मेले कभी परंपराओं को निभाने का मौका होते हैं तो कभी त्योहारों को मौजमस्ती का मौका बनाने के. जर्मनी में इनका एक और रूप है फ्लीमार्केट की शक्ल में। यहां लोगों को ऐसे सामान मिलते हैं जो बाजार में उपलब्ध नहीं हैं।
मेला यानि लोगों का मिलन स्थल। यह हमारे समाज की सदियों पुरानी परंपरा है। बात भारत के कई हिस्सों मे तीज-त्योहारों पर लगने वाले मेले की हो, साप्ताहिक बाजार की या फिर हजारों किलोमीटर दूर जर्मनी के शहरों में लगने वाले फ्लीमार्केट की। बॉन शहर के राईनआउवे इलाके में लगने वाला मासिक मेला भी मशहूर है। सब मेले का स्वरूप एक है, बस परिवेश में बदलाव से थोड़ी विविधता आ जाती है।
"टेबल पर रखे प्रचलन से बाहर हो चुके पुराने कैमरे, पुरानी घड़ियां और दशकों पहले घर की शोभा बढ़ाने वाले अन्य सजावटी सामान।" बॉन शहर में राइन नदी के किनारे खूबसूरत राईनआउवे पार्क में इस्तेमाल की गई वस्तुओं को बेचने के लिए फ्लीमार्केट मेला लगा है। 75 वर्षीय युर्गेन काम अपने सारे सामानों को दो मेजों पर रख कर बेच रहे हैं। वे बताते हैं कि यह मेला 3 दशक से ज्यादा समय से यहां लग रहा है। वे खुद यहां पिछले 3 सालों से आ रहे हैं। उनका कहना है कि इस मेले की अपनी अलग पहचान है। कई सारी ऐसी वस्तुएं जो बाजार में नहीं मिलती, वह सब भी यहां मिल जाती है। लोग एंटीक चीजों को खरीदने आते हैं। वे कहते हैं कि मार्च महीने से लेकर अक्टूबर महीने तक महीने के हर तीसरे शनिवार को यह मेला लगता है। सुबह पांच बजे से दुकाने सजनी शुरू हो जाती है और शाम चार बजे तक लोग अपने-अपने सामानों को बेचते हैं।
बच्चों को सीख
इस मेले में पहली बार सामान बेचने आए मार्क कोएपर कहते हैं, "हम अपने बच्चों को भी यहां लेकर आए हैं ताकि उन्हें यह सिखाया जा सके कि भविष्य में खरीदारी कैसे करनी है। कैसे किसी को सामान बेच सकते हैं। यह न सिर्फ एक मेला है बल्कि मिलने-जुलने की भी जगह है। दोस्तों से मुलाकात होती है। बाहर के लोग यहां आते हैं। जर्मनी घूमने आए लोग खास कर इस बाजार को देखने आते हैं। ऐसे में कई तरह की सांस्कृतिक विविधता इस मेले में देखने को मिलती है।" इस मेले में कुछ बच्चे भी आए हैं जो कि अब अपने माता पिता के साथ मिलकर दुकान सजाए हुए हैं। बच्चे ने बताया कि वह सुबह से लेकर अभी तक किताबें और जूते सहित कई सामान बेच चुका है। उसने 6 यूरो कमाया है। वह कहता है, "हम यहां अपने मां पिताजी के साथ आए हैं। हम अभी से ही सामान खरीदने और बेचने का ट्रेनिंग ले रहे हैं ताकि भविष्य में हमें किसी तरह की परेशानी ना हो। हम खुद अपने पैरों पर खड़े हो सकें।"
बॉन में करीब 40 वर्षों से फ्लीमार्केट लगाया जा रहा है। पहले यह बॉन शहर के यूनिवर्सिटी एरिया के आसपास लगता था। बाद में यह राईनआउवे के समीप लगने लगा। पहले बॉन की नगरपालिका मेले का संचालन करती थी लेकिन पिछले 10 सालों से यह 'मिलान' संस्था द्वारा किया जा रहा है। मिलान के अधिकारी बताते हैं, "इस मेले में अपनी दुकान लगाने के लिए 1 वर्ग मीटर जगह के लिए 8 यूरो विक्रेताओं को देने पड़ते हैं। सामान्य दिनों में 1000 यूरो से लेकर 1200 तक की कमाई मेला प्रशासन को हो जाती है। अभी तक एकबार में सबसे अधिक 3400 वर्ग मीटर जगह उन्होंने किराए पर दी है।"
सस्ते में सामान
जर्मनी सहित कई देशों के लोग इस मेले में आए हैं। 22 साल से जर्मनी में रह रहे ईरान मूल के शिक्षक मोहम्मद सांदेवाड कहते हैं, "मैं 22 सालों से जर्मनी में रह रहा हूं। अक्सर इस मेले में आता हूं। यहां मुझे काफी सारी जरूरत की चीजें मिल जाती है। इसके लिए मुझे काफी कम पैसे खर्च करने पड़ते हैं। यदि मैं इन चीजों को बाहर बाजार से खरीदता तो ज्यादा पैसे चुकाने होते। दूसरी बात यह है कि यहां एक तरह से पिकनिक जैसा माहौल भी लगता है। खाने की भी वस्तुओं के स्टॉल लगे हैं। कुछ ऐसे सामान भी यहां हैं जो कि आमतौर पर अब बाजार में नहीं मिलते हैं।"
मेले में कई तरह की दुकानें लगी हुई हैं। जैसे ही ट्राम से उतरकर आप मेले की ओर बढ़ते हैं तो देखते हैं कि पुराने सिक्के मिल रहे हैं। हथौड़ी से लेकर के पुराने हथियार, जिसे लोग धरोहर के रूप में सुरक्षित रखना चाहते हैं वह सभी यहां मिल रहे हैं। एक तरफ किताबों की दुकान सजी हुई है तो दूसरी तरफ म्यूजिक कैसेट बिक रहे हैं। बगल में बर्तन की भी दुकानें हैं जहां से आप रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले बर्तन खरीद सकते हैं। उसके आगे बढ़ने पर कई सारी कपड़ों की दुकानें हैं। कुछ और आगे बढ़ते हैं तो खाने के स्टॉल लगे हुए हैं। मेले में आए लोगों को किसी तरह की असुविधा ना हो इसके लिए चलंत शौचालय लगाए गए हैं। सुरक्षा का ध्यान रखने के लिए पुलिसकर्मी भी मौजूद हैं।
बगल की कमाई
कुछ ही दूर आगे बढ़ने पर हमें एक दुकान दिखाई दिया जहां कई सारी ऐसी चीजें रखी थी जो शायद ही बाजार में मिलती हो। दुकानदार का नाम स्टीफन है। जर्मनी के रहने वाले हैं। दो दशक से ज्यादा समय से आ रहे हैं। उन्होंने बताया, "मैं मूल रूप से केमिकल टेक्निकल असिस्टेंट के रूप में काम करता हूं लेकिन प्रत्येक मेले में अपने सामान बेचने आता हूं। मैं यहां फर्नीचर और बच्चों के लिए खिलौने सहित अन्य सामान बेचता हूं। मेरे पास कुछ पुरानी चीजें भी रहती है और नई चीजें भी रहती है।" कुछ ही दूर आगे बढ़ने पर एक महिला इलेक्ट्रॉनिक सामान बेच रही थी। एक सेकंड हैंड हेडफोन की कीमत पूछने पर उन्होंने 5 यूरो बताया। उन्होंने कहा कि यह उनके पति का है। अब वह इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं इसलिए वह इसे यहां बेचने ले आई हैं:
यूं कहें तो या एक सिर्फ मेला नहीं है बल्कि जर्मनी के बॉन शहर की अपनी एक पहचान है। इसे धरोहर कहना भी गलत नहीं होगा। पिछले बहुत सारे सालों में यह एक ऐसी जगह बन गया है जहां लोग कुछ खास पाने की उम्मीद में चले आते हैं। चारों तरफ छोटी पहाड़ियां, तालाब, ऊंची नीची भूमि और हरियाली से घिरा यह पूरा क्षेत्र एक पिकनिक स्पॉट की तरह लगता है, लोग यहां से अपनी जरूरत का सामान तो खरीदते ही हैं यह उनके लिए घूमने फिरने की भी अच्छी जगह है।