जर्मन संसद के अध्यक्ष वोल्फगांग शोएब्ले ने कहा, जर्मनी में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिले 100 साल हो गए, लेकिन अब भी देश में पूरी तरह लैंगिक बराबरी नहीं लाई जा सकी है। महिलाओं को मताधिकार मिलने की सौवीं वर्षगांठ के मौके पर संसद को संबोधित करते हुए बुंडेसटाग के अध्यक्ष शोएब्ले ने कहा, वैसे तो महिलाएं लंबे समय से शीर्ष राजनीतिक पद संभाल रही हैं, लेकिन ऐसी इक्का दुक्का कामयाबी को सबकी जीत नहीं माना जा सकता।
जर्मनी के सबसे बुजुर्ग सांसद ने कहा कि आज भी बच्चे पालना, परिवार का ख्याल रखना और घर के काम काफी हद तक महिलाओं के ही माने जाते हैं। उन्होंने कहा कि सब इस बात को मोटे तौर पर मानते हैं कि ये काम आदमी और औरत के बीच बराबरी से बंटने चाहिए, लेकिन पुरुषों को कई बार इसे लागू करवाने के लिए झकझोरना पड़ता है।
वाइमार रिपब्लिक के समय जर्मनी में महिला अधिकारों में बहुत बढ़ोतरी हुई। वाइमार संविधान में सन् 1919 में दोनों लिंगों के बीच बराबरी लाने का एक बड़ा कदम उठाते हुए महिलाओं को भी मताधिकार दिया गया। 19 जनवरी, 1919 के चुनाव में पहली बार वोट देने लायक करीब 80 फीसदी महिलाओं ने अपने नए अधिकार का इस्तेमाल किया था। इन चुनावों में 37 महिलाएं संसद की सदस्य चुनी गई थीं, जहां से जर्मन लोकतंत्र का जन्म हुआ माना जाता है। महिलाओं को देश के चुनावों में अपना मत देने का पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने का निर्णय 12 नवंबर 1918 को हुआ था।
इस ऐतिहासिक कदम के 100 साल पूरे होने के अवसर पर कई नेताओं ने संसद में अपने विचार रखे और कुछ ने इस पर अफसोस जताया कि 2017 के जर्मन चुनाव के बाद जर्मन संसद में चुनकर आने वाली महिलाओं की संख्या पिछली संसद के 36 से घटकर इस बार 31 प्रतिशत से भी कम हो गई। इतनी महिलाएं तो सन् 1998 की संसद में हुआ करती थीं।
महिला मामलों की मंत्री रह चुकीं सोशल डेमोक्रैटिक नेता क्रिस्टीने बेर्गमान ने कहा, हमें सावधान रहना होगा कि कहीं यह ट्रेन पीछे की ओर ना चलती जाए। उन्होंने कहा कि एक बार फिर महिलाओं और पुरुषों के लिए बराबर मौकों पर सवाल उठाने वालों की सामाजिक मान्यता बढ़ती दिख रही है। जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर ने भी उम्मीद जताई कि महिला प्रतिनिधियों की तादाद में आई ऐसी गिरावट जल्दी ही थमेगी।
- आरपी/एमजे (डीपीए, एफपी)