Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बढ़ती फीस का असर : 40 लाख बच्चों ने निजी स्कूल छोड़े

हमें फॉलो करें बढ़ती फीस का असर : 40 लाख बच्चों ने निजी स्कूल छोड़े

DW

, गुरुवार, 5 मई 2022 (09:36 IST)
भारत में लाखों माता-पिता ने अपने बच्चों को निजी स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूलों में दाखिल करा दिया है। स्कूलों की बढ़ती फीस को वहन करना लोगों के बस से बाहर होता जा रहा है।

दिल्ली में वित्तीय सलाहकार के तौर पर काम करने वाले वकार खान की आय कोविड महामारी के आने के बाद से लगभग 20 फीसदी घट गई है। इस साल जब उनके बेटे के प्राइवेट स्कूल ने 10 प्रतिशत फीस बढ़ाई तो उनके पास वो स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूल में जाने के अलावा कोई चारा नहीं था।

एक छोटे से घर में रहने वाला तीन बच्चों वाला यह परिवार महंगाई के कारण निजी स्कूल छोड़ने वाले हजारों परिवारों में से एक है। 45 साल के वकार खान बताते हैं कि 2021 में उन्होंने अपने बड़े बेटे को भी प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में दाखिल करवा दिया था।

वकार खान कहते हैं, मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं था। पिछले दो साल से घर का खर्च 25 प्रतिशत तक बढ़ गया था। ऊपर से प्राइवेट स्कूल की फीस बढ़ गई।

चुनावों के खत्म होते ही जनता पर फिर पड़ी महंगाई की मार
भारत में महंगाई अपने चरम पर है और देश का गरीब और मध्यवर्ग इसकी आंच को सबसे ज्यादा झेल रहा है। उन्हें ऐसे-ऐसे खर्चे घटाने पड़ रहे हैं जैसा पिछले कई सालों में नहीं हुआ था। 2020 से लाखों परिवारों ने निजी स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूलों का रुख किया है।

बदल रहा है चलन
2021 में 40 लाख बच्चों ने निजी स्कूल छोड़े हैं, जो भारत के स्कूली छात्रों का चार प्रतिशत से ज्यादा है। भारत में नौ करोड़ से ज्यादा बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, जो कुल छात्रों का 35 प्रतिशत है। 1993 में सिर्फ 9 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते थे।

यह पिछले दो दशक से चले आ रहे चलन का उलटा है जबकि हर वर्ग के परिवारों में अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी थी। हर माता-पिता यह मान रहे थे कि निजी स्कूल उनके बच्चों को आधुनिक बाजार की मांग के हिसाब से रोजगार के लिए बेहतर तैयार कर सकते हैं। लेकिन कोविड और उसके बाद आई महंगाई ने इस चलन को पलट दिया है।

खान बताते हैं, मेरे परिवार की तो चूलें हिल गई हैं। कई बार तो बहुत निराश और बेबस महसूस होता है कि मैं इतनी मेहनत के बावजूद अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पा रहा हूं। खान की बेटी 12वीं में है और अभी भी निजी स्कूल में जा रही है क्योंकि उसके लिए किसी सरकारी स्कूल में सीट नहीं मिल पाई।

भारत के निजी स्कूलों की फीस का ढांचा बहुत ऊंचा और जटिल है। वहां कई तरह की फीस ली जाती है जो स्कूल के रुतबे के मुताबिक कुछ से कई हजार तक हो सकती है। और इस बार सिर्फ स्कूल फीस नहीं बढ़ी है बल्कि और खर्चे भी बढ़ गए हैं। जैसे कि बच्चों को स्कूल लाने ले जाने वाली वैन की फीस 15 प्रतिशत तक बढ़ गई है।

47 साल के अर्जुन सिंह एक स्कूल वैन चलाते हैं। उनकी अपनी तीन स्कूल वैन हैं। उन्होंने कहा कि अप्रैल से उन्होंने फीस 35 फीसदी बढ़ाई है क्योंकि तेल बहुत महंगा हो गया है। वह कहते हैं कि सीएनजी के दाम लगभग दोगुने हो चुके हैं। मार्च में भारत की मुद्रा स्फीति की दर 6.95 प्रतिशत पर थी, जो 17 महीने में सर्वाधिक है और केंद्रीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर है।

स्कूलों ने कहा, मजबूरी है
दिल्ली पेरंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम बताती हैं कि कई निजी स्कूलों ने इस साल से फीस 15 प्रतिशत तक बढ़ाई है। उनके संगठन ने कई निजी स्कूलों के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया था। इसके जवाब में दिल्ली की सरकार ने सरकारी स्कूलों में दाखिले की प्रक्रिया आसान कर दी और निजी स्कूलों के ऑडिट की भी बात कही। सरकार चाहती थी कि फीस की वृद्धि की सीमा 10 प्रतिशत कर दी जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

गौतम कहती हैं, ज्यादातर स्कूल माता-पिता को मजबूर कर रहे हैं कि बढ़ी हुई फीस दो नहीं तो नतीजे के लिए तैयार रहो।

यही स्थिति देश के अन्य शहरों में भी है। कोलकाता में पिछले महीने ही शहर के करीब 70 फीसदी निजी स्कूलों ने फीस में 20 प्रतिशत की वृद्धि की थी। स्कूल इस वृद्धि को सही ठहराते हैं। नेशनल प्रोग्रेसिव स्कूल्स कॉन्फ्रेंस की प्रमुख और आईटीएल पब्लिक स्कूल की प्रिंसीपल सुधा आचार्य कहती हैं कि स्कूलों पर भी महंगाई का असर हो रहा है। आचार्य ने बताया, स्कूल फीस बढ़ाए बिना शिक्षा की गुणवत्ता बरकरार रखना संभव नहीं है।

दिल्ली स्थित सेंटर स्क्वेयर फाउंडेशन ने एक अध्ययन में पाया कि 2021 में देश के साढ़े चार लाख निजी स्कूलों में से 70 प्रतिशत की न्यूनतम मासिक फीस एक हजार रुपए प्रति छात्र है। इन स्कूलों को महामारी के दौरान 20-50 प्रतिशत तक का घाटा झेलना पड़ा।
- वीके/सीके (रॉयटर्स)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बिना रूसी तेल के क्या यूरोप चल पाएगा