भारत: कंपनियों का मुनाफा बढ़ा लेकिन कर्मचारियों की कमाई नहीं
कर्मचारियों के वेतन में पर्याप्त बढ़ोतरी ना होने पर अर्थव्यवस्था के धीमे होने का खतरा होता है। इससे आगे चलकर खुद कंपनियों को भी घाटा हो सकता है।
आदर्श शर्मा
वित्त वर्ष 2024 में कॉर्पोरेट कंपनियों का मुनाफा 15 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया लेकिन कर्मचारियों के वेतन में उतनी बढ़ोतरी नहीं हुई। बजट से पहले पेश किए गए वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी। इसमें कहा गया कि कर्मचारियों के वेतन में आया ठहराव स्पष्ट है, खासकर आईटी क्षेत्र की शुरुआती नौकरियों में। सर्वेक्षण के मुताबिक, कॉर्पोरेट के फायदे में हुई असमान वृद्धि आय असमानता के बारे में चिताएं बढ़ाती है।
क्यों नहीं बढ़ी कर्मचारियों की तनख्वाह
अर्थशास्त्र के रिटायर्ड प्रोफेसर और आर्थिक विषयों पर कई किताबें लिख चुके अरुण कुमार ने डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में कहा, "कोरोना महामारी के दौरान बेरोजगारी बढ़ गई और कंपनियों पर भी इसका असर पड़ा। इससे कर्मचारियों की मोलभाव करने की क्षमता कम हो गई। यानी अब वे ज्यादा वेतन की मांग नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्हें डर रहता था कि ऐसा करने पर उन्हें नौकरी से ना निकाल दिया जाए।”
वे आगे बताते हैं, "दूसरी तरफ कंपनियों की कीमत निर्धारित करने की क्षमता बढ़ गयी। यानी अब कंपनियां अपने उत्पादों और सेवाओं के दाम बढ़ा सकती थीं। ऐसे में उन्होंने दाम तो बढ़ा दिए लेकिन कर्मचारियों की तनख्वाह नहीं बढ़ाई। इससे कॉर्पोरेट सेक्टर का मुनाफा तो बढ़ा लेकिन कर्मचारियों का वेतन नहीं बढ़ा।”
वे इसके पीछे का एक अन्य कारण भी बताते हैं। वे कहते हैं, "कंपनियां देश में मौजूद बेरोजगारी का फायदा उठाती हैं। इसलिए पिछले 20-25 सालों में संगठित क्षेत्रों में भी कर्मचारियों को संविदा पर रखने का चलन बढ़ा है। संविदा यानी कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को उतनी सुविधाएं और वेतन नहीं मिलता है। साथ ही उनकी नौकरी पक्की भी नहीं होती है।”
क्या कम कमाई के चलते धीमी हो रही अर्थव्यवस्था
आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि कंपनियों ने अपनी वर्कफोर्स को बढ़ाने की तुलना में लागत में कटौती करने पर अधिक ध्यान दिया। इसके मुताबिक, 2024 में कंपनियों का मुनाफा 22.3 फीसदी बढ़ा लेकिन रोजगार में मात्र 1.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा, यह चेतावनी भी दी गई है कि वेतन में पर्याप्त बढ़ोतरी ना होने से मांग में कमी आ सकती है और अर्थव्यवस्था धीमी हो सकती है।
इसके संकेत दिखने भी लगे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल देश की अर्थव्यवस्था धीमी गति से बढ़ रही है। आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी 6.4 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। यह पिछले चार सालों में सबसे कम है। पिछले वित्त वर्ष (2023-24) में भारत ने 8.2 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की थी।
अरुण कुमार कहते हैं कि वेतन जितना कम होगा और जितनी ज्यादा गैर-बराबरी होगी, अर्थव्यवस्था को भी उसी हिसाब से नुकसान उठाना पड़ेगा। वे कहते हैं, "ज्यादातर कर्मचारियों का वेतन पहले से ही कम होता है। ऐसे में वे जितना कमाते हैं, उसका बड़ा हिस्सा खर्च कर देते हैं। इसलिए जब असल मायने में उनका वेतन नहीं बढ़ेगा तो वे कम खर्च कर पाएंगे। इससे बाजार में मांग कम हो जाएगी और अर्थव्यवस्था भी धीमी हो जाएगी।”
क्या कंपनियों को नहीं होगा कोई नुकसान
प्रोफेसर अरुण कुमार का मानना है कि जब कंपनियां अपने कर्मचारियों को कम वेतन देती हैं तो उनकी तात्कालिक बचत तो हो जाती है लेकिन उन्हें भविष्य में इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसकी वजह यह है कि अगर अर्थव्यवस्था धीमी होगी तो बाजार में उत्पादों और सेवाओं की मांग कम हो जाएगी और इसका सीधा असर कॉर्पोरेट कंपनियों पर ही होगा।
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन भी ऐसी चेतावनी दे चुके हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने दिसंबर 2024 में हुए एक सम्मेलन में कहा था कि कमाई का जो हिस्सा मुनाफे के रूप में कंपनियों के पास जाता है और जो हिस्सा वेतन के रूप में कर्मचारियों के पास जाता है, उन दोनों में एक अच्छा संतुलन होना चाहिए। उनका आशय यह था कि कंपनियां वेतन बढ़ोतरी के जरिए कर्मचारियों को भी कंपनी के मुनाफे का हिस्सेदार बनाएं।
आर्थिक सर्वेक्षण में भी कहा गया है कि सतत आर्थिक विकास, रोजगार से होने वाली आय को बढ़ावा देने पर निर्भर करता है क्योंकि आय बढ़ने से उपभोक्ता खर्च बढ़ता है और उत्पादन क्षमता में निवेश को बढ़ावा मिलता है। सर्वेक्षण यह भी कहता है कि लंबे समय तक स्थिरता बनाए रखने के लिए पूंजी और श्रम के बीच आय का उचित बंटवारा जरूरी है।
सरकार ने इस बार बजट में आयकर की सीमा भी बढ़ा दी है, जिससे लोगों के पास ज्यादा पैसा बचे। जनवरी में केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन की भी घोषणा कर दी है, जिससे आगे चलकर केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन बढ़ेगा। जानकार मानते हैं कि इसके बाद निजी कंपनियों में भी वेतन बढ़ोतरी को बढ़ावा मिल सकता है।
असंगठित क्षेत्र का मजबूत होना जरूरी
भारत की वर्कफोर्स में असंगठित क्षेत्र की बड़ी हिस्सेदारी है। साल 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, देश में 53.5 करोड़ कर्मचारी और श्रमिक थे। इनमें से करीब 44 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे थे। असंगठित क्षेत्र में वेतन कम होता है और नौकरी स्थायी नहीं होती है। श्रमिकों को छुट्टियां, महंगाई भत्ते और पेंशन जैसे लाभ नहीं मिलते। यानी यहां काम के हालात संगठित क्षेत्र जितने बेहतर नहीं होते।
प्रोफेसर अरुण कुमार मानते हैं कि असंगठित क्षेत्र के कमजोर होने की वजह से देश के सभी कर्मचारी और श्रमिक कमजोर पड़ जाते हैं। वे कहते हैं, "भारत में संगठित और असंगठित क्षेत्र में मिलने वाले वेतन के बीच भारी अंतर रहता है। ऐसे में संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को डर रहता है कि नौकरी जाने पर वे असंगठित क्षेत्र में चले जाएंगे। इसलिए वे वेतन बढ़ाने जैसी मांगों को मजबूती से नहीं उठा पाते।”
वे आखिर में कहते हैं, सरकार संगठित और असंगठित क्षेत्र के बीच मौजूद गैर-बराबरी पर बात नहीं कर रही है, असली असमानता तो वहीं है। अगर असंगठित क्षेत्र मजबूत होगा और वहां वेतन में बढ़ोतरी होगी तो संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को भी फायदा होगा। इसलिए असंगठित क्षेत्र पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।