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बीता महीना था इतिहास में दूसरा सबसे गर्म मार्च

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DW

, शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023 (08:14 IST)
यूरोपीय संघ की जलवायु निगरानी एजेंसी ने कहा है कि बीता मार्च धरती का दूसरा सबसे गर्म मार्च था। इससे पहले ठीक इतनी ही गर्मी 2017, 2019 और 2020 में भी दर्ज की गई थी।
 
यूरोपीय संघ की जलवायु संस्था कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के मुताबिक इसी मार्च में अंटार्कटिक समुद्री बर्फ अपने दूसरे सबसे निचले स्तर पर चली गई थी। उसकी रिपोर्ट कंप्यूटर द्वारा बनाए गए विश्लेषण पर आधारित है जिसे दुनिया भर के सैटलाइटों, जहाजों, विमानों और मौसम स्टेशनों से लिए गए अरबों आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिणी और केंद्रीय यूरोप में तापमान औसत से ऊपर था और उत्तरी यूरोप के अधिकांश हिस्सों में तापमान औसत से नीचे था। लेकिन उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण पश्चिमी रूस, एशिया, उत्तर पूर्वी उत्तर अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और तटीय अंटार्कटिका के अधिकांश हिस्सों में औसत से काफी ज्यादा था।
 
सिकुड़ती समुद्री बर्फ
इसके ठीक उलट, पश्चिमी और केंद्रीय उत्तरी अमेरिका में तापमान औसत से काफी कम था। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्री बर्फ पिघल रही है और समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे इस तरह की चेतावनियां भी बढ़ती जा रही हैं कि धरती खतरनाक स्तर तक पहुंच सकती है।
 
एजेंसी का कहना है कि अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 28 प्रतिशत नीचे था। यह सैटलाइट डाटा के 45 सालों के इतिहास में मार्च में दर्ज किया गया दूसरे सबसे नीचा स्तर था। यह औसत 32 लाख वर्ग किलोमीटर तक ही पहुंच पाया, जो 1991 से 2020 तक के मासिक औसत से करीब 12 लाख वर्ग किलोमीटर कम है।
 
फरवरी में तो यह इतिहास में सबसे कम इलाके में सिमट गया था। यह लगातार दूसरी बार था जब ऐसा हुआ। पिछले एक दशक से इसमें लगातार कमी आ रही है। इस बीच उत्तर में आर्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से चार प्रतिशत नीचे था, बावजूद इसके कि ग्रीनलैंड सागर में बर्फ औसत से ज्यादा थी।
 
अभी तक सबसे गर्म मार्च 2016 में दर्ज किया गया था। मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया भर में तापमान बढ़ता जा रहा है। मार्च में ही संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि तीन से चार दशकों में ये रिकॉर्ड तोड़ने वाले तापमान सबसे ठंडे तापमानों में गिने जाएंगे। अगर धरती को गर्म करने वाले उत्सर्जन जल्द ही कम कर दिए जाएं तो भी ऐसा होने से रोका नहीं जा सकता है।
 
सीके/ओएसजे (एएफपी)

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