Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

दुर्गा पूजा से पहले बांग्लादेश ने रोका हिल्सा मछली का निर्यात

हमें फॉलो करें दुर्गा पूजा से पहले बांग्लादेश ने रोका हिल्सा मछली का निर्यात

DW

, बुधवार, 11 सितम्बर 2024 (08:34 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी
हर साल दुर्गा पूजा के सीजन में बांग्लादेश से पद्मा नदी की हिल्सा मछलियां बंगाल पहुंचती थी। लेकिन इस बार अंतरिम सरकार ने 'मछलियों की रानी' कही जाने वाली इस मछली का निर्यात नहीं करने का फैसला किया है।
 
हर साल दुर्गा पूजा के सीजन में बांग्लादेश से पद्मा नदी की हिल्सा मछलियां बंगाल पहुंचती थी। लेकिन इस बार अंतरिम सरकार ने 'मछलियों की रानी' कही जाने वाली इस मछली का निर्यात नहीं करने का फैसला किया है। इससे कारोबारियों और आम लोगों में निराशा है।
 
बंगालियों के लिए यह महज एक मछली नहीं, बल्कि उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता की पहचान है। बीते साल दुर्गा पूजा के समय बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने 3,950 टन हिल्सा कोलकाता भेजी थी। दुनिया भर की कुल हिल्सा का 70 फीसदी उत्पादन बांग्लादेश में ही होता है। यह बांग्लादेश की राष्ट्रीय मछली है।
 
पद्मा की हिल्सा में जो स्वाद होता है वह कहीं और मिलने वाली इस मछली में नहीं होता। यही वजह है कि हर साल खासकर दुर्गा पूजा के समय बंगाल के लोग सीमा पार से आने वाली इस मछली का बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं। हिल्सा की कीमत इसके वजन से तय होती है। जितनी बड़ी मछली उतनी ही ज्यादा कीमत। करीब दो हजार रुपए प्रति किलो तक बिकने के बावजूद इसकी भारी मांग रहती है। यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि बंगाली समुदाय में कोई धार्मिक अवसर हो या सामाजिक, इस मछली के बिना अधूरा ही रहता है। 
 
निर्यात पर पाबंदी क्यों
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कथित रूप से अपनी घरेलू मांग पूरी करने के लिए इस साल भारत को हिल्सा के निर्यात पर पाबंदी लगाने का फैसला किया है। मत्स्य पालन मंत्रालय में सलाहकार फरीदा अख्तर ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में इसकी घोषणा की है। उन्होंने कहा कि इस साल दुर्गा पूजा के मौके पर भारत को इस मछली का निर्यात नहीं किया जाएगा।
 
इसके साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के समय शुरू की गई परंपरा पर ब्रेक लग गया है। हसीना सत्ता में रहने के दौरान हर साल अगस्त से अक्टूबर के बीच सद्भावना के तौर पर भारी मात्रा में हिल्सा यहां भिजवाती थी।
 
हालांकि बांग्लादेश के सरकारी सूत्रों ने डीडब्ल्यू को बताया कि घरेलू मांग तो एक बहाना है। दरअसल, शेख हसीना के भारत में शरण लेने के बाद देश के आम लोगों में भड़की भारत विरोधी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने यह फैसला किया है। सरकार लोगों की भावनाओं को और भड़काने का खतरा नहीं उठाना चाहती।
 
बीते साल पद्मा की हिल्सा की पहली खेप पेट्रापोल सीमा चौकी से होकर बंगाल पहुंची थी। उस खेप में बरिशाल से कुल 45 टन मछली आई थी। उस साल बांग्लादेश के वाणिज्य मंत्रालय ने 79 निर्यातकों को करीब चार हजार टन मछली के निर्यात की अनुमति दी थी।
 
पहला मौका नहीं
बांग्लादेश की ओर से इस मछली के निर्यात पर पाबंदी लगाने का यह पहला मौका नहीं है। इससे पहले जुलाई, 2012 में भी कथित घरेलू मांग बढ़ने के कारण शेख हसीना सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी थी। माना जाता है कि उस समय भी पाबंदी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अड़ियल रवैए की वजह से ही लगी थी। उन्होंने तीस्ता के पानी पर प्रस्तावित समझौते पर नाराज होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बांग्लादेश दौरे पर जाने से मना कर दिया था।
 
इस पर पलटवार करते हुए बांग्लादेश ने हिल्सा के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। उसके बाद ममता बनर्जी ने केंद्र पर इस मुद्दे को बांग्लादेश के समक्ष उठाने का दबाव बनाया और फिर फरवरी 2015 में हसीना के साथ बैठक के दौरान पाबंदी हटाने की अपील की। आखिर सितंबर 2020 में हसीना सरकार ने सामयिक रूप से पाबंदी हटा ली थी।
 
अब दुर्गा पूजा से ठीक पहले इस पाबंदी से आम लोगों और कारोबारियों के चेहरे मुरझा गए हैं। पेट्रापोल में एक मछली आयातकर्ता विभूति मंडल कहते हैं, "यह फैसला किसी झटके से कम नहीं है। हम हर साल त्योहार के सीजन में भारी मात्रा में इस मछली का आयात करते थे। अब हमें ओडिशा और म्यांमार की हिल्सा पर ही निर्भर रहना होगा।"
 
कोलकाता फिश इम्पोर्टर्स एसोसिएशन के सदस्य रंजन साहा डीडब्ल्यू से कहते हैं, "हमें ओडिशा और म्यांमार से 30 फीसदी ज्यादा कीमत पर हिल्सा का आयात करना पड़ रहा है। बांग्लादेश से इस मछली के यहां नहीं आने की स्थिति में इसकी कीमत के आसमान छूने का अंदेशा है।"
 
बंगाली परिवारों का हिल्सा प्रेम
मूल रूप से बंगालियों के लिए एक स्टेटस सिंबल का दर्जा हासिल कर चुकी इस मछली का पश्चिम बंगाल में सेवन देश की आजादी के बाद बढ़ा। इसकी वजह थे तत्कालीन पूर्वी बंगाल से यहां पहुंचने वाली बंगाली शरणार्थी।
 
बंगाली हिंदू परिवारों में हिल्सा के बिना कोई भी शुभ काम पूरा नहीं होता। वह चाहे शादी-विवाह का मौका हो या फिर किसी पूजा या त्योहार का। बाजारों में हिल्सा की आवक का मुद्दा स्थानीय मीडिया में अक्सर सुर्खियां बटोरता रहता है। इससे बंगाली जनजीवन और समाज में हिल्सा की अहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
 
हिल्सा वैसे तो बंगाल की खाड़ी में भी पाई जाती है। लेकिन समुद्री हिल्सा उतनी स्वादिष्ट नहीं होती जितनी नदी वाली हिल्सा। यहां गंगा में भी हिल्सा मिलती है। लेकिन बांग्लादेश स्थित पद्मा नदी की हिल्सा का स्वाद खास माना जाता है। यह एक तैलीय मछली है। इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में होता है। दूसरी मछलियों की तरह हिल्सा को काट कर नहीं बेचा जाता। लोग अपनी जरूरत के हिसाब से बड़ी या छोटी मछली खरीद सकते हैं।
 
बांग्ला साहित्यकार मणि शंकर मुखर्जी डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "हिल्सा बांग्ला समाज में एक स्टेटस सिंबल बन चुकी है। लेकिन आसमान छूती कीमतों के कारण यह आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। डेढ़ से दो किलो वजन वाली मछली सबसे बेहतर और स्वादिष्ट मानी जाती है। लेकिन इसकी कीमत 1,800 से दो हजार रुपए प्रति किलो तक हो सकती है।"

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भारत: समय पर जनगणना क्यों जरूरी है