-चारु कार्तिकेय
एक नए अध्ययन ने फूड डिलीवरी की नौकरी के फायदों और कमियों पर रोशनी डाली है। इनकी वजह से युवाओं को नौकरी मिल रही है और अपना शहर छोड़कर जाना भी नहीं पड़ रहा है। लेकिन क्या इन नौकरियों में लगे युवाओं का भविष्य उज्ज्वल है?
यह अध्ययन जानी-मानी शोध संस्था नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) ने करवाया है। इसके तहत शोधकर्ताओं ने एक ही फूड डिलीवरी कंपनी के लिए 28 शहरों में काम करने वाले 924 लोगों से बात की। 2 तरह के कर्मियों के हालात की समीक्षा की गई है- 11 घंटों की शिफ्ट में काम करने वाले कर्मी और 5 घंटों की शिफ्ट या वीकेंड या कुछ खास दिनों पर यह काम करने वाले कर्मी।
इनमें से 99 प्रतिशत कर्मी पुरुष थे, अधिकांश 35 साल से कम उम्र के थे, आधे टीयर वन शहरों से थे और बाकी आधे टीयर टू और थ्री शहरों से थे। इनमें से सबसे ज्यादा (31.9 प्रतिशत) दक्षिण के शहरों से थे, 30.6 प्रतिशत पश्चिम के शहरों से, 18.7 प्रतिशत उत्तर से और 18.7 प्रतिशत कर्मी पूर्वी शहरों से थे।
प्लेटफॉर्म इकॉनॉमी के फायदे
अध्ययन में इस तरह के रोजगार के अवसरों का सबसे बड़ा फायदा यह बताया गया है कि इनसे स्थानीय नौकरियां उत्पन्न होती हैं यानी नौकरी की तलाश करते लोगों को अपना शहर छोड़कर पलायन नहीं करना पड़ता है। सर्वे के लिए जिन लोगों से बात की गई उनमें से 70 प्रतिशत स्थानीय थे और अपने अपने गृह शहरों में ही काम कर रहे थे।
दूसरा फायदा यह है कि इस सेक्टर से रोजगार को फॉर्मल या औपचारिक बनाने में मदद मिल रही है। इस तरह की नौकरियां पूरी तरह से फॉर्मल तो नहीं हैं, लेकिन इनमें कम से कम औपचारिक रूप से कॉन्ट्रैक्ट मिलते हैं और कंपनी की तरफ से दुर्घटना बीमा भी मिलता है।
हालांकि 'पेड लीव' यानी कंपनी के खर्च पर छुट्टियां नहीं मिलती हैं और बीमा भी आंशिक होता है। तीसरा फायदा यह है कि यह सेक्टर एक तरह की सामाजिक सुरक्षा की भूमिका भी निभाता है। सर्वे के लिए जिन कर्मियों से बात की गई है, उनमें से 31.6 प्रतिशत कर्मियों ने बताया कि वो यह नौकरी मिलने से पहले 5 महीनों से भी ज्यादा से नौकरी ढूंढ रहे थे।
इसके अलावा 9 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्होंने अपनी पुरानी नौकरी चले जाने के बाद यह काम करना शुरू किया। हालांकि इस तरह की नौकरियों में तनख्वाह को लेकर तस्वीर बहुत उम्मीदभरी नहीं है। 68 प्रतिशत लोगों ने सर्वे के दौरान यह कहा तो कि उन्होंने बेहतर तनख्वाह के लिए यह काम शुरू किया, लेकिन खर्चों को निकालने के बाद कमाई कुछ खास नजर नहीं आती।
काम ज्यादा, कमाई कम
11 घंटों की शिफ्ट करने वाला एक सक्रिय कर्मी एक औसत शहरी युवा पुरुष कर्मी के मुकाबले 27.7 प्रतिशत ज्यादा समय के लिए काम करता है और 59.6 प्रतिशत ज्यादा कमाता है। लेकिन ईंधन पर खर्च काटने के बाद कमाई में यह बढ़त 59.6 प्रतिशत से गिरकर सिर्फ 5 प्रतिशत रह जाती है।
इसके अलावा दूसरी नौकरियां कर रहे कम से कम उच्च स्कूली शिक्षा प्राप्त युवाओं की कमाई (22,494 रुपए प्रतिमाह) के मुताबिक प्लेटफॉर्म वर्कर की कमाई (20,744) कम है। साथ ही रिपोर्ट यह भी दिखा रही है कि 2020 तक के हालत के मुकाबले 2021 के बाद से प्लेटफॉर्म कर्मियों के लिए घर के खर्च का इंतजाम कर पाना मुश्किल हो गया है यानी तनख्वाह महंगाई के हिसाब से बढ़ी नहीं है।
इसका यह भी मतलब है कि 2022 में एक तरफ तो महंगाई की वजह से उनकी असली कमाई बढ़ी नहीं, दूसरी तरफ ईंधन आदि के दाम बढ़ जाने से खर्च भी बढ़ गया। लेकिन इस रिपोर्ट में इस तरह की नौकरियों का एक और फायदा बताया गया है- नए कौशल का मिल जाना जिससे आगे चल कर बेहतर नौकरी मिल सकती है।
88.6 प्रतिशत कर्मियों ने कहा कि उन्हें कंपनी ने प्रशिक्षण दिया और 55 प्रतिशत ने बताया कि उन्हें नियमित रूप से बार-बार प्रशिक्षण दिया गया। 38.2 प्रतिशत कर्मियों ने कहा कि इस नौकरी में मिला तजुर्बा उनके नई नौकरियों में उपयोगी रहा। उनके मुताबिक जीपीएस समझना, ग्राहकों से बात करना और अंग्रेजी बोलना जैसे कौशल उन्होंने प्लेटफॉर्म नौकरी में ही सीखे।(फोटो सौजन्य : डॉयचे वैले)