दुनियाभर की सरकारों ने अगर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कदम नहीं उठाए तो इस सदी के आखिर तक हर साल 5 करोड़ लोग बाढ़ के कारण बेघर होंगे। इनमें भारत जैसे देश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि 1970 के दशक से 2005 तक औसतन 1 करोड़ लोग सालाना बाढ़ से प्रभावित हुए। हालांकि इस सदी के आखिर तक उनकी संख्या बढ़कर 5 गुनी हो सकती है। रिसर्च रिपोर्ट के लेखक जस्टिन जिनेटी कहते हैं कि एक तरफ इंसानी आबादी लगातार बढ़ रही है तो दूसरी तरफ बारिश की तीव्रता में वृद्धि हो रही है और ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं जिसकी वजह से जल्दी-जल्दी बाढ़ आने का खतरा बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि बाढ़ में जितनी वृद्धि का अनुमान जताया गया है, उसमें से आधे की वजह जलवायु परिवर्तन है जबकि आधे की वजह जनसंख्या वृद्धि। जिनेवा के इंटरनल डिसप्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर के प्रमुख जिनेटी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जितने लोग बेघर हो रहे हैं, उनमें आधे से ज्यादा बाढ़ की वजह से अपना घर छोड़ने को मजबूर होते हैं।
उन्होंने कहा अगर सरकारें पर्याप्त कदम उठाएं तो बाढ़ से हर साल प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या को 2 करोड़ तक सीमित किया जा सकता है। इसके लिए दुनियाभर के तापमान में वृद्धि को सिर्फ 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करना होगा।
हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी जिस तरह की नीतियों पर अमल हो रहा, उसे देखते हुए तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है। जिनेटी कहते हैं कि जलवायु की वजह से होने वाला विस्थापन बहुत बड़ी वैश्विक समस्या है।
उन्होंने कहा कि भविष्य में हम और भी भयानक मौसम की उम्मीद कर रहे हैं तो जरूरी है कि हम भावी जोखिमों की गंभीरता को समझें, इनके कारण क्या हैं और हम इन्हें रोकने के लिए क्या कर सकते हैं?
इस बीच आपदा राहत संस्था ऑक्सफैम का कहना है कि पिछले दशक में मौसम की विकट परिस्थितियों और जंगलों की आग के कारण हर साल 2 करोड़ लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े हैं। ऑक्सफैम का यह भी कहना है कि अगर दुनिया के नेताओं ने समय रहते कदम नहीं उठाए तो समस्याएं और बढ़ेंगी।
जिनेटी कहते हैं कि बाढ़ की वजह से बेघर होने वाले लोगों की संख्या को कम करने के लिए जो उपाय किए जा सकते हैं, उनमें अर्बन प्लानिंग बहुत अहम है। नदियों के किनारे ऐसी जगहों पर घर न बनाए जाएं, जहां बाढ़ आने का खतरा हो। इसके अलावा आपात स्थिति में लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाने की व्यवस्था में भी निवेश करना होगा।
जिनेटी कहते हैं कि भारत, बांग्लादेश और चीन जैसे देशों ने तूफान की स्थिति में लाखों लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने की व्यवस्था तैयार की है। सब सहारा अफ्रीकी देशों में भी इस तरह की क्षमताएं विकसित किए जाने की जरूरत है। अध्ययन बताते है कि बाढ़ के बढ़ते खतरों का सामना सिर्फ गरीब देशों को नहीं, बल्कि अमेरिका और दूसरे अमीर देशों को भी करना होगा। (फ़ाइल चित्र)
एके/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)