चीन बिना बल प्रयोग किए ताइवान पर कब्जे की कोशिश कर सकता है। एक प्रतिष्ठित थिंक टैंक का कहना है कि इसके लिए ग्रे जोन रणनीति का इस्तेमाल किया जा सकता है।
अमेरिका के वॉशिंगटन स्थित थिंकटैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्ट्डीज (सीएसआईएस) ने एक विस्तृत रिपोर्ट में कहा है कि ताइवान पर कब्जा करने के लिए चीन बल प्रयोग करने के बजाय अन्य रणनीतियां अपना सकता है।
रिपोर्ट कहती है कि चीन ताइवान पर सीधा सैन्य आक्रमण करने के बजाय उसे सैन्य रूप से अलग-थलग करने से लेकर उसकी अर्थव्यवस्था को पंगु करने जैसे तरीकों का इस्तेमाल कर बिना एक गोली चलाए उसे अपनी इच्छा मानने पर मजबूर कर सकता है।
चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है लेकिन ताइवान में चुनी हुई सरकार है जो उसे संप्रभु राष्ट्र मानती है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान को हासिल करने का प्रण लिया है। इसके लिए पिछले कुछ सालों से चीन ने लगातार दबाव बनाया हुआ है। कई पश्चिमी विशेषज्ञ और सरकारें आशंका जता चुकी हैं कि जिस तरह रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, उसी तरह चीन भी ताइवान पर आक्रमण कर सकता है।
चीन को सैन्य कार्रवाई की जरूरत नहीं
सीएसआईएस की रिपोर्ट कहती है कि ताइवान पर कब्जा करने के लिए चीन को सैन्य बल प्रयोग की जरूरत नहीं है और वह ग्रे जोन रणनीति' का इस्तेमाल कर सकता है। ग्रे जोन रणनीति ऐसी गतिविधियां होंगी जिन्हें युद्ध का नाम नहीं दिया जा सकेगा, इसलिए कोई उनका जवाब नहीं दे पाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक चीन की यह रणनीति अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होगी क्योंकि वे इसका सीधा जवाब नहीं दे पाएंगे।
रिपोर्ट कहती है, "चीन की जल सेना, उसके कथित समुद्री लड़ाके और अन्य पुलिस व जल क्षेत्र एजेंसियां ताइवान को पूरी तरह या कुछ हद तक अलग-थलग कर सकती हैं। इसके लिए उसके बंदरगाहों का घेराव किया जा सकता है और ऊर्जा संसाधनों आदि को उस तक पहुंचने से रोका जा सकता है।”
सीएसआईएस के विश्लेषकों बोनी लिन, ब्रायन हार्ट, मैथ्यू फुनेलो, समांथा लू और ट्रूली टिंजली ने यह रिपोर्ट तैयार की है। वे लिखते हैं, "चीन ने हाल के सालों में ताइवान पर दबाव को बहुत हद तक बढ़ा दिया है। इससे यह चिंता बढ़ी है कि यह तनाव युद्ध का रूप ले सकता है। इस बात की ओर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित है कि चीन ताइवान पर आक्रमण कर सकता है लेकिन बीजिंग के पास ताइवान पर कब्जा करने, उसे सजा देने और उस पर दबाव बनाने के लिए और भी कई विकल्प हैं।”
पश्चिम के लिए चुनौती
इसी महीने सिंगापुर में हुए शांगरी-ला रक्षा सम्मेलन में चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल दोंग जुन ने चेतावनी दी थी कि जो भी ताइवान की आजादी का समर्थन करेगा, वह खुद के नाश' को न्यौता देगा। यह परोक्ष रूप से अमेरिका को चेतावनी है जो ताइवान को हथियार देना जरूरी बताता है।
दोंग ने कहा था, "हम ताइवान की आजादी को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि ऐसी कोई योजना कभी कामयाब ना हो।” उन्होंने बाहर से दखलअंदाजी करने वाली ताकतों को ताइवान को हथियार बेचने और अवैध आधिकारिक संपर्क बनाने' के खिलाफ भी चेतावनी दी थी।
जिस ग्रे जोन रणनीति' का हवाला सीएसआईएस की रिपोर्ट में दिया गया है, चीन हाल के महीनों में अक्सर उसका इस्तेमाल करता भी दिखाई दिया है। रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के अन्य देशों की तरह चाइना कोस्ट गार्ड को भी कानून का पालन करवाने वाली एजेंसी माना जाता है। इसका अर्थ है कि यह द्वीप के इर्द-गिर्द जहाजों की आवाजाही को नियंत्रित कर सकती है और उन्हें रोक भी सकती है। यह कार्रवाई सैन्य घेराव के दायरे में नहीं आएगी, बल्कि इसे क्वॉरन्टीन करना माना जाएगा।
रिपोर्ट कहती है, "क्वॉरन्टीन एक कानून-सम्मत अभियान है जो किसी तय क्षेत्र में समुद्री या हवाई यातायात को नियंत्रित करता है। जबकि घेराव एक सैन्य कार्रवाई होती है।” सैन्य घेराव को युद्ध की कार्रवाई माना जाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ताइवान की घेराबंदी चीन को काफी महंगी पड़ सकती है।
चीन की अतुलनीय ताकत
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि चाइना कोस्ट गार्ड के पास 150 बड़ी और 400 छोटी नौकाएं हैं। ये 150 बड़ी नौकाएं गहरे समुद्र में जाने में सक्षम हैं। नौकाओं की संख्या के हिसाब से यह दुनिया की सबसे बड़ी कोस्ट गार्ड एजेंसी है। इसके अलावा चीन के पास मैरीटाइम सेफ्टी एजेंसी, मैरीटाइम मिलिशिया और चीन की सेना से जुड़ीं मछली पकड़ने वाली नौकाओं के रूप में भी बड़ी ताकत मौजूद है।
पिछले महीने जब ताइवान के नए राष्ट्रपति ने शपथ ली थी तो चीन ने एक बड़ा सैन्य अभ्यास किया था। उसकी सेना ने कहा था कि यह ताइवान का घेरा डालने और सत्ता पर नियंत्रण' का अभ्यास था।
सीएसआईएस की रिपोर्ट कहती है कि ताइवान के कोस्ट गार्ड के पास सिर्फ 10 बड़ी और 160 छोटी नौकाएं हैं, जो क्वॉरन्टीन की कोशिशों का जवाब देने के लिए नाकाफी हैं।'
रिपोर्ट के मुताबिक ताइवान के क्वॉरन्टीन की चीन की कोशिशें बहुत सीमित होते हुए भी काफी असरदार हो सकती हैं और ताइवान को आर्थिक रूप से पंगु बना सकती हैं। रिपोर्ट कहती है, "चीन पहले भी दिखा चुका है कि वह व्यवसायिक जहाजों की तलाशी और उन्हें जब्त करने से पीछे नहीं हटेगा। अगर कुछ जहाजों के साथ भी ऐसा होता है तो इसका असर व्यापक होगा और बहुतों को हतोत्साहित करेगा।”
साथ ही, विश्लेषक कहते हैं कि क्वॉरन्टीन करने की इन कोशिशों को बहुत आसानी से वायु सीमा तक भी बढ़ाया जा सकता है। वे लिखते हैं, "चीन के विमान अगर कुछ ही विमानों को सीमा में आने से रोक देते हैं तो उसका पूरे यातायात पर व्यापक असर होगा।”
ताइवान के इर्द-गिर्द चीनी विमान नियमित रूप से उड़ान भरते हैं। पिछले हफ्ते ही ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि शुक्रवार सुबह तक के 24 घंटों में चीन के 36 विमानों ने ताइवानी रक्षा सीमा को पार किया।
रिपोर्ट के मुताबिक इस नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि चीन को ताइवान खाड़ी में आवाजाही रोकने की जरूरत नहीं होगी। यानी अमेरिका और उसके सहयोगी कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि उनका सबसे बड़ा तर्क यह रहता है कि ताइवान खाड़ी एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार मार्ग है और चीन उसे रोकने की कोशिश करता है।
छोटी कार्रवाई का बड़ा असर
रिपोर्ट में विश्लेषक लिखते हैं, "अगर क्वॉरन्टीन को कानून का पालन करवाने वाली एजेंसियों के अभियान के रूप में दिखाया जाता है तो चीन आसानी से अभियान पूरे होने का एलान कर कह सकता है कि उसका लक्ष्य पूरा हो गया है।” वे कहते हैं कि ताइवान को अलग-थलग करने के लिए चीन को क्वॉरन्टीन शब्द का इस्तेमाल करने की भी जरूरत नहीं है।
चूंकि चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है इसलिए उसे बस इतना करना होगा कि ताइवान तक जाने वाले किसी भी जहाज को कस्टम नियमों के तहत अपने सामान की जानकारी उजागर करने को कहा जाए। जो ऐसा नहीं करेंगे, उन पर कार्रवाई की जा सकती है।
रिपोर्ट कहती है, "चीन की कानून-पालक नौकाओं को जहाजों की तलाशी करने, नाविक दल से पूछताछ करने और नियमों का पालन ना करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार होगा।” विशेषज्ञों के मुताबिक चीन को ऐसा करने के लिए बहुत बड़ा अभियान चलाने की भी जरूरत नहीं होगी। वह अगर ताइवान के सबसे बड़े बंदरगाह काओजियूंग को लक्ष्य करे तो भी बहुत बड़ा असर डाल सकता है। ताइवान के कुल आयात का 57 फीसदी इसी बंदरगाह पर निर्भर है।
रिपोर्टः विवेक कुमार (एएफपी)