धरती तेजी से गर्म हो रही है। इसके कारण पौधे न तो पर्याप्त मात्रा में पराग उत्पादन कर पा रहे हैं और न ही सही से परागण हो पा रहा है। मधुमक्खियों और तितलियों की परागण क्षमता भी कम हो रही है। उत्तरी गोलार्ध में गर्मी खत्म होती है तो दक्षिण गोलार्ध में वसंत दस्तक देता है।
मधुमक्खियां और तितलियां उन फूलों को परागित करने की पूरी कोशिश करती हैं जो बाद में हमारे लिए भोजन बनते हैं। इनके साथ-साथ चमगादड़ से लेकर झींगुर तक कई अन्य जीव और कीट भी इस बात को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं कि सुपरमार्केट की अलमारियों में फल और सब्जियों का भंडार बना रहे। इस बीच पौधे भी मधु और पराग से भरे फूल तैयार कर रहे होते हैं।
हालांकि, जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ती गर्मी का असर अब इंसानों की तरह ही पौधों और पराग करने वाले जीवों पर भी देखने को मिल रहा है। सरसों से लेकर ब्लूबेरी जैसी फूलों वाली फसलें पर्याप्त मात्रा में मधु और पराग बनाने के लिए संघर्ष कर रही हैं ताकि मधुमक्खियां आकर्षित हो सकें और इनके बीजों को चारों ओर फैला सकें।
फिलहाल, यह प्रक्रिया काफी मुश्किल दौर से गुजर रही है, क्योंकि बीजों को फैलाने वाले प्रमुख जीव भी अपनी आबादी बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि उन्हें भी पर्याप्त पोषक तत्व के लिए भोजन चाहिए होता है। अगर पौधे पर्याप्त मधु और पराग नहीं बनाएंगे, तो उन्हें भोजन नहीं मिलेगा और उनकी आबादी संतुलित तौर पर नहीं बढ़ पाएगी।
इसका एक समाधान है जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में कटौती करना। इससे तेजी से बढ़ती गर्मी से निजात मिल सकती है और फसलों के साथ-साथ मधुमक्खियों को भी राहत मिल सकती है।
मधुमक्खियों और फसलों का गर्मी से बचाव
भीषण गर्मी के दौरान तापमान को नियंत्रित करने के लिए फसलों के ऊपर छाया बनाए रखना एक बेहतर रणनीति है। इससे फूलों वाली सब्जियों की फसलों की पैदावार बढ़ती है। इसका मतलब है कि पराग का बेहतर उत्पादन होता है।
मिट्टी में गीली घास की परतों का इस्तेमाल करने से भी अत्यधिक गर्मी के दौरान पानी को बनाए रखने और मिट्टी के तापमान को कम करने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, इस तरीके को अपनाने पर कद्दू में पराग के विकसित होने और मधुमक्खियों की आबादी को बनाए रखने में मदद मिली। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि उर्वरकों के इस्तेमाल को कम करना भी बेहतर उपाय है। इससे मधुमक्खियों को बेहतर गुणवत्ता वाला मधु मिलता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक आनुवांशिक रूप से अलग-अलग तरह की फसलें लगाने से पौधे जलवायु के मुताबिक खुद को बेहतर तरीके से ढाल पाते हैं। यह परागण करने वाले अलग-अलग जीवों की आबादी बनाए रखने, कीटों और रोगों को नियंत्रित करने के साथ-साथ मिट्टी के स्वास्थ्य और जैव विविधता को बनाए रखने की प्रभावी रणनीति है।
भीषण गर्मी का मधु और पराग पर असर
यूरोपीय संघ में लगभग 80 फीसदी फसलें और जंगली फूलों वाले पौधों की प्रजातियां काफी हद तक परागण पर निर्भर हैं। यूरोप में हर वर्ष करीब 3.7 अरब यूरो की कीमत का कृषि उत्पादन सीधे मधुमक्खियों जैसे परागणकों पर निर्भर है।
जलवायु परिवर्तन से मधुमक्खियों और फसलों के संबंधों पर किस तरह का असर पड़ रहा है, इसे लेकर 2021 में एक अध्ययन किया गया। अध्ययन के लेखकों ने कहा कि तापमान में वृद्धि और पानी की कमी का असर, मधुमक्खियों से परागण वाली प्रजातियों में फूलों की संरचना और मधु के उत्पादन दोनों पर देखने को मिला।
हर साल हजारों कीट लुप्त हो रहे हैं दुनिया से
अध्ययन में बोरेज (यूरोप में पाया जाने वाला पौधा जिसकी पत्तियों का इस्तेमाल सलाद के तौर पर किया जाता है) या स्टार फ्लावर पर गर्मी और पानी की कमी की वजह से पड़ने वाले प्रभाव पर विशेष ध्यान दिया गया। अध्ययन में पाया गया कि मधु में मिठास और एमिनो एसिड की मात्रा कम हो गई। साथ ही, मधु की मात्रा में भी 80 फीसदी कमी देखी गई। कम मिठास वाले मधु का मतलब है कि ऐसे फूलों के प्रति मधुमक्खियों के आकर्षित होने की संभावना कम हो जाती है।
पराग पर निर्भर है मधुमक्खियों का प्रजनन
शोधकर्ताओं का कहना है कि मधु में चीनी की मात्रा कम होने का नकारात्मक असर मधुमक्खियों की उड़ने की क्षमता पर पड़ता है। मिशिगन यूनिवर्सिटी में मधुमक्खी और पौधे के संबंध पर पीएचडी कर रही जेना वाल्टर्स कहती हैं कि मधुमक्खियां भोजन करते समय प्रोटीन वाले पराग की जगह चीनी वाले मधु को पसंद करती हैं। इससे उन्हें उड़ान भरने के लिए कार्बोहाइड्रेट और ऊर्जा मिलती है।
पराग का इस्तेमाल न सिर्फ पौधों को निषेचित करने के लिए किया जाता है, बल्कि इसका इस्तेमाल मधुमक्खी के लार्वा को खिलाने के लिए भी किया जाता है। गर्मी की वजह से पौधे पराग का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं, जो कि एक बड़ी समस्या बनती जा रही है।
वाल्टर्स के मुताबिक, पराग के सीमित उत्पादन का नतीजा सिर्फ कम प्रजनन के तौर पर ही देखने को नहीं मिलेगा, बल्कि लैंगिक असंतुलन भी पैदा हो सकता है। उन्होंने कहा कि पराग के कम होने पर, मादा की तुलना में नर बच्चे ज्यादा पैदा हो सकते हैं।
चूंकि मादा ही मुख्य रूप से पौधों और फसलों का परागण करती हैं, इसलिए आने वाले समय में परागण करने वाले जीवों की संख्या में कमी आ सकती है और परागण कम होने की वजह से फसल की पैदावार में गिरावट आ सकती है। वाल्टर्स ने कहा कि इससे मधुमक्खियों की आबादी भी प्रभावित होगी, क्योंकि मादा ही अंडे देती हैं और बच्चे पैदा करती हैं।
गर्मी से निपटने वाले तरीकों की खोज
जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है, गर्मी को बर्दाश्त करने वाली फसलों और पराग की नई नस्लों को विकसित करने की जरूरत बढ़ रही है, ताकि मधुमक्खियों को पर्याप्त भोजन मिल सके। फूल वाले कुछ पौधे दूसरों की तुलना में गर्मी को ज्यादा बर्दाश्त करते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि कुछ खास वाइल्डफ्लावर (वन फूल) पर पानी की कमी और बढ़ते तापमान का ज्यादा असर नहीं होता है।
वन फूल ऐसे फूल को कहा जाता है जो बिना किसी इंसानी देखरेख के स्वयं ही उगकर खिल जाते हैं। मौसम, बारिश और अलग-अलग जगहों के मुताबिक, अलग-अलग प्रजातियों के वन फूल मिलते हैं। ये खुद को मौसम के मुताबिक ढाल लेते हैं। इसलिए, शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें परागणकों को आकर्षित करने के लिए फसलों के आसपास के क्षेत्र में लगाया जा सकता है। इससे मधुमक्खियों की संख्या भी बढ़ेगी और फसलों की पैदावार भी।
इस बीच, वैज्ञानिक जलवायु के अनुकूल आसानी से ढल जाने वाले पौधों और गर्मी को बर्दाश्त करने वाले पराग की नस्लों को भी विकसित कर रहे हैं। वाल्टर्स के मुताबिक, भविष्य की 'गर्म मौसम के अनुकूल कृषि प्रणाली' विकसित करने के लिए जरूरी है कि फसल और परागण करने वाले जीवों के आपसी संबंधों पर गर्मी के असर को सबसे पहले समझा जाए।