रिपोर्ट : मथियास फॉन हाइन
ऐतिहासिक कारणों से जर्मनी एक संघीय गणराज्य है। लेकिन इस व्यवस्था के कई नुकसान भी हैं। इस बात को कोविड महामारी से लड़ने के संदर्भ में खासतौर पर देखा जा सकता है। यूरोप के दिल में बसा देश जिसे हम जर्मनी के नाम से जानते हैं, उसका एक समृद्ध और विविधतापूर्ण इतिहास रहा है। इस देश में संघीय व्यवस्था किसी न किसी रूप में सदियों से बनी हुई है। पड़ोसी देश फ्रांस के विपरीत, जो कि मध्य काल में ही केंद्रीय सरकार और सैन्य गढ़ का क्षेत्र बन गया था, राइन नदी के पूर्व में स्थानीय राजा और सामंत साझी भाषा और संस्कृति के बावजूद शासन कर रहे थे और यह कहीं ज्यादा निराशाजनक था।
जर्मन संघवाद के ऐतिहासिक संदर्भ को जानने से पहले उन 16 राज्यों की भूमिका को समझना जरूरी है जिन्होंने जर्मनी को आधुनिक संघीय गणराज्य बनाने का काम किया।
ऐसे बना जर्मनी
जर्मन क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से कई रियासतों यानी शाही घरानों, ब्रेमेन जैसे छोटे शहरी राज्यों और प्रशा जैसे कुछ बड़े साम्राज्यों से मिलकर बना है। बाद में कई और छोटे-बड़े राज्य इसमें शामिल हुए, जो अपने अधिकारों, मुद्राओं और सीमा शुल्क का दावा करते हैं।
आज जर्मनी के रूप में जाना जाने वाला पूरा क्षेत्र सदियों तक किसी भी एक केंद्रीय सत्ता के अधीन नहीं रहा, बल्कि कई संप्रभु शासकों द्वारा शासित होता रहा। ये लोग पहले पवित्र रोमन साम्राज्य के प्रति निष्ठावान बने रहे और बाद में जर्मन साम्राज्य के प्रति निष्ठावान हो गए।
इसके बदले में सम्राट ने इन्हें विदेशी युद्धों में स्वामिभक्ति का इनाम दिया और अपने राज्य का इस हद तक विस्तार करने की अनुमति दी कि स्थानीय संप्रभु शासक विदेश नीति जैसे अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम थे।
साम्राज्य का पुनर्निर्माण
राजाओं और सम्राटों की समाप्ति और वाइमार गणराज्य के अधीन कुछ अनिश्चित वर्षों के बाद जर्मनी की संघीय परंपरा को पहली बार नाजियों ने तोड़ा। नाजी शासन ने 30 जनवरी 1933 को सत्ता संभालने के तुरंत बाद स्थानीय राज्यों को संघीय नियंत्रण में ले लिया।
ठीक एक साल बाद 30 जनवरी 1934 को राज्यों के सभी अधिकारों को समाप्त करते हुए 'साम्राज्य के पुनर्गठन का कानून' लाया गया। संघीय स्वशासन निकायों की जगह 'इंपीरियर गवर्नर्स' बना दिए गए, जो कि सीधे तौर पर बर्लिन में नाजी सरकार के अधीन होते थे और उसके निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य थे।
लोकतंत्र का पुनर्गठन
मित्र देशों की जीत सुनिश्चित हो जाने के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने इस बात पर मंथन शुरू कर दिया कि युद्ध के बाद जर्मनी का शासन कैसे चलेगा। इस बात पर आम सहमति थी कि फ्यूरर अडोल्फ हिटलर के अधीन शक्ति का संकेंद्रण नाजी तानाशाही शासन की तमाम बुराइयों में से एक अहम बुराई थी और भविष्य में इस तरह सत्ता के संकेंद्रण को रोका जाना चाहिए।
इसलिए, युद्ध के बाद हुए सम्मेलनों में मित्र राष्ट्रों ने तय किया कि राज्यों की शक्ति को फिर से स्थापित किया जाए, जिन्हें नाजी शासन में खत्म कर दिया गया था। इस दौरान, युद्ध से पहले मौजूद तमाम राज्यों के अलावा युद्ध के दौरान की परिस्थितियों की वजह से कई नए राज्यों का भी उदय हुआ।
पूर्वी जर्मनी का केंद्रीकृत तंत्र
पूर्वी राज्य पहले सोवियत संघ के अधीन थे। बाद में पूर्वी जर्मनी के ये राज्य साम्यवादी हो गए और औपचारिक रूप से इन्हें जर्मन डिमॉक्रेटिक रिपब्लिक (जीडीआर) कहा जाने लगा। संघीय राज्य साल 1945 में 'सोवियत सैन्य प्रशासन' द्वारा बनाए गए कानून के तहत गठित किए गए थे लेकिन साल 1952 में जीडीआर ने उन्हें समाप्त कर दिया।
'समाजवादी प्रशासनिक तंत्र' के गठन के लिए राज्यों को अपनी शक्ति जिला और काउंटी प्रशासन को सौंपनी थी। संघवाद को पूर्वी बर्लिन में शासन कर रही सोशलिस्ट यूनिटी पार्टी की केंद्रीकृत शक्ति को भी रास्ता देना था। नाजी शासन के पतन के बाद पहली बार और एकमात्र स्वतंत्र रूप से चुनी गई जीडीआर संसद के सामने सबसे बड़ा काम पुराने राज्यों को बहाल करना था। यह काम 22 जुलाई 1990 को हुआ, जब जीडीआर पश्चिमी जर्मनी के संघीय तंत्र में शामिल हो गया। 3 महीने बाद दोनों देश आधिकारिक रूप से एकीकृत हो गए।
पश्चिम में संघवाद की वास्तविकता
पश्चिमी जर्मनी में जर्मन संघीय गणराज्य के निर्माता किसी भी केंद्रीय शासन के अधीन शक्ति के पूरी तरह संकेंद्रण को रोकने के इच्छुक नहीं थे। जर्मन संविधान, जिस पर साल 1949 में बॉन में हस्ताक्षर किए गए थे, में संसदीय परिषद ने राज्यों के अधिकारों के संरक्षण और गारंटी को खासा महत्व दिया है।
राज्यों को तब भी यह अधिकार था और आज भी है कि वो केंद्रीय सरकार के फैसलों पर सवाल उठा सकें और उनका विरोध कर सकें। केंद्र और राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारों का होना आपसी नियंत्रण की इसी गारंटी का नतीजा है। साल 1990 में एकीकरण के बाद पहले का पूर्वी जर्मनी भी संघीय गणराज्य के इसी मूल कानून के तहत आ गया।
परिवर्तन का विरोध
लेकिन शुरू से ही ऐसी कई आशंकाएं और संरचनात्मक दोष थे, जो कि जर्मन संघवाद के सामने बड़ी समस्या बनकर खड़ी थीं। राज्यों के आकार और उनकी आर्थिक शक्ति में पहले भी और आज भी बहुत असमानता है। आधुनिक जर्मनी में जनसंख्या में अमसमानता भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है। नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया की जनसंख्या जहां 1 करोड़ सत्तर लाख है वहीं ब्रेमेन राज्य की जनसंख्या मुश्किल से सात लाख है।
साल 1950 में मित्र देशों ने भी राज्यों के बंटवारे में बदलाव की जरूरत महसूस की थी और संघीय सरकार से इस बारे में कार्रवाई करने को कहा था। लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और उनके सीमा निर्धारण की कोई कोशिश सफल नहीं हो पाई। साल 1996 में इस तरह की एक कोशिश हुई जब 2 सीमावर्ती राज्यों बर्लिन और ब्रांडनबुर्ग में एकीकरण के लिए जनमतसंग्रह कराया गया। लेकिन लोगों ने इसके खिलाफ मतदान किया।
साल 1970 तक संघीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्ति विभाजन को पुनर्गठित करने की कई कोशिशें हुईं लेकिन न तो संवैधानिक सुधारों पर बना सरकारी आयोग और न ही साल 1990 में जर्मन संसद द्वारा बनाए गए संवैधानिक आयोग प्रभावी बदलावों पर कोई सहमति बनाने में कामयाब हो सके।
संघवादी सुधार
कई लोग अब भी मानते हैं कि संघवाद में सुधार अभी भी महत्वपूर्ण है। जर्मनी के आनुपातिक निर्वाचन प्रणाली के तहत गठबंधन सरकारें आदर्श हैं। इसका मतलब यह हुआ कि सभी 16 राज्य और एक संघीय सरकार का एक ही समय में अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ एक केंद्रीकृत सरकार बनाना लगभग असंभव है।
इस तरह की कुछ समस्याओं का हल निकालने के लिए चांसलर एंजेला मर्केल के नेतृत्व में साल 2006 में एक सुधार पैकेज पारित किया गया। इस प्रस्ताव में संघीय गठबंधन के मध्य-दक्षिणपंथी क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स, बवेरिया के क्रिश्चियन सोशल यूनियन और मध्य-वामपंथी सोशल डेमोक्रेट्स ने हिस्सा लिया था। इसके तहत राज्यों से उनकी शक्तियां छीन ली गईं लेकिन उन्हें निरंतर मजबूत बने रहने की गारंटी भी दी गई। यह प्रस्ताव शिक्षा नीति पर भी लागू होता है, जो कि पूरी तरह से राज्य स्तर पर ही नियंत्रित होता था।
राज्यों के पास सिविल सेवा, दंड प्रणाली और पर्यावरण कानूनों पर अधिकार बरकरार रखा गया है या फिर उन्हें और ताकत दी गई है। कुल मिलाकर राज्यों के अनुमोदन वाले कानूनों की संख्या आधे से भी कम या यूं कहें कि एक तिहाई कर दी गई है।
कई बार ऐसा लगता है कि जर्मन संघवाद राज्यों के प्रधानमंत्रियों को उनकी स्वाधीनता की रक्षा करते हुए मध्यकालीन राजाओं की तरह से काम करने की अनुमति देता है। लेकिन यह भी सही है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से लेकर अब तक संघवाद ही जर्मनी की सफलता का मूल मंत्र रहा है। बिना इसके, युद्ध के बाद न तो 1 करोड़ से ज्यादा शरणार्थियों का एकीकरण संभव था और न ही साल 1990 में जर्मन एकीकरण के बाद की परिस्थितियों का सफल प्रबंधन।