रिपोर्ट : मनीष कुमार, पटना
विधानसभा चुनाव में पार्टियों ने स्वर्णिम बिहार के निर्माण का सब्जबाग तो दिखाया ही, कोरोना वैक्सीन और रोजगार पर भी दांव लगाया। यह तो 10 नवंबर को मतगणना के बाद ही पता चल पाएगा कि इन मुद्दों का क्या असर रहा।
दो दिन बाद बिहार में विधानसभा चुनाव का तीसरा चरण होगा। सभी पार्टियों ने पिछले आम चुनावों की तरह ही कोरोना काल में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी अपनी योजनाओं के जरिए बेहतर बिहार के निर्माण का रोडमैप मतदाताओं के समक्ष पेश किया। किसी ने इसे 'बदलाव पत्र' तो किसी ने 'प्रण हमारा, संकल्प बदलाव का' तो किसी ने 'आत्मनिर्भर बिहार के सूत्र व संकल्प' की संज्ञा दी। चूंकि पार्टियों ने वोटरों को रिझाने के लिए अपने-अपने मुद्दे गढ़े थे इसलिए जाहिर है उनकी प्राथमिकताएं अलग-अलग रहीं। विपक्षी दलों ने जनता की दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश की तो सत्तारूढ़ पार्टी ने अपने 5 साल के जनोपयोगी कार्यों को प्रचारित-प्रसारित करने की रणनीति बनाई।
कोरोना वैक्सीन पर रार
केंद्र और राज्य में एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस) की सरकार और फिर कोविड -19 का संकट तो भला इनके घोषणा पत्र से कोरोना गायब कैसे रहता। भाजपा ने एलान कर दिया कि बिहार में सरकार बनने के बाद सभी प्रदेशवासियों को कोरोना की वैक्सीन मुफ्त दी जाएगी। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा जारी '1 लक्ष्य, 5 सूत्र व 11 संकल्प' का पहला संकल्प यही था। इस घोषणा की धमक दूर तक सुनाई दी। कुछ घंटे बाद मध्यप्रदेश व तामिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने भी मुफ्त वैक्सीन देने का वादा कर दिया। विपक्षी पार्टियां इसे लेकर हमलावर हो गईं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो ट्वीट करके कहा कि भारत सरकार ने कोविड वैक्सीन वितरण की घोषणा कर दी है। यह जानने के लिए वैक्सीन और झूठे वादे आपको कहां मिलेंगे, कृपया अपने राज्य की चुनाव तिथि देखें। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा कि ऐसी ही घोषणा उत्तरप्रदेश और अन्य भाजपा शासित प्रदेशों के लिए क्यों नहीं की जाती। आखिरकार बात चुनाव आयोग तक पहुंची। आयोग ने कहा कि मुफ्त वैक्सीन के वादे को आचार संहिता का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता।
'भाजपा है तो भरोसा है' के सूत्र वाक्य के साथ आत्मनिर्भर बिहार का रोडमैप पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि हमने जो कहा उसे पूरा किया। एनडीए सरकार जनता के लिए काम कर रही है और लोगों का भरोसा ही हमारे संकल्प का आधार है। पार्टी ने शिक्षित बिहार-आत्मनिर्भर बिहार, गांव-शहर सबका विकास, स्वस्थ समाज, उद्योग आधार-सबल समाज और सशक्त कृषि, समृद्ध किसान का सूत्र दिया। इसके साथ ही भाजपा ने राज्य में 19 लाख लोगों को रोजगार देने की भी बात कही जिसके तहत चार लाख लोगों को सरकारी नौकरी और 15 लाख लोगों को विभिन्न माध्यमों से रोजी-रोटी के अवसर मुहैया कराए जाएंगे।
नीतीश कुमार के वादे
बिहार में भाजपा के बड़े भाई जदयू ने 'पूरे होते वादे, अब हैं नए इरादे' के टैगलाइन से अपना निश्चय पत्र जारी किया। इसमें युवा शक्ति-बिहार की प्रगति, सशक्त महिला-सक्षम महिला, हर खेत को पानी, सुलभ संपर्कता, स्वच्छ गांव-समृद्ध गांव, सबके लिए अतिरिक्त सुविधा और स्वच्छ शहर, विकसित शहर की बात कही गई है। जानकार इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सात निश्चय-पार्ट 2 बताते हैं। राजनीतिक विश्लेषक सीके चटर्जी कहते हैं कि दरअसल यह नीतीश कुमार के उसी विजन का एक्सटेंशन है जिसे उन्होंने सात निश्चय के साथ 2015 में शुरू किया था। इनके लिए महिलाएं गेम चेंजर रहीं हैं, इसलिए महिला उद्यमिता व युवाओं को रोजगार पर इनका विशेष जोर है।
जदयू ने सक्षम और स्वावलंबी बिहार बनाने के लिए युवाओं को तीन लाख और महिलाओं को 5 लाख रुपए तक का अनुदान देने की बात कही है। पिछली बार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड व स्वयं सहायता भत्ता की बात कही गई थी। इस बार मेगा स्किल डेवलपमेंट सेंटर को विकसित करने की योजना है ताकि उन्हें इस तरह का प्रशिक्षण उपलब्ध करा दिया जाए जिससे रोजगार मिलने में उन्हें कोई दिक्कत न हो। इसके अलावा पार्टी गांवों में हर घर नल का जल, हरेक घर में बिजली, पक्की गली-नाली व हर गली में सोलर लाइट व कचरा प्रबंधन तथा बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करा गांवों को भी शहरी रंग में रंगना चाह रही है।
राजद ने बेरोजगारी को बनाया मुद्दा
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की एक विशेष रणनीति रही है कि जनभावना से जुड़े किसी एक मुद्दे को वे सुनियोजित ढंग से इतनी हवा देते हैं कि चुनाव के चरम पर आते ही वह मुद्दा बन जाता है। 2015 के विधानसभा चुनाव का स्मरण करें तो साफ हो जाएगा उस समय महागठबंधन की ओर आरक्षण एक ऐसा मुद्दा बन गया था जिसने भाजपा की नाक में दम कर दिया। ठीक उसी तर्ज पर अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए इस बार तेजस्वी यादव भी अपनी पार्टी की ओर से बेरोजगारी को मुद्दा बनाने में कामयाब रहे। महागठबंधन के अन्य घटक दलों की मौजदूगी में 'प्रण हमारा, संकल्प बदलाव का' नाम से उन्होंने 25 सूत्री घोषणा पत्र जारी किया। इसमें तेजस्वी ने कहा कि महागठबंधन की सरकार बनते ही कैबिनेट की पहली बैठक में पहली कलम से दस लाख लोगों को सरकारी नौकरी दी जाएगी।
इसके साथ ही इस घोषणा पत्र में किसानों का ऋण माफ करने, किसान विरोधी तीन कानूनों को समाप्त करने, कांट्रैक्ट पर नौकरी की व्यवस्था खत्म करने, नियोजित शिक्षकों को समान काम, समान वेतन व बिहार के छात्रों को सरकारी नौकरियों के परीक्षा फॉर्म में आवेदन शुल्क नहीं देने तथा परीक्षा केंद्र तक की मुफ्त यात्रा की बात कही गई है। पार्टी ने रोजगार एवं स्वरोजगार, कृषि, उद्योग, शिक्षा, उच्च शिक्षा व रोजगार, महिला सशक्तिकरण और परिवार कल्याण, स्मार्ट गांव, पंचायती राज, गरीबी उन्मूलन, आधारभूत संरचनात्मक विकास व स्वयं सहायता समूह समेत अन्य कई बिंदुओं के तहत विस्तार से बिहार को उन्नति के रास्ते पर ले जाने का रोडमैप बताया है। राजद के इस घोषणा पत्र पर भाजपा ने व्यंग्य कसते हुए कहा कि यह बदलाव का नहीं 'प्रण हमारा फिर लूटेंगे' का संकल्प है। जदयू ने कहा कि नौकरी का वादा भी एक घोटाला ही है।
कांग्रेस का चुनावी बदलाव पत्र
राजद की सहयोगी कांग्रेस ने अपने 'बदलाव पत्र 2020' में कई लोकलुभावन वादे किए हैं। नीतीश सरकार की पूर्ण शराबबंदी पर प्रहार करते हुए पार्टी ने बिहार में मद्य निषेध कानून की समीक्षा करने की बात कही है। इसके अलावा अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने बेरोजगारों को नौकरी मिलने तक हरेक माह 1500 रुपए बेरोजगारी भत्ता देने, साढ़े चार लाख रिक्त पद भरने व रोजगार आयोग का गठन करने, छत्तीसगढ़ की तरह किसानों का कर्ज माफ करने, केजी से पीजी तक बच्चियों को मुफ्त शिक्षा व होनहार बेटियों को मुफ्त में स्कूटी देने का वादा किया है।
इसके अलावा सहयोगी वामपंथी दलों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 'बदलो सरकार, बदलो बिहार' के तहत अपने इरादे जाहिर किए जिनमें भूमिहीन परिवार को 10 डिसमिल जमीन देने, समान शिक्षा प्रणाली, भूदान व हदबंदी में चिन्हित 21 लाख एकड़ जमीन के वितरण तथा समान काम, समान वेतन की बात कहते हुए 'नई सदी, नई पीढ़ी, नई सोच और नया बिहार' का नारा दिया है जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने बेरोजगारों को प्रतिमाह 5 हजार रुपए देने व किसानों की कर्ज माफी की बात कही है।
सात निश्चय में भ्रष्टाचार बना मुद्दा
बिहार विधानसभा के इस चुनाव में केंद्र में एनडीए सरकार की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी ने भी 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट'' के तहत अपना विजन डाक्यूमेंट-2020 जारी किया। ये वही विजन डाक्यूमेंट है, जिसके मुद्दों को लेकर लोजपा प्रमुख व स्वर्गीय रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान चुनाव में एकला चलो का निर्णय लेने के पहले भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भिड़ते रहे हैं। कोरोना से निपटने की राज्य सरकार की व्यवस्था हो या फिर लॉकडाउन में प्रवासियों के लौटने का मुद्दा रहा हो, चिराग अपनी नाराजगी सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर नीतीश सरकार की आलोचना कर चुके हैं।
अपने घोषणा पत्र में तो उन्होंने सीधे-सीधे नीतीश कुमार के सात निश्चय को घेरे में लेते हुए उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच कराने तथा दोषियों को जेल भेजने की बात कही है। वे तो यहां तक कहते रहे हैं कि इसमें इतना भ्रष्टाचार है कि इसकी आंच नीतीश कुमार तक आएगी और उन्हें भी जेल भेजा जाएगा। जाहिर है, इतना आक्रामक व व्यक्तिगत हमला तो तेजस्वी यादव ने भी नीतीश कुमार पर नहीं किया है। इसके अलावा लोजपा ने राज्य में अफसरशाही खत्म करने, सीता रसोई के जरिए हर प्रखंड में 10 रुपए में भोजन मिलने, छात्रों के लिए कोचिंग सिटी, फिल्मसिटी, स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनाने, रोजगार पोर्टल बनाने, नहरों से नदियों को जोड़ने, किन्नरों व गरीबों को आवास देने तथा तय सीमा में प्रोजेक्ट पास नहीं करने पर अफसरों पर मुकदमा दर्ज करने की बात कही है।
रोजगार पर तकरार
विधानसभा चुनाव में रोजगार जैसे ही मुद्दा बनने लगा, एनडीए तथा महागठबंधन के घटक दलों के बीच वाणों के तीर चलने लगे। तंज कसने व आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। यहां तक कि इस जंग में पीएम नरेंद्र मोदी भी कूद पड़े। जमुई से एनडीए प्रत्याशी श्रेयसी सिंह के समर्थन में आयोजित जनसभा में पीएम ने कहा कि बिहार में नए उद्योग लगाए जाएंगे जिससे युवाओं को रोजगार मिल सकेगा और उन्हें काम के लिए दूसरे राज्यों का रूख नहीं करना होगा। महागठबंधन के नेता जहां इन पंद्रह सालों में रोजगार का हिसाब मांग रहे थे वहीं एनडीए व उसके सहयोगी दल नियोजित शिक्षक, जीविका दीदी, विकास मित्र, न्याय मित्र, टोला सेवक व कृषि सलाहकार जैसे पदों पर की गई नियुक्ति का हवाला दे विपक्षियों से उनके द्वारा पंद्रह साल में दिए गए रोजगार का ब्योरा मांग रहे हैं। राजद द्वारा 10 लाख लोगों को पहली कलम से नौकरी देने के वादे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि 15 साल में 90 हजार को नौकरी देने वाले 10 लाख नौकरी देने की बात कह रहे हैं।
वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव कहते हैं कि नीतीश सरकार ने पंद्रह साल में किसी को रोजगार नहीं दिया। लोग रोजी-रोटी, स्वास्थ्य व बेहतर शिक्षा के लिए राज्य से बाहर जा रहे हैं। अरबों रुपया यहां से बाहर जा रहा है। हम मेधा पलायन रोकने की योजना बनाएंगे। बिहार सरकार हर वर्ष बजट का 40 प्रतिशत यानी अस्सी हजार करोड़ रुपया सरेंडर करती है। हम इस राशि का इस्तेमाल विकास के कार्यों व वेतन देने में करेंगे। नहीं होगा तो हम विधायकों के वेतन में कटौती करके वेतन का खर्च जुटाएंगे। इधर, राजद ने भी भाजपा से पूछा है कि चार लाख लोगों को नौकरी और पंद्रह लाख लोगों के रोजगार के लिए वे पैसा कहां से लाएंगे। कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला कहते हैं कि भाजपा का घोषणा पत्र भी जुमला ही है। जब हमने 10 लाख लोगों को नौकरी की बात कही तब तंज कस रहे थे, अब खुद 19 लाख को रोजगार देने की बात कह रहे।
जानकार बताते हैं कि सभी पार्टियां हवा-हवाई दावे कर रही है। 10 लाख लोगों को नौकरी तथा अन्य लाखों सेवकों का मानदेय बढ़ाने की बात का हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। इतने लोगों को नौकरी देने के लिए एक लाख 34 हजार करोड़ रुपए की जरूरत होगी। इसके अतिरिक्त मनरेगा का कार्य दिवस बढ़ाकर दो सौ करने पर 5300 करोड़ तथा आशा कार्यकर्ता समेत अन्य का मानदेय बढ़ाने पर 4150 करोड़ रुपए और जीविका दीदियों के प्रत्येक समूह को दो लाख रुपए का टॉप अप लोन देने पर 77 हजार करोड़ की जरूरत होगी। पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रही बिहार सरकार के लिए आखिरकार इतना पैसा जुटाना महती चुनौती होगी।