जर्मनी ने रूसी गैस और तेल के आयात पर पूरी तरह से बैन लगाने से इंकार कर दिया है, लेकिन अब यह मांग बढ़ रही है कि देश आर्थिक जरूरतों की जगह नैतिकता का साथ दे।
अमेरिका और ब्रिटेन के रूसी तेल पर पूरी तरह से बैन लगा देने के बाद जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और जी7 के दूसरे सदस्य देशों पर ऐसा ही करने का दबाव बढ़ रहा है। 9 मार्च को क्लाइमेट एक्टिविस्टों, शिक्षाविदों, लेखकों और वैज्ञानिकों के एक समूह ने जर्मन सरकार को एक खुला पत्र लिखा।
पत्र में उन्होंने सरकार से रूसी ऊर्जा पर पूरी तरह से बैन लगाने की मांग की और कहा है कि हम सब इस युद्ध का वित्त-पोषण कर रहे हैं। इसी हफ्ते कंजर्वेटिव जर्मन सांसद और विदेश नीति के जानकार नॉर्बर्ट रोएटगेन का एक लेख एक अखबार में छपा जिसमें उन्होंने लिखा कि रूस के तेल और गैस के व्यापार को तुरंत रोकना एकमात्र सही रास्ता है।
अस्थिरता का डर
उन्होंने लिखा कि पुतिन के युद्ध कोष में हर रोज लगभग 1 अरब यूरो डाले जा रहे हैं और इससे रूस के केंद्रीय बैंक के खिलाफ लगाए गए हमारे प्रतिबंध नाकाम हो रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि अगर हम अभी झिझके तो कई यूक्रेनियों के लिए बहुत देर हो जाएगी।
अभी तक शॉल्त्स की सरकार का इस विषय पर रुख बदला नहीं है। सरकार की दलील है कि प्रतिबंधों की वजह से उन्हें लागू करने वाले देशों के अस्थिर होने का जोखिम नहीं खड़ा होना चाहिए। चूंकि जर्मनी अपने जरूरत की आधी गैस और कोयला और करीब एक तिहाई तेल रूस से लेता है, विशेषज्ञों का कहना है कि बिजली एकदम से ठप हो जाए ऐसी स्थिति को बचाने के लिए एक परिवर्तन काल की जरूरत होगी।
विदेश मंत्री अनालेना बायरबॉक ने 8 जनवरी को चेतावनी दी थी कि अगर हालात ऐसे हो गए कि नर्सें और शिक्षक काम पर जाना छोड़ दें और हमें कई दिन बिना बिजली के गुजारने पड़ें। तब पुतिन युद्ध को आंशिक रूप से जीत जाएंगे, क्योंकि उन्होंने दूसरे देशों को अव्यवस्था में धकेल दिया होगा।
जर्मनी के नाजुक हालात को रेखांकित करते हुए बायरबॉक ने एक साक्षात्कार के दौरान माना कि वित्त मंत्री रॉबर्ट हाबेक पूरी दुनिया में कोयला खरीदने की अत्यावश्यक रूप से कोशिश कर रहे हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सम्पूर्ण बैन दर्द दायक तो होगा, लेकिन असंभव नहीं।
क्या जर्मनी के लोग तैयार हैं?
इसी सप्ताह छपे एक अध्ययन में 9 अर्थशास्त्रियों ने लिखा कि रूस के तेल और कोयले की जगह आसानी से दूसरे देशों के आयात ले सकते हैं, हालांकि गैस के लिए यह थोड़ा मुश्किल होगा। अध्ययन में कहा गया कि अगर दूसरे पूर्तिकर्ता पूरी तरह से रूसी गैस का विकल्प ना दे पाएं तो परिवारों और व्यापारियों को आपूर्ति में 30 प्रतिशत गिरावट स्वीकार करनी होगी और जर्मन की कुल ऊर्जा खपत 8 प्रतिशत गिर जाएगी।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, देश की जीडीपी भी 0.2 से 3 प्रतिशत तक गिर सकती है और प्रतिबंधों की वजह से हर जर्मन नागरिक पर 1 साल में 80 से 1,000 यूरो का बोझ बढ़ सकता है। लियोपोल्दीना नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज ने भी कहा है कि अस्थायी रूप से रूसी गैस की आपूर्ति को रोकना जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किल लेकिन संभव है। संस्थान ने यह भी कहा कि इससे अगली सर्दियों में ऊर्जा के संकट हो सकते हैं।
लेकिन उपभोक्ताओं को दामों के बढ़ने से बचाने के लिए और अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए काफी बड़े सरकारी समर्थन की जरूरत होगी। कई पर्यवेक्षकों ने यह दलील भी दी है कि जर्मनी इसी साल परमाणु ऊर्जा से निकल जाने के अपने लक्ष्य को आगे भी बढ़ा सकता है।
एंजेला मर्केल के सलाहकार रहे कंजर्वेटिव क्रिस्टोफ ह्यूसगेन ने एआरडी चैनल को बताया कि जर्मनी के लोग मदद करने के लिए अपने घरों को थोड़ा ठंडा रखने के लिए भी तैयार हैं। इसी सप्ताह छपे यूगव के एक सर्वे के मुताबिक, अधिकांश जर्मन रूसी तेल और गैस के बॉयकॉट का समर्थन करेंगे। 54 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो या पूरी तरह या थोड़ा सहमत हैं।