-चारु कार्तिकेय एएफपी
भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी सेना ने चीन में बने हथियार इस्तेमाल किए। हालांकि किस पक्ष को कितना नुकसान पहुंचा, इसकी आधिकारिक जानकारी अभी भी सामने नहीं आई है। ऐसे में समीक्षक सिर्फ अंदाजा ही लगा पा रहे हैं। भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच क्या क्या हुआ इसका पूरा आधिकारिक ब्योरा अभी तक सामने नहीं आया है। दोनों तरफ से सीमित जानकारी सार्वजनिक की गई है। दोनों तरफ से कई दावे भी किए गए हैं जिनकी दूसरे पक्ष ने न तो पुष्टि नहीं की है और न ही खंडन।
इन्हीं में से एक है पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया दावा कि उसने भारतीय वायुसेना के कम से कम 5 लड़ाकू विमान गिरा दिए। इस दावे के बाद कई पाकिस्तानी और अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि अगर यह दावा सच है तो यह दिखाता है कि चीन से खरीदे गए पाकिस्तानी सेना के हथियार कारगर रहे।
इन रिपोर्टों में पाकिस्तानी सेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले चीनी एयर डिफेंस सिस्टम की भी चर्चा की गई। लेकिन अभी तक ये सारी बातें अटकलों तक ही सीमित हैं। भारत ने इनकी पुष्टि नहीं की है। भारतीय वायुसेना के एयर मार्शल एके भारती ने पत्रकारों के साथ बातचीत में बस इतना कहा था कि, 'नुकसान लड़ाई का हिस्सा है लेकिन हमारे सभी पायलट घर वापस आ गए हैं।'
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (सिपरी) के डाटा के मुताबिक बीते 5 साल में पाकिस्तान ने जितने विदेशी हथियार खरीदे हैं, उनमें से 81 प्रतिशत चीन के हैं। इनमें लंबी दूरी तक सर्वेक्षण करने वाले ड्रोन, गाइडेड मिसाइल वाले जंगी जहाज, 'हैंगोर टू' पनडुब्बियां, जासूसी जहाज, वीटी-फोर टैंक, 'जे-10सीई' लड़ाकू विमान, सतह से हवा में दागी जाने वाली मिसाइलें और मिसाइल डिफेंस सिस्टम आदि शामिल हैं।
पहली बार चीनी हथियारों का ऐसा इस्तेमाल
लेकिन चीनी हथियारों के असर पर जानकारों की अलग अलग राय है। एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के लाइल मॉरिस ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि 'यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए पश्चिमी सैन्य हार्डवेयर के खिलाफ चीनी हार्डवेयर को मापने का दुर्लभ मौका है।' ऑपरेशन सिंदूर के कुछ ही दिनों बाद, इस वक्त पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार चीन में हैं। इससे पाकिस्तानी सेना के चीनी हथियारों को लेकर दुनियाभर में चर्चा और बढ़ गई है।
सिपरी के सीनियर रिसर्चर सिमोन वेजेमान ने एएफपी से कहा चीनी हथियार, यमन में सऊदी अरब ने भी इस्तेमाल किए। इन्हें अफ्रीकी देशों में बागियों के खिलाफ भी इस्तेमाल किया गया है, 'लेकिन 1980 के दशक के बाद यह पहली बार है जब किसी देश ने किसी दूसरे देश के खिलाफ बड़ी संख्या में कई किस्म के चीनी हथियारों का इस्तेमाल किया है।'
उनका मतलब ईरान-इराक युद्ध से था जब चीनी हथियारों का इस्तेमाल दोनों तरफ किया गया था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, पाकिस्तानी सेना ने भारत के खिलाफ उसके 'जे10-सी विगरस ड्रैगन' और 'जेएफ-17 थंडर' विमानों का इस्तेमाल किया था, जो हवा से हवा में दागी जाने वाली मिसाइलों से लैस थे।
स्टिम्सन सेंटर के युन सुन का कहना है कि यह पहली बार था जब जे10-सी का सक्रिय लड़ाई में इस्तेमाल किया गया है। रिपोर्टों के मुताबिक पाकिस्तान ने एयर डिफेंस के लिए भी चीनी उपकरणों का इस्तेमाल किया, जिनमें एचक्यू-9पी सिस्टम शामिल था। यह सिस्टम सतह से हवा में दागी जाने वाली लंबी दूरी की मिसाइलों के लिए है।
एएफपी के मुताबिक भारतीय सुरक्षा तंत्र में उसके एक सूत्र ने भी बताया कि तीन विमान भारत में ही गिरे जरूर थे, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि वो कौन से विमान थे और कैसे गिरे। राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दासो ने भी आधिकारिक रूप से इस पर टिप्पणी नहीं की है।
कितना कारगर था चीनी एयर डिफेंस
सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के जेम्स चार का कहना है कि राफेल को यूरोप के सबसे उच्च-तकनीक वाले विमानों में से माना जाता है, जब कि जे10-सी 'चीन का सबसे उच्च श्रेणी का भी नहीं है।' चार ने आगे कहा कि लेकिन अगर पाकिस्तान के दावे सही है, 'तो यह चौंकाने वाली बात नहीं होनी चाहिए।।।क्योंकि राफेल कई भूमिकाओं वाला लड़ाकू विमान है, जब कि जे10-सी को हवाई लड़ाई के लिए ही बनाया गया था और इसमें ज्यादा मजबूत रडार भी लगा हुआ है।'
हालांकि कनाडा स्थित क्यूवा डिफेंस न्यूज एंड एनालिसिस समूह के संस्थापक बिलाल खान का मानना है कि चीनी एयर-डिफेंस सिस्टम 'लगता नहीं है कि उतना प्रभावशाली रहा जितनी पाकिस्तान वायुसेना ने उम्मीद की होगी।' भारत ने भी दावा किया था कि उसने लाहौर के पास ऐसे एक सिस्टम को नष्ट कर दिया था। सिपरी के वेजेमान का कहना है कि यह 'एक ज्यादा बड़ी सफलता होगी और इसका मतलब कुछ विमानों के नुकसान की भरपाई से कुछ ज्यादा ही होगा।'
लड़ाई के बाद के दिनों में जे10-सी बनाने वाली कंपनी चेंगडु एयरक्राफ्ट के स्टॉक 40 प्रतिशत से भी ज्यादा ऊपर गए थे। स्टिम्सन सेंटर के सुन ने कहा, 'संभावना है कि अब चीनी कंपनियों को ज्यादा आर्डर मिलेंगे।' हालांकि सीजफायर के एलान के साथ ही ये शेयर गिर गए। अमेरिकी थिंक टैंक डिफेंस प्रियोरिटीज की जेनिफर कवाना ने बताया, 'चीन को हथियारों का बड़ा निर्यातक बनने में अभी समय लगेगा और चीनी हथियार निर्माताओं को अपनी दिशा भी बदलनी होगी।'
उन्होंने यह भी कहा कि चीन 'कुछ महत्वपूर्ण पुर्जे बड़े स्तर पर नहीं बना सकता है, जिनमें विमानों के इंजन शामिल हैं।' वेजेमान ने कहा उन्हें लगता है कि स्टॉक बाजारों ने 'ओवररिएक्ट' किया था, क्योंकि 'अभी यह देखना बाकी है कि इस्तेमाल किए गए सभी हथियारों ने कैसा काम किया और क्या इनकी वाकई इतनी अहमियत है।'
सीएसइएस के ब्रायन हार्ट ने इन घटनाओं के 'ज्यादा मतलब निकालने' के बारे में सावधानी बरतने को कहा। उन्होंने बताया, 'मुझे नहीं लगता है कि आप सीधी तुलना कर सकते हैं कि चीन-निर्मित सिस्टम, दूसरे माहौल में अमेरिका जैसे ज्यादा उन्नत दुश्मन के खिलाफ कैसा प्रदर्शन करेंगे।' उन्होंने कहा, 'उपलब्ध डाटा प्वाइंट काफी कम हैं और हम दोनों पक्षों के कर्मियों की महारत और प्रशिक्षण के बारे में भी ज्यादा नहीं जानते, इसलिए स्पष्ट निष्कर्ष निकालना मुश्किल है।'