एक शोध में पाया गया है कि नियमित रूप से डायबटीज की दवा मेटफॉरमिन लेने वाली महिलाओं में कोविड-19 के कारण जान जाने का खतरा कम हुआ। हालांकि पुरुषों में ऐसा नहीं पाया गया।
इस शोध को करने वाली यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा की रिसर्चर कैरोलिन ब्रमांटे बताती हैं कि हम जानते हैं कि मेटफॉरमिन का महिलाओं और पुरुषों पर अलग-अलग तरह का असर होता है। डायबिटीज की रोकथाम में वह पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर दोगुना ज्यादा असर करती है। उन्होंने बताया कि यह दवा शरीर में मौजूद एक प्रोटीन टीएनएफ-अल्फा की मात्रा को भी घटाती है। हालिया शोध दिखाते हैं कि इस प्रोटीन का स्तर बढ़ने से कोविड-19 के लक्षणों में बढ़ोतरी होती है।
मेटफॉरमिन को लेकर प्रयोगशाला में नर और मादा चूहों पर टेस्ट होते रहे हैं इसलिए यह जानकारी पहले से मौजूद है। लेकिन इंसानों पर ऐसे टेस्ट होना अभी बाकी है। कैरोलिन ब्रमांटे के अनुसार मेटफॉरमिन आसानी से मिलने वाली दवा है जिसका सेवन सुरक्षित भी है और सस्ता ही। ऐसे में इसे कोविड-19 के इलाज के विकल्प के रूप में देखा जा सकता है।
जिस रिसर्च की यहां बात हो रही है उसके लिए अमेरिका में 6,200 महिला और पुरुषों का डाटा जमा किया गया था, जो मधुमेह और मोटापे का शिकार थे। ये सभी लोग कोविड-19 से ग्रसित थे और इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने पाया कि जिन महिलाओं ने मेटफॉरमिन का 90 दिन का कोर्स पूरा किया था, उनमें से बहुत कम की ही जान गई जबकि इस दवा को न लेने वालों में मृत्यु दर काफी ज्यादा थी।
डॉक्टरों ने उनकी सेहत से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी नजर डाली और इस बात पर भी ध्यान दिया कि उनकी जान को और किस किस बीमारी से खतरा था या स्वास्थ्य के लिहाज से वे कितने फिट और कितने कमजोर थे। इस तरह से अन्य सभी रिस्क फैक्टर हटाने के बाद उन्होंने पाया कि दवा लेने वालों में जान जाने का खतरा 21 से 24 फीसदी तक कम था। हालांकि पुरुषों में इसी अध्ययन के दौरान ऐसा कोई फर्क देखने को नहीं मिला।
कोरोना महामारी के बीच दुनियाभर में कई तरह के शोध हो रहे हैं और उनके नतीजे भी साथ ही प्रकाशित किए जा रहे हैं। विज्ञान जगत में आमतौर पर ऐसा नहीं होता है। किसी भी शोध को सिद्ध करने के लिए उस पर काफी सारा डाटा जमा किया जाता है और फिर अन्य वैज्ञानिक उसकी समीक्षा भी करते हैं। लेकिन मौजूदा हालात में ऐसा नहीं हो रहा है। इसकी वजह यह उम्मीद है कि एक शोध शायद किसी दूसरे शोध में मदद दे सके। ऐसे में रिसर्च पेपर होने के बाद भी ऐसा नहीं है कि डॉक्टर फौरन ही मरीजों को डायबिटीज की दवा देने लगेंगे।