त्रिपुरा के किसानों की मेहनत और विभिन्न संगठनों के प्रयास से यहां पैदा होने वाले फलों और खाने-पीने की दूसरी चीजों का मध्यपूर्व, इंग्लैंड और जर्मनी तक निर्यात किया जा रहा है। त्रिपुरा देश में कटहल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। यहां जून से अगस्त के बीच इसकी बेहतरीन किस्म पैदा होती है।
त्रिपुरा में इन फलों की खेती की खास बात यह है कि किसान किसी भी किस्म के रसायनों का इस्तेमाल नहीं करते। हाल में एक टन रानी कटहल जर्मनी भेजे गए हैं। पहली बार राज्य से किसी फल का निर्यात जर्मनी को किया गया है। रेल मंत्रालय की ओर से चलाई गई किसान रेल ने उनको अपना माल दूसरी जगह भेजने का रास्ता आसान कर दिया है।
यूरोपीय देशों को निर्यात
त्रिपुरा ने तीन साल पहले मध्यपूर्व के देशों को कटहल और नींबू का निर्यात किया था। उसके बाद उसने कटहल की एक बड़ी खेप इंग्लैंड भेजी। इंग्लैंड के बाद हाल में राज्य के कटहल को हवाई मार्ग से जर्मनी भी भेजा गया है। त्रिपुरा सरकार ने अगर के पेड़ों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से अगले तीन वर्षों में इस क्षेत्र में दो हजार करोड़ रुपए के टर्नओवर का लक्ष्य तय किया है।
फलों के निर्यात में राज्य सरकार और किसानों की सहायता करने वाले एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपेडा) के एक अधिकारी बताते हैं, "त्रिपुरा में कटहल एक व्यावसायिक फल है। इसकी स्थानीय तौर पर भी भारी मांग है। इस फल में कार्बोहाइड्रेट्स के अलावा कैल्शियम, पोटैशियम और विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाया जाता है। एपेडा पूर्वोत्तर में पैदा होने वाली खाद्य सामग्री को देश के निर्यात नक्शे में शामिल करने का लगातार प्रयास कर रहा है।”
हॉर्टिकल्चर निदेशक डॉ. फणि भूषण जमातिया बताते हैं, "इंग्लैंड भेजी गई कटहल की पहली खेप में 350 फल थे। इनको पहले ट्रेन से दिल्ली भेजा गया और फिर वहां से हवाई मार्ग से इंग्लैंड। उन कटहलों का वजन तीन से चार किलो के बीच था और किसानों को एक कटहल की कीमत के तौर पर 30 रुपए मिले थे जो स्थानीय बाजारों में मिलने वाली कीमत से तीन गुनी ज्यादा है।” जमातिया का कहना है कि त्रिपुरा के कटहलों का स्वाद उनको खास बनाता है। इसलिए विदेशों में इसे काफी पसंद किया जा रहा है।
हाल में पहली खेप में एक टन रानी कटहल जर्मनी भेजे गए हैं। जमातिया के मुताबिक, कटहलों के साथ परीक्षण के तौर पर एक हजार सुगंधित नींबू भी जर्मनी भेजे गए हैं। विभिन्न संगठनों की सहायता से पहली बार राज्य से किसी फल का निर्यात जर्मनी को किया गया है।
खास है रानी अनानास
इससे पहले वर्ष 2019 की शुरुआत में राज्य से दुबई और मध्यपूर्व के दूसरे देशों को अनानास का निर्यात किया गया था। राज्य में अनानास की तीन किस्में पैदा होती है। लेकिन उनमें से रानी अनानास बेहद खास है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीन साल पहले इसे त्रिपुरा का राजकीय फल घोषित किया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, त्रिपुरा में 8,800 हेक्टेयर जमीन पर कटहल की खेती होती है और चार हजार किसान प्रत्यक्ष तौर पर इस काम से जुड़े हैं।
कटहल के विपणन से जुड़ी संस्था बासिक्स कृषि समृद्धि लिमिटेड के सदस्य बिप्लब मजुमदार बताते हैं, "इस साल कटहलों की दो खेप लंदन और एक खेप दुबई भेजी गई है। उसके बाद चौथी खेप जर्मनी भेजी गई है।”
किसान रेल से सहूलियत
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिपल्ब कुमार देब ने हाल में राजधानी अगरतला से पहली किसान रेल को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। वह बताते हैं, "किसान रेल की वजह से परिवहन लागत काफी कम हो जाएगी। पहले हवाई मार्ग से भेजने पर प्रति किलो 20 से 50 रुपए तक की लागत आती थी। लेकिन अब दिल्ली के लिए यह प्रति किलो 2।25 रुपए और गुवाहाटी के लिए 88 पैसे हो गई है।”
मुख्यमंत्री के मुताबिक, कोरोना की वजह से फिलहाल कटहल और अनानास का ही निर्यात किया जा रहा है। लेकिन राज्य में धान, नींबू, काजू और कश्मीरी सेब की भी पैदावार होती है। सरकार इनका निर्यात बढ़ा कर किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है।
रेलवे ने फलों और खाद्यान्नों की ढुलाई के लिए देश के कुछ मार्गों पर किसान रेल का संचालन शुरू किया है। इस रेलगाड़ी में किसानों की फल और सब्जी एक जगह से दूसरी जगह भेजी जाती है। त्रिपुरा के अनानास किसानों के लिए जनरल डिब्बे की रेलगाड़ी को ही किसान रेल बनाया गया है। त्रिपुरा से करीब 12 टन रानी अनानास लेकर पहली किसान रेल दिल्ली के आदर्शनगर स्टेशन पहुंची थी।
अगर की खेती को बढ़ावा
त्रिपुरा सरकार ने अगर पेड़ों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से अगले तीन वर्षों में इस क्षेत्र में दो हजार करोड़ रुपए के टर्नओवर का लक्ष्य रखा है। राज्य सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में 75 हजार किलो अगर चिप्स और 1500 किलो अगर तेल निर्यात करने की भी योजना बनाई है। फिलहाल राज्य में अगर के 50 लाख पेड़ हैं। सरकारी अदिकारियों का कहना है कि राज्य सरकार ने 2025 तक इन पेड़ों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है।
वर्ष 1991 में अगर की लकड़ी के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी। मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने त्रिपुरा में अगरवुड, 2021 नीति के एलान के बाद इस सिलसिले में प्रधानमंत्री से बात की है। अगर की लकड़ी को वुड्स ऑफ द गॉड' भी कहते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इस लकड़ी की कीमत एक लाख डॉलर प्रति किलो तक है। यह पेड़ दक्षिण-पूर्व एशिया के वर्षा वनों में पाया जाता है। दुनिया भर में अभी अगर की लकड़ी का कारोबार लगभग 32 अरब डॉलर का है।