Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

इस मामले में एक जैसे निकले अमेरिकी और तालिबान

Advertiesment
हमें फॉलो करें abortion

DW

, शुक्रवार, 3 सितम्बर 2021 (08:33 IST)
रिपोर्ट : ऋतिका पाण्डेय

यह देख कर हैरानी होती है कि जो अमेरिकी अफगानिस्तान में तालिबान के राज में महिलाओं के अधिकार छिनने पर चिंता जताते हैं, उनमें से कई अमेरिकी महिलाओं के अपने शरीर से जुड़ा गर्भपात का फैसला लेने का अधिकार छीनने के पक्षधर हैं।
  
अमेरिका के टेक्सस में महिलाओं पर आज तक का सबसे सख्त गर्भपात कानून लागू हो गया है। टेक्सस प्रांत में 1 सितंबर से लागू हुए कानून में महिलाओं को पहले 6 हफ्ते के भीतर गर्भपात कराने का अधिकार होगा, वो भी केवल मेडिकल कारणों से। अगर कोई मेडिकल इमरजेंसी ना हो तब तो कोई महिला इन 6 हफ्तों में भी अनचाहा गर्भ गिराने का निर्णय नहीं ले सकती। चूंकि टेक्सस में 85 से 90 फीसदी एबॉर्शन 6 हफ्तों के बाद ही होते आए हैं, ऐसे में व्यावहारिक रूप से यहां अब कोई एबॉर्शन नहीं हो सकेगा।
 
'हार्टबीट बिल' कहे जाने वाला यह कानून आज तक अमेरिका में लागू हुए गर्भपात कानूनों में सबसे सख्त है। इससे 'प्रो-लाइफ लॉबी' वाले अमेरिकियों को काफी बल मिला है। वे खुशी मना रहे हैं कि इस कानून के कारण कई और बच्चे दुनिया में आ सकेंगे। वहीं, महिलाओं को उनके अपने जीवन और शरीर से जुड़े और अधिकार दिए जाने के हिमायतियों की इससे हिम्मत टूटी है।
 
webdunia
धर्म की बैसाखी पर खड़ा 'हार्टबीट बिल'
 
इस कानून को 'हार्टबीट बिल' इसलिए कहा जाता है क्योंकि 6 हफ्तों में भ्रूण में बन रहे दिल के ऊत्तकों में धड़कन आ जाती है। अजन्मे बच्चों के जीने के अधिकार की वकालत करने वाले लोग ईसाई धार्मिक मान्यताओं का सहारा लेते हैं। कानूनी बाध्यताओं के कारण अगर महिलाओं को उनकी मर्जी के खिलाफ गर्भ पालने को मजबूर कर भी दिया जाए, तो जन्म के बाद उन बच्चों की परवरिश का जिम्मा कौन लेगा। इसके समर्थक तो आसानी से कह कर निकल लिए कि ऐसे बच्चों को गोद दिया जा सकता है या फॉस्टर केयर में रखा जा सकता है। लेकिन आज का हाल देखें तो पता चलेगा कि फिलहाल अमेरिकी फॉस्टर केयर में रहने वाले बच्चों की परवरिश भी ठीक से नहीं हो पा रही। ऐसे में और अनचाहे बच्चों को दुनिया में लाना और मां-बाप या परिवार के प्यार और साथ के बिना जीने को मजबूर करना क्या ज्यादा मानवीय विकल्प होगा?  
 
इस तरह तो हिन्दू धर्म में भी माना जाता है कि किसी की जान लेने का अधिकार किसी और को नहीं होता। यहां तक कि अपनी जान लेने का भी नहीं। लेकिन जब कानून बनते हैं तो उनमें केवल धर्म ही नहीं बल्कि समाज के मौजूदा ताने बाने और सभी इंसानों के लिए एक बराबरी वाला समाज बनाने पर जोर होता है। इस मामले में भारत के कानून विश्व के सबसे प्रगतिवादी कानूनों में शामिल दिखते हैं। गर्भपात कानून (एमटीपी एक्ट, 1971) में इसी साल हुए संशोधन के बाद तो भारत की हर महिला को, चाहे वह शादीशुदा हो या कुंवारी, बालिग या नाबालिग, बलात्कार की शिकार हो या गर्भनिरोधक तरीकों में भूल-चूक से गर्भ ठहर गया हो, उन्हें कानूनन 24 हफ्तों तक गर्भपात का अधिकार मिला हुआ है।   
 
ऐसे में, पहले से ही गैरबराबरी की शिकार महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले संगठनों का इस कानून के खिलाफ होना जायज है। उनका कहना है कि चूंकि ज्यादातर महिलाओं को पहले 6 हफ्तों में तो पता तक नहीं चलता कि वे गर्भवती हैं। ऐसे में उनके पास यह सोचने और निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं होगा कि वह इस गर्भ को पालना चाहती हैं या नहीं।
 
इससे भी बड़ी बात यह है कि इस कानून में उन महिलाओं का भी कोई जिक्र नहीं है जो किसी बाहरी या परिवारजन के यौन शोषण की शिकार होकर गर्भवती हो गई हों। क्या यह न्यायोचित होगा कि पहले ही ऐसी दुर्घटना से पैदा हुई मुसीबतें और ट्रॉमा झेल रही महिलाओं पर मां बनना भी कानूनन थोपा जाए? यह कानून तो समाज में सबको यह अधिकार देता है कि कोई भी 6 हफ्तों के बाद गर्भपात करवाने वाली महिला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा सकता है।
 
कानों को चीरती सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी
 
अमेरिका में 1973 के 'रो बनाम वेड' मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से पूरे देश में गर्भपात को कानूनी मान्यता मिली थी। हाल के सालों में इन अधिकारों को छीनने या काफी हद तक प्रतिबंध लगाने की मांग वाले कई कानून अमेरिका के उन दर्जन भर राज्यों में लागू किए गए हैं जहां रिपब्लिकन पार्टी की सरकारें हैं। कुछ राज्यों में फिलहाल ऐसे ही प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों पर सुनवाई चल रही है, तो कुछ मामलों पर सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की मांग की गई है। मिसीसिपी राज्य ने भी सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वो 'रो बनाम वेड' फैसले को पलट दे। मिसीसिपी में 2018 में पास किए गए एक कानून के तहत गर्भ धारण के 15 सप्ताह के बाद गर्भपात पर बैन लगा था। इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट के जज अक्टूबर में सुनवाई करने को तैयार हो गए।
 
लेकिन अब उसी सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इससे भी ज्यादा सख्त केवल 6 हफ्तों की सीमा वाले टेक्सस के कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, हालांकि निचली अदालत में इसकी सुनवाई जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट के 4 जज टेक्सस कानून को ब्लॉक करने के समर्थन में थे जबकि 5 इसके खिलाफ रहे। रिपब्लिकन पार्टी के नेता डॉनल्ड ट्रंप अपने राष्ट्रपति काल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कंजर्वेटिव सोच वाले 6 जजों को बिठाने में सफल रहे थे। केवल एक कंजर्वेटिव जज ने इस मामले में 3 लिबरल जजों का साथ दिया। इसका असर ट्रंप के जाने के बाद भी देश की सर्वोच्च न्यायालय के ऐसे फैसलों में नजर आ रहा है जो इंसान के रूप में महिलाओं की एजेंसी को छीनती नजर आ रही है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

तालिबान ने कहा, कश्मीर के मुसलमानों के लिए आवाज उठाने का उसे अधिकार