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शराब पीने में लड़कों के बराबर आ चुकी हैं पश्चिमी लड़कियां

हमें फॉलो करें शराब पीने में लड़कों के बराबर आ चुकी हैं पश्चिमी लड़कियां
, शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016 (11:51 IST)
पश्चिमी देशों में महिलाओं ने शराब पीने के मामले में पुरुषों की बराबरी कर ली है। एक सर्वे के मुताबिक 18 से 27 वर्ष की उतनी ही महिलाएं शराब पी रही हैं जितने पुरुष।
यह बराबरी सिर्फ शराब पीने के मामले में नहीं हुई है बल्कि शराब की लत लगने और नशाखोरी का इलाज कराने के मामले में भी दोनों बराबर आ गए हैं। 20वीं सदी के मध्य में शराब पीने वाले पुरुष महिलाओं से दोगुने ज्यादा थे। लेकिन तब से शराब पीने वाली महिलाओं की तादाद लगातार बढ़ती रही है। बीएमजे ओपन नामक पत्रिका में छपा अध्ययन बताता है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच यह अंतर छह फीसदी प्रति दशक के हिसाब से घटता गया है। और कुछ इलाकों में तो महिलाएं पुरुषों से आगे ही निकल गई हैं।
 
यह रिसर्च पिछले 68 अध्ययनों पर आधारित है। इनमें से ज्यादातर यूरोप में हुए थे लेकिन कुछ अध्ययन अमेरिका से भी लिए गए हैं। 1948 से 2014 के बीच हुए इन अध्ययनों में कुल मिलाकर 40 लाख लोगों का शराब पीने का व्यवहार समझा गया है। 16 अध्ययन तो 20 साल या उससे ज्यादा समय तक चलते रहे। पांच अध्ययन तीन दशक से ज्यादा समय तक चले।
 
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रिसर्च का नेतृत्व ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स के टिम स्लेड ने किया है। स्लेड यूनिवर्सिटी के नेशनल ड्रग एंड अल्कोहल रिसर्च सेंटर में पढ़ाते हैं। वह कहते हैं, "ऐतिहासिक रूप से तो शराब पीना और नशे की लत पुरुषों की समस्या मानी जाती रही है। लेकिन नई बातें सामने आई हैं जो बताती हैं कि नशाखोरी और इससे जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए जो कोशिशें हो रही हैं उनके केंद्र में खासकर युवा महिलाओं को रखे जाने की जरूरत है।"
 
पुरुषों और महिलाओं के बीच शराबखोरी को लेकर जो अंतर कम हो रहा है इसकी वजह यह बिल्कुल नहीं है कि पुरुष अब कम शराब पी रहे हैं। अध्ययन से साफ पता चलता है कि महिलाएं अब ज्यादा शराब पी रही हैं। और कुछ इलाकों में यह दूसरों के मुकाबले बहुत ज्यादा हो रहा है। जैसे एशिया में अब भी पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर ज्यादा है। ऑर्गनाइजेशन फॉर इकनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट के सदस्य अमीर देशों में 2012 में सालाना प्रति व्यक्ति 9.1 लीटर अल्कोहल इस्तेमाल हुआ था। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक 1990 में ज्यादा शराब पीना मृत्यु और अपंगता का आठवां सबसे बड़ा कारण था जो 2010 में बढ़कर पांचवां सबसे बड़ा कारण बन गया।
 
- वीके/एके (एएफपी)

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