-हॉली यंग
कभी सोचा है कि आपका पेंशन, निवेश और पैसे खर्च करने का तरीका भी जलवायु को प्रभावित करता है? और टिकाऊ तरीके असल में असरदार होते भी हैं या नहीं? कई लोग इस बात से अनजान होते हैं कि पैसे खर्च करने का उनका निजी फैसला, जलवायु परिवर्तन पर कितना असर डालता है। लोग अक्सर खाने-पीने, यात्रा और खरीदारी करने जैसे फैसलों में तो पर्यावरण का ध्यान रखते हैं, लेकिन पैसों से जुड़े फैसले लेते वक्त वह पर्यावरण को नजरअंदाज कर देते हैं।
यूनाइटेड किंगडम की संस्था, माय मनी मैटर के एक विश्लेषण में सामने आया कि अगर लोग अपने पेंशन स्कीम के लिए एक सस्टेनेबल कंपनी को चुनते हैं तो उनका कार्बन फुटप्रिंट बाकी तरीकों जैसे शाकाहारी बनने और बिजली कंपनियां बदलने की तुलना में 20 फीसदी अधिक घटाया जा सकता है।
जीवाश्म ईंधन को बैंक कैसे बढ़ावा देते हैं?
अनुमानित तौर पर 2023 में दुनिया के 60 सबसे बड़े बैंकों ने जीवाश्म ईंधन उद्योग में लगभग 705 अरब डॉलर लगाए और 2015 में हुए पेरिस समझौते के बाद से लेकर अब तक कुल 6।9 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया जा चुका है।
इस पैसे का ज्यादातर हिस्सा ऐसे प्रोजेक्टों में लगाया जा रहा है, जो तेल, कोयला और गैस के स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए है। जबकि वैज्ञानिक पहले ही साफ कह चुके हैं कि ऐसा करना जलवायु संकट को और गंभीर बना देगा।
अमेरिकी रिसर्च संगठन, ऑइल चेंज इंटरनेशनल के रणनीतिकार, एडम मैकगिब्बन ने कहा कि हमारा पैसा कई बार जाने-अनजाने में इसके लिए जिम्मेदार बन जाता है। वह बैंक खाता, पेंशन फंड या बीमा किसी भी रूप में हो सकता है, जिसे कई बार हमारी जानकारी के बिना जीवाश्म ईंधनों में निवेश कर दिया जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि निजी पैसे से जीवाश्म ईंधनों को मिल रहे फंड का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि इनकी वित्तीय प्रणाली काफी जटिल होती है और हर व्यक्ति का निवेश करने का तरीका भी अलग होता है।
कॉर्पोरेट बैंकों के फाइनेंस का लेखा-जोखा रखने वाले अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ, बैंकट्रैक के नीति विश्लेषक, क्वेंटिन ऑबिनो बताते हैं कि इस तरह की फंडिंग उनके रिटेल हिस्से के जरिये नहीं होती, जहां आम लोगों का पैसा रखा जाता है। बल्कि ज्यादातर बैंकों के कॉर्पोरेट होते हैं, जिसके जरिए जीवाश्म ईंधन से जुड़े प्रोजेक्टों के लिए कंपनियों को लोन देते हैं।
मैकगिब्बन यह भी बताते हैं कि बैंक हमारे पैसे का इस्तेमाल अपने बिजनेस को बढ़ाने, ज्यादा मुनाफा कमाने और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भी करते हैं। उनके मुताबिक, बैंक हमारी बचत का इस्तेमाल' अपनी बैलेंस शीट को बड़ा दिखाने के लिए करते हैं ताकि वह उन कॉर्पोरेट क्लाइंट को सेवाएं दे सकें,' जो जीवाश्म ईंधन के व्यवसाय से जुड़े होते हैं।
हमारा पैसा और लगातार बढ़ता वैश्विक तापमान
यूके के ट्रांजिशन पाथवे इनिशिएटिव सेंटर की कार्यकारी निदेशक, कारमेन नूजो ने कहा कि जब निवेश की बात आती है, तो स्टॉक या बॉन्ड के जरिए कुछ व्यक्तिगत निवेश सीधे तौर पर जीवाश्म ईंधन उद्योग में चला जाता है।
उन्होंने कहा, 'इसमें तेल और गैस कंपनियों में निवेश शामिल है, जो हाल के वर्षों में काफी आकर्षक और लाभकारी रहे हैं। इसके अलावा उन कंपनियों में भी भारी निवेश होता है, जो अपने उत्पादन और सेवाओं के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं, जैसे स्टील उद्योग या विमानन क्षेत्र।'
इसके अलावा बहुत से लोग पेंशन फंडों के जरिए भी 'ब्राउन कंपनियों' में निवेश कर रहे होते हैं। ब्राउन कंपनियां यानी ऐसी कंपनियां जो सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें और कार्बन उत्सर्जन करती हैं। पेंशन फंड आमतौर पर सरकार, नियोक्ता या निजी कंपनियों द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं।
मैकगिब्बन ने कहा, 'आप अपनी पेंशन के लिए पैसा जमा करते हैं। फिर वह पैसा आपके बदले निवेश किया जाता है, वह भी ऐसी कंपनियों में, जो यह करने में जुटी हैं कि आपकी रिटायरमेंट तक दुनिया अस्थिर और जीने के लिहाज से मुश्किल हो जाए।'
हाल ही में हुए अध्ययनों के मुताबिक, अगर दुनिया का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है, तो एक आम व्यक्ति औसतन 40 फीसदी तक गरीब हो जाएगा। इसके अलावा, अमेरिका और कनाडा में पेंशन फंड से मिलने वाला लाभ भी 2040 तक 50 फीसदी घट सकता है, क्योंकि उनके निवेश जलवायु से जुड़ी गंभीर घटनाओं की चपेट में होंगे।
पेंशन फंड दुनिया के सबसे बड़े जीवाश्म ईंधन निवेशकों में से एक हैं। एक अमेरिकी-कनाडाई अभियान, क्लाइमेट सेफ पेंशन्स के अनुसार, पेंशन फंडों से इस उद्योग में करीब 46 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया गया है और वह इस क्षेत्र के 30 फीसदी शेयरों के मालिक हैं। इसके अलावा यह फंड अफ्रीका में जीवाश्म ईंधन विस्तार के सबसे बड़े फाइनेंसरों में से एक हैं।
2023 में जर्मनी की खोजी पत्रकारिता संस्था, करेक्टिव ने खुलासा किया कि जर्मनी के 16 में से 10 राज्यों ने अपने पेंशन फंड का निवेश जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में किया हुआ है।
साफ निवेश के विकल्प कौन से हैं?
हालांकि, जरूरी नहीं कि सभी ग्रीन बैंक बेहतर विकल्प दें, लेकिन जर्मन गैर-सरकारी संगठन, उर्गेवाल्ड की वित्तीय शोधकर्ता, कातरीन गांसविंट ने कहा कि पर्यावरण को लेकर जागरूक लोगों में अब टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल वित्तीय विकल्पों की मांग तेजी से बढ़ रही है।
आजकल ऐसे कई ग्रीन बैंक हैं, जो यह वादा करती हैं कि वे जीवाश्म ईंधन कंपनियों को कर्ज नहीं देंगी और केवल जलवायु-अनुकूल परियोजनाओं में ही निवेश करेंगी।
इसके अलावा, जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ रही है। वैसे-वैसे कई ऑनलाइन विकल्प भी सामने आ रहे हैं जैसे बैंक डॉट ग्रीन, जो उपभोक्ताओं को यह परखने में मदद करता है कि कौन सा बैंक पर्यावरण के प्रति कितना जिम्मेदार है।
नूजो बताती हैं कि वित्तीय जानकारी की कमी अब भी एक बड़ी चुनौती है। वह कहती हैं, 'जिन देशों में ज्यादातर लोगों के पास पेंशन होती है। वहां लोग यह नहीं जानते कि उनकी पेंशन का निवेश कहां किया जा रहा है या फिर वह नियमित रूप से अपने विकल्पों को जांचते नहीं हैं।'
गांसविंट ने बताया कि पेंशन जैसी चीज, जो लंबी अवधि निवेश है, बदलाव लाने का एक प्रभावी जरिया हो सकती है। वह कहती हैं, 'पेंशन फंड का असर बड़ा होता है, क्योंकि निवेश के तौर पर वह बहुत बड़ी रकम होती है।'
मेक माय मनी मैटर के अनुमान के अनुसार यूके की पेंशन इंडस्ट्री 2035 तक लगभग 1।2 ट्रिलियन यूरो का निवेश अक्षय ऊर्जा और जलवायु समाधान के क्षेत्र में कर सकती है।
हालांकि, ग्रीन पेंशन का परिदृश्य अब बदल रहा है। उदाहरण के तौर पर नीदरलैंड के सरकारी कर्मचारियों, शिक्षकों और स्वास्थ्यकर्मियों के पेंशन फंडों ने जीवाश्म ईंधन कंपनियों से अपना निवेश वापस ले लिया है और यूके की बड़े पेंशन योजनाओं के लिए अब यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वह अपने निवेश के जलवायु जोखिमों की रिपोर्ट दें।
'ग्रीन', 'सस्टेनेबल' और 'ग्रीन लॉन्ड्रिंग' का मतलब क्या है?
टैक्स चोरी के खिलाफ काम करने वाली यूके की संस्था, टैक्स जस्टिस नेटवर्क की वरिष्ठ शोधकर्ता, फ्रान्सिस्का मागर ने बताया कि हालांकि लोगों में जागरूकता बढ़ रही है और ग्रीन फाइनेंस के विकल्प भी आ रहे हैं, लेकिन इस क्षेत्र में अब भी साफ नियमों और मानकों की कमी है।
उन्होंने कहा, 'अगर आप किसी 'ग्रीन बैंक' से भी लेन-देन कर रहे हैं, तो भी हो सकता है कि आपका पैसा कहां निवेश हो रहा है, यह जानकारी आपको हैरान कर दे। और फिर, बड़ी कंपनियां किसे 'सस्टेनेबल' कहती हैं, उसकी तो बात छोड़ ही दीजिए।'
उन्होंने हाल ही में एक रिसर्च पेपर में बताया कि 'ग्रीन लॉन्डरिंग' नाम की प्रक्रिया के जरिए बैंकिंग सेक्टर में ग्रीन होने का झूठा दिखावा किया जाता है। इसमें पैसे के असली इस्तेमाल को छुपाने के लिए पेचीदा और गुप्त वित्तीय तरीकों का इस्तेमाल होता है। जैसे सेक्रेसी जूरिस्डिक्शन (गोपनीय टैक्स)। जिस वजह से यह समझना मुश्किल हो जाता है कि जीवाश्म ईंधनों में असल में कितना पैसा लगाया जा रहा है।
गासविंट कहती हैं, 'जब बात ईटीएफ (स्टॉक मार्केट में ट्रेड होने वाला एक तरह का निवेश फंड) की आती है, तो कोई भी उसे 'ग्रीन' कह सकता है चाहे इसका उससे कोई लेना-देना भी ना हो।'
उन्होंने बताया कि हाल में पारदर्शिता के मामले में कुछ परिवर्तन अवश्य हुआ है। यूरोपीय संघ ने अब नए दिशा-निर्देश बनाए हैं, जो यह तय करेंगे कि किन कंपनियों को 'ग्रीन' या 'सस्टेनेबल' लेबल वाले फंडों में शामिल होने की इजाजत होगी और किसको नहीं।
गासविंट बताती हैं कि निजी संसाधनों से जीवाश्म ईंधनों को मिलने वाला पैसा बहुत बड़ी रकम में बहुत छोटा सा हिस्सा हो सकता है लेकिन ग्रीन बैंक चुनने का मकसद केवल यही नहीं होता। इसका असली मकसद एक संदेश देना है कि लोग अब बदलाव चाहते हैं।
मैकगिब्बन ने कहा, 'ग्राहकों के रूप में हमारे पास कुछ ताकत जरूर है लेकिन नागरिकों के रूप में हमारी ताकत कहीं ज्यादा है। तो हां, ग्रीन बैंक और ग्रीन पेंशन स्कीम अपनाना अच्छा कदम हो सकता है। लेकिन असली बदलाव तब ही आएगा जब हम नागरिक के रूप में वोटिंग के जरिए अपनी ताकत दिखाएंगे और नेताओं से वित्तीय क्षेत्र के लिए कड़े नियम बनाने की मांग करेंगे'।