चीन की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में है। प्रॉपर्टी की कीमतें गिर गई हैं, बेरोजगारी बढ़ी है और घरेलू आय में कमी आयी है। चीन ने मांग को बढ़ाने के लिए ब्याज दरों में कटौती की है। चीन का इस संकट दुनिया के लिये बुरा हो सकता है।
महंगाई की दर ज्यादा होने की वजह से प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं का विकास धीमा हो गया है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का सीधा असर अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है। कई अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि चीन फिर से दुनिया को मंदी से बचाने में मदद करेगा। हालांकि, यह 2008 का समय नहीं है, जब चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी और चीनी सरकार के प्रोत्साहन कार्यक्रमों ने पश्चिमी देशों को आर्थिक संकट से तेजी से निपटने में मदद की थी। इस बार चीन की अर्थव्यवस्था का संकट गहरा गया है।
सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के इस साल के वृद्धि दर 5.5 फीसदी के लक्ष्य से पीछे छूट गया है। चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने पिछले महीने कहा था कि अब अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही, उन्होंने सरकारी अधिकारियों से हालात को स्थिर' बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया।
चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। देश में लागू की गई शून्य-कोविड नीति से वजह से यहां कारोबार और उपभोक्ता गतिविधियां काफी ज्यादा प्रभावित हुई हैं। कई शहरों में महीनों तक श्रमिकों को काम करने से रोका गया जिससे कई कारोबार बंद हो गए। अब एक बड़े संकट को देखते हुए सरकार अपनी शून्य-कोविड नीति से पीछे हट गई है। चीनी नेताओं ने इस कार्रवाई पर खुशी जताई है।
दरअसल, चीन में कोविड की रोकथाम को लेकर सख्त नीति लागू की गई थी। चीन के शून्य-कोविड नीति के तहत, वायरस के कहीं भी सामने आते ही तुरंत लॉकडाउन और लंबी अवधि के क्वारंटीन लागू कर दिए जाते। इसका सीधा असर कारोबार और ग्राहकों पर पड़ा। देश के सबसे बड़े शहर शंघाई को हाल ही में कोविड-19 के नए मामलों की वजह से दो महीनों तक पूरी तरह बंद रखा गया था। इस दौरान सप्लाई चेन कमजोर पड़ गई थी और फैक्टरियों को मजबूरन अपना काम बंद करना पड़ा था। इससे देश में बेरोजगारी बढ़ी और घरेलू आय में गिरावट देखने को मिली।
चीन ने कोविड के साथ जीना नहीं सीखा
बर्लिन स्थित मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज (एमईआरआईसीएस) के वरिष्ठ विश्लेषक जैकब गुंटर ने डीडब्ल्यू को बताया, "दुनिया के बाकी देशों ने जिस तरह से कोविड का सामना किया है, चीन वैसा नहीं कर सका। चीन ने कोविड के बीच जिंदगी जीना नहीं सीखा। इसलिए, अगर देश में अचानक वायरस फैल जाता, तो आर्थिक अराजकता आ जाती। चीन ने एमआरएनए टीके का आयात करने से मना कर दिया। ऐसे में वहां के लोगों में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इम्यूनिटी नहीं बन पायी। चीन के पास बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है और टीके को लेकर काफी ज्यादा हिचकिचाहट है।”
इससे भी बुरी बात यह है कि हाल ही में सरकार ने कर्ज को लेकर रियल एस्टेट कंपनियों पर बड़ी कार्रवाई की है। इससे वहां रियल एस्टेट के क्षेत्र में अभूतपूर्व संकट छा गया है। देश के बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स में से एक एवरग्रांदे समूह दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है।
चीन में घर खरीदने वालों ने निर्माणाधीन अपार्टमेंट के लिए कर्ज की किस्तों को चुकाना बंद कर दिया है। घर खरीदने के लिए बैंक से कर्ज लेने वालों की संख्या पिछले एक दशक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। नये घर बनाने के जगह की कीमतें काफी ज्यादा कम हो गई है। 2022 की दूसरी तिमाही में यह लगभग आधी से भी कम हो गईं।
रिसर्च हाउस पैंथियन मैक्रोइकॉनॉमिक्स के चीन विशेषज्ञ क्रेग बॉथम ने कहा, "शून्य-कोविड नीति की वजह से आयी मंदी की तुलना में, रियल एस्टेट की मंदी ज्यादा बड़ी समस्या है। लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था में जो मंदी आयी है वह जल्द ही दूर हो सकती है, लेकिन रियल एस्टेट की कीमतों में जो गिरावट आयी है वह कहीं ज्यादा नुकसानदायक है। देश की जीडीपी में 30 फीसदी रियल एस्टेट का योगदान है। परिवारों, बैंकों, और स्थानीय सरकारों, सभी की बैलेंस शीट बिगड़ गई है।”
चीन के केंद्रीय बैंक ने महंगाई और महामारी के नियंत्रित होने तक, और ज्यादा आर्थिक छूट देने से इनकार करते हुए इस सप्ताह ब्याज दरों में कटौती की है। ऐसा औद्योगिक उत्पादन और खुदरा बिक्री में उम्मीद से कम वृद्धि और जुलाई में तेल की मांग में पिछले साल की तुलना में 10 फीसदी की गिरावट के बाद किया गया है।
चीन ने कटौती की जबकि दुनिया ने दरें बढ़ाईं
गुंटर ने डीडब्ल्यू को बताया, "पूरी दुनिया में जो हो रहा है, चीन उसके विपरीत कदम उठा रहा है। दुनिया के अन्य देशों में जहां बैंकों ने दरें बढ़ाई हैं, वहीं चीन ने कम किए हैं। चीन की समस्याएं अमेरिका और यूरोप से अलग हैं। चीनी उपभोक्ता क्वारंटीन में भेजे जाने के डर में खर्च करने से बच रहे हैं।” अचानक लगने वाले लॉकडाउन की वजह से चीनी लोगों के अंदर यह डर बैठ गया है कि उनका काम-धंधा कभी भी ठप्प हो सकता है और आय कम हो सकती है।
बॉथम ने कहा कि हाल में हुई ब्याज दरों में कटौती से आर्थिक विकास पर ज्यादा फर्क पड़ने की संभावना नहीं है। वे इसके पीछे की दो वजहों के बारे में बताते हैं। उन्होंने कहा, "पहली वजह यह है कि इससे सिर्फ बैंक फंडिंग की लागतों पर तुरंत असर पड़ेगा, जिसका वास्तविक अर्थव्यवस्था से सीधा संबंध नहीं है। दूसरी और सबसे जरूरी वजह यह है कि कर्ज की मांग अचानक से काफी ज्यादा कम हो गई है। मुझे संदेह है कि पीबीओसी (पीपुल्स बैंक ऑफ चीन) ने ऐसा महसूस किया कि उसे कुछ करना चाहिए, भले ही उसे पता है कि वह जो कुछ करेगा उसका ज्यादा असर नहीं होगा।”
केंद्र सरकार ने विकास को स्थिर करने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए प्रांतीय सरकारों को कदम उठाने को कहा है। किसी अन्य तरह की आर्थिक छूट देने की जगह, लोगों का ध्यान बीजिंग से हटाने का यह कदम केंद्र सरकार के प्रति संदेह पैदा करता है।
बॉथम ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, "स्थानीय सरकारों की बैलेंस शीट में काफी ज्यादा कमियां हैं और वे बहुत कुछ नहीं कर सकतीं। ऐसे हालात में केंद्र सरकार को विशेष कदम उठाने की जरूरत है। सरकार को आपूर्ति से ज्यादा मांग बढ़ाने के उपायों पर ध्यान देना चाहिए।”
इस साल मई महीने में चीन ने लॉकडाउन से उबरने के लिए 50 नीतिगत उपायों की घोषणा की थी। इनमें कारोबारियों और उपभोक्ताओं के लिए कर राहत और अन्य सब्सिडी शामिल हैं। इस महीने होने वाली पोलित ब्यूरो की बैठक से पहले ली ने देश के दक्षिणी हिस्से में स्थित शेनजेंन टेक हब का दौरा किया और वहां की आर्थिक स्थितियों का जायजा लिया।
शी पर मांग बढ़ाने का दबाव
इस हफ्ते देश के एक सरकारी अखबार ने अपने मुख्य पेज पर विकास से जुड़ी नई नीतियों को लागू करने से जुड़ा लेख प्रकाशित किया। इसके बाद से चीन के नेताओं पर दबाव बन रहा है। फाइनेंशियल न्यूज ने चाइना मिनशेंग बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री वेन बिन का हवाला देते हुए कहा कि चीन को मांग बढ़ाने के लिए अधिक आर्थिक प्रोत्साहन उपायों को लागू करना चाहिए। अखबार ने रियल एस्टेट को उबारने के लिए भी उपाय लागू करने का आह्वान किया। साथ ही, यह भी कहा कि सुगम कारोबार के लिए भी बेहतर नीति लागू करने की जरूरत है। इन तमाम उपायों से उत्पादन और खपत में सुधार होगा।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग चाहते हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस उन्हें फिर से देश के नेता के तौर पर चुने। इस वजह से अगले कुछ महीनों में नए प्रोत्साहन उपायों को लेकर विरोध कम हो सकता है। हांगकांग के अखबार मिंग पाओ के मुताबिक, नवंबर में होने वाली शिखर बैठक में शी के तीसरे कार्यकाल को मंजूरी मिलने की संभावना है।
बॉथम ने डीडब्ल्यू को बताया कि 2008 में चीन के 586 बिलियन डॉलर के आर्थिक प्रोत्साहन ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद की थी, लेकिन इस बार हालात वैसे नहीं हैं। आने वाले समय में चीन के आर्थिक प्रोत्साहन उपायों का काफी कम असर पश्चिमी देशों में देखने को मिलेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इससे पश्चिमी देशों के लोगों के जीवन जीने की लागत को कम करने में मदद मिल सकती है। फिलहाल, यह बढ़ी हुई लागत ही पश्चिमी देशों में विकास को प्रभावित कर रही है।
बॉथम ने कहा, "यह कहना सही है कि इस बार की मंदी में चीन दुनिया की अर्थव्यवस्था को नहीं बचा पाएगा। यह जो उम्मीद की जा रही है कि चीन में लंबे समय तक मांग में तेजी रहेंगी वे उम्मीदें धराशायी हो जाएंगी। हालांकि, आपूर्ति से जुड़ी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने और चीन में मांग में कमजोरी का मतलब होगा कि वह अगले 12 महीनों में दुनिया के बाकी हिस्सों में महंगाई को कम करने में मदद करेगा।”