इसराइल में पिछले 1 साल में 2 चुनाव हो चुके हैं। अब वह तीसरे चुनाव की ओर है। मार्च 2020 में होने वाले चुनावों के बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का भविष्य तय हो जाएगा।
इसराइल में मार्च, 2020 में फिर से आम चुनाव होंगे। ये पिछले 1 साल में तीसरी बार होने जा रहे चुनाव हैं। इससे पहले अप्रैल और सितंबर 2019 में भी चुनाव हुए थे। इस बार उम्मीद है कि देश को एक स्पष्ट बहुमत वाली नई सरकार मिलेगी। पिछले 11 महीनों से देश एक कार्यवाहक सरकार के भरोसे चल रहा है।
उम्मीद थी कि बीते चुनावों में इस सरकार को नया बहुमत मिल जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस सरकार के
मुखिया हैं बेंजामिन नेतन्याहू, जो इसराइल के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं। साथ ही वो पहले प्रधानमंत्री हैं जिन पर पद पर रहते हुए ही भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।
नेतन्याहू इसराइल में दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लिकुड पार्टी के नेता हैं। वे अपनी पार्टी के राष्ट्रवाद के स्टैंड पर कायम रहते हैं। इसलिए जब उन पर भ्रष्टाचार के आरोप आधिकारिक रूप से सामने आए, तो उन्होंने इसे उन्हें और सरकार को अस्थिर करने की साजिश का नाम दिया।
जब तक नए चुनावों की तारीख घोषित नहीं की गई थी तब तक वे कहते रहे कि वे ही इसराइल को राजनीतिक संकट से बचा सकते हैं। जब उनकी पार्टी के ही कुछ नेताओं ने उन पर सवाल उठाए तो पार्टी का एक बड़ा तबका नेतन्याहू के साथ खड़ा हो गया। इस तबके का कहना था कि प्रधानमंत्री को गलत तरीके से उनके पद से हटाने की कोशिश हो रही है।
उदारवादी नहीं हैं नेतन्याहू
नेतन्याहू ने राष्ट्रवाद के एजेंडे को बेहद सख्ती से लागू किया। उनसे पहले किसी और सरकार ने ऐसा नहीं किया था। जैसे 1967 में इसराइल द्वारा कब्जाई गई जमीन पर किए गए निर्माण पर उनकी नीति, फिलीस्तीन पर पीछे न हटना और ईरान को सार्वजनिक रूप से दुश्मन नंबर 1 की तरह स्थापित कर देना। वे अपने राष्ट्रवाद के एजेंडे से बिलकुल पीछे नहीं हटे हैं।
नेतन्याहू ने स्थानीय मुद्दों पर भी कड़ा रुख अपनाया है। ब्लू-व्हाइट विपक्षी गठबंधन को उन्होंने कट्टर वामपंथी कहा और उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया। हालांकि यह आरोप एकदम गलत निकला और खुद उनकी पार्टी के लोगों ने भी इस आरोप की आलोचना की। नेतन्याहू यहीं नहीं रुके, उन्होंने खुद की पार्टी में उनका विरोध करने वाले लोगों को भी 'गद्दार' कह डाला।
लिकुड पार्टी के युवा चाहते हैं नेतन्याहू की विदाई
लिकुड पार्टी के युवा मोर्चा के कई सैकड़ों सदस्यों ने नए नेतृत्व की मांग की है। उन्होंने कहा कि पार्टी को नेतन्याहू की जगह किसी और को चुनना चाहिए। यहां तक कि इन लोगों ने उम्मीदवारों की एक सूची भी जारी की, लेकिन नेतन्याहू ने उन्हें भी नहीं बख्शा। सजा के तौर पर कुछ लोग पार्टी से बाहर किए गए, वहीं कुछ लोगों की सदस्यता की समीक्षा की जा रही है।
हालांकि ये लोग अब सीधे नेतन्याहू पर निशाना लगा रहे हैं। नेतन्याहू के कार्यकाल में ऐसा पहली बार हुआ है, जब उनकी पार्टी में ही उनका इस तरह किसी ने आंतरिक विरोध किया हो। गिडेओन सार, जो लिकुड पार्टी के सदस्य हैं और कई वर्ष तक सांसद और मंत्री रहे हैं, उन्हें नेतन्याहू के एक विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा है।
जानकारों का कहना है कि मार्च में होने वाले चुनावों का नतीजा भी पिछले 2 चुनावों जैसा ही आने वाला है। इसकी वजह है कोई बड़ा राजनीतिक फेरबदल न होना। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोई बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम जैसे नेतन्याहू का ट्रॉयल शुरू हो जाए, तो नतीजे कुछ बदल सकते हैं। सब लोग यही उम्मीद कर रहे हैं कि इस गतिरोध की स्थिति खत्म हो और इन चुनावों का कोई निर्णायक परिणाम निकलकर सामने आए।
इसराइल की तरह फिलीस्तीन में भी कोई राजनीतिक हालात नहीं बदले हैं। फिलीस्तीन में आखिरी बार चुनाव 2006 में हुए थे। फिलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने ऐलान किया कि वे नए सिरे से चुनाव करवाना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए वे इसराइल से मांग कर रहे हैं कि वह इसराइल के कब्जे वाले पूर्वी यरुशलम में रहने वाले अरबों को वोट डालने देने की अनुमति दे। इसराइल ने फिलहाल अब्बास की अपील का जवाब नहीं दिया है। लोगों का मानना है कि इसराइल इसकी अनुमति नहीं ही देगा।
अभी किसी को नहीं लगता कि गिडेओन सार नेतन्याहू को हटाकर उनकी जगह ले सकते हैं। लिकुड पार्टी में कभी भी पद पर आसीन नेता को हटाकर दूसरा नेता नहीं बनाया गया है। लेकिन सार समर्थक युवा समूह को लगता है कि धीरे-धीरे नेतन्याहू का समय खत्म हो रहा है। अब उनका राजनीतिक करियर ढलान पर है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक अभी से नेतन्याहू के बाद के समय की चर्चा कर रहे हैं जिसमें इसराइल फिर से मध्य-पूर्व के इलाके में एक सशक्त लोकतंत्र की तरह सामने आए।