भारत इतिहास के एक नए युग की शुरुआत कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो इतिहास का पुनर्लेखन किया जा रहा है। यह वह इतिहास है जो छठी से 12वीं कक्षा तक स्कूलों में छात्र-छात्राओं को पढ़ाया जाता है। अधिकारियों ने हिंदू राष्ट्रवाद को लेकर महात्मा गांधी की असहमति के साथ-साथ अन्य घटनाओं से जुड़े कुछ संदर्भों को हटाने के लिए इतिहास और राजनीति की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव किया है।
भारत के बड़े हिस्से पर मुगलों के सैकड़ों वर्षों के शासन से जुड़े अध्याय में भी बदलाव किया गया है। सिर्फ यही नहीं, बल्कि गुजरात में हुए 2002 के दंगों से जुड़े संदर्भों को भी पुस्तकों से हटा दिया गया है। इस दंगे में करीब 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे, जिसमें ज्यादातर मुस्लिम थे। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे, जो सन 2014 से भारत के प्रधानमंत्री हैं।
आलोचकों ने भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन के प्रयासों की निंदा की और कहा कि सरकार हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे के अनुरूप बनाने के लिए पुस्तकों में संशोधन कर रही है। वहीं दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि इन बदलावों का उद्देश्य पाठ्यक्रम की तर्कसंगत व्याख्या करना है। साथ ही, छात्रों के बोझ को कम करना है।
'इसे हटा दिया गया है और मुझे लगता है कि यह अच्छा है'
नई दिल्ली के आदर्श पब्लिक स्कूल में छात्रों को संशोधित पाठ्यपुस्तकें पहले ही मिल चुकी हैं। अब वे महात्मा गांधी के हत्यारे हिंदू राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे का पूरा इतिहास नहीं जान पाएंगे। उन्हें जाति व्यवस्था से जुड़ी कई बातों की जानकारी भी नहीं मिल पाएगी। कई सामाजिक आंदोलनों से जुड़े अध्यायों को भी पुस्तकों से हटा दिया गया है। कई सदियों तक भारत के कुछ हिस्सों पर मुगल सल्तनत का शासन था, वह भी अब किताबों में पढ़ने को नहीं मिलेगा।
आदर्श स्कूल की प्राचार्या पूजा मल्होत्रा इन बदलावों का समर्थन करती हैं। उनका मानना है कि ये बदलाव स्कूली बच्चों के लिए, भारतीय इतिहास के सकारात्मक पक्ष को सामने लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कक्षा में वह विद्यार्थियों को बताती हैं कि इतिहास के सभी अप्रासंगिक हिस्सों को हटा दिया गया है। ऐसा उनके हित को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
पूजा ने डीडब्ल्यू से कहा, "मुझे लगता है कि हर कोई जानता है कि नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की थी, लेकिन यह मामला हिंदू-मुस्लिम से जुड़ा हुआ है, इसलिए इस पर काफी ज्यादा हो-हल्ला मच रहा है। अब इसे हटा दिया गया है और यह अच्छा कदम है।”
गांधी जी की हत्या से जुड़ा हिस्सा हटाया गया
द इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने उन खास उदाहरणों पर गौर किया है जिनमें महात्मा गांधी की मृत्यु से जुड़े पैराग्राफ को 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया है।
संशोधन के दौरान कुछ पंक्तियों को हटाया गया है। जैसे, "उन्हें (गांधी जी को) वे लोग विशेष रूप से नापसंद करते थे जो चाहते थे कि हिंदू बदला लें या जो चाहते थे कि भारत हिंदुओं के लिए एक देश बने जैसे कि पाकिस्तान मुसलमानों के लिए था...” और "हिंदू-मुस्लिम एकता के उनके दृढ़ प्रयास ने हिंदू चरमपंथियों को इतना उकसाया कि उन्होंने [गांधी] की हत्या के कई प्रयास किए।”
अधिकारियों ने उन पंक्तियों को भी हटा दिया जिनमें महात्मा गांधी की मौत के बाद हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन चलाने वाले कई समूहों के खिलाफ प्रतिबंध की बात कही गई थी, जैसे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसी तरह के अन्य समूह।
मूल पाठ्यपुस्तक में कहा गया था कि 1948 में गांधी जी की हत्या से "देश में सांप्रदायिक स्थिति पर लगभग जादुई प्रभाव पड़ा... भारत सरकार ने सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाले संगठनों पर कार्रवाई की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था।”
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सार्वजनिक और निजी स्कूलों के लिए नए संस्करण जारी किए हैं। स्कूलों में अब नई किताबें पढ़ाना अनिवार्य कर दिया गया है।
शिक्षा को वैचारिक हथियार' में बदल दिया गया
इन बदलावों ने भारतीय मीडिया और शैक्षणिक जगत में एक नई राष्ट्रीय बहस छेड़ दी है। नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों ने पाठ्यपुस्तकों में हुए बदलावों को वापस लेने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए एक सभा का आयोजन किया। इतिहासकार सुचेता महाजन ने इतिहास की चुनिंदा तरीके से पढ़ाई के खतरों के बारे में छात्रों से बात करते हुए बदलावों की पुरजोर निंदा की। तीन दशकों से इस विश्वविद्यालय में पढ़ा रहीं सुचेता इन बदलावों को इतिहास मिटाने और उसे हथियार बनाने के प्रयास के तौर पर देखती हैं।
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मौजूदा सरकार और उसकी पिछली पीढ़ियों ने इसे वैचारिक हथियार या उपकरण बना लिया है, ताकि वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और इस देश को हिंदू प्रभुत्व देश में बदलने की बौद्धिक और सांस्कृतिक परियोजना में इसका इस्तेमाल कर सकें। यह उसी एजेंडे का हिस्सा है।”
विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव शुरू करके सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी युवा पीढ़ी के मस्तिष्क को प्रभावित करने का प्रयास कर रही है। ये युवा आधे-अधूरे और तोड़े-मरोड़े गए इतिहास को पढ़ते हुए बड़े होंगे।
सुचेता महाजन और कई अन्य आलोचक भी इन बदलावों को भारत के इतिहास से मुसलमानों को मिटाने के सत्तारूढ़ दल के प्रयासों के तौर पर देखते हैं। ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है, क्योंकि भाजपा ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों में मुस्लिम शासकों के नाम वाली सड़कों का नाम बदलना शुरू कर दिया है।
भाजपा ने इस कदम की सराहना की
भाजपा इन बदलावों को बैलेंसिंग एक्ट (संतुलित कार्रवाई) के तौर पर देख रही है। बीजेपी प्रवक्ता टीना शर्मा ने अपने स्कूली दिनों को याद करते हुए कहा कि उन्हें जो इतिहास पढ़ाया गया था उसमें मुगल शासकों का महिमामंडन किया गया था। उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने हमेशा राष्ट्र-विरोधी इतिहास' को बढ़ावा दिया है।
शर्मा ने डीडब्ल्यू से कहा, "बीजेपी ने कुछ सड़कों और स्मारकों के नाम भी बदले हैं, ताकि बच्चों को सकारात्मक तरीके से इतिहास की जानकारी मिले। हमने उन गलत लोगों के नाम हटाए हैं जिन्होंने निश्चित रूप से भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ी और भारत के साथ अन्याय किया। कांग्रेस के शासनकाल में लिखी गई पिछली किताबों में उनका महिमामंडन किया गया था।”
पहली नजर में देखने पर लगता है कि इतिहास की किताबों में बदलाव करने का हालिया प्रयास अप्रत्याशित है, लेकिन ऐसा नहीं है। भाजपा लंबे समय से एक समान सांस्कृतिक इतिहास को बढ़ावा देने का प्रयास करती रही है। 2019 के भाषण में, गृह मंत्री अमित शाह ने इतिहासकारों से ऐसा करने का आग्रह किया था। शाह ने कहा था, "अपना इतिहास लिखना हमारी जिम्मेदारी है।”