चारु कार्तिकेय
भारत-कनाडा विवाद में कनाडा को अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से समर्थन की उम्मीद है। यह पांचों देश फाइव आईज अलायन्स नाम के एक समूह का हिस्सा हैं, जिसके तहत खुफिया जानकारी एक दूसरे के साथ साझा करते हैं।
अभी तक इस मामले पर इन देशों के जो बयान आये हैं उनमें कनाडा द्वारा लगाए गए आरोपों पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है, लेकिन तुरंत किसी निष्कर्ष की बात भी नहीं की गई है। जानकार इन्हें सावधानी से की गई प्रतिक्रियाएं मान रहे हैं।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने देश की संसद में यह दावा किया है कि उनकी सरकार के पास सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की जून में कनाडा में हुई हत्या में भारत सरकार के शामिल होने के "विश्वसनीय आरोप" हैं। ट्रूडो ने कहा कि उन्होंने इस घटनाक्रम के बारे में अपने सबसे करीबी सहयोगियों को भी अवगत करवा दिया है।
पश्चिम की दुविधा
इनमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन शामिल हैं। अमेरिका में बाइडेन प्रशासन ने मामले पर अपनी पहली प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह "इन आरोपों को लेकर बेहद चिंतित है और अपने कैनेडियन साझेदारों से नियमित संपर्क में है।" बयान में यह भी कहा गया, "यह बेहद आवश्यक है कि कनाडा की जांच आगे बढ़े और अपराधियों को कानून के सामने लाया जा सके।"
ब्रिटेन में सरकार के एक प्रवक्ता ने इन्हें "गंभीर आरोप" बताया और कहा कि सरकार कनाडा के साथ इस विषय पर करीब से संपर्क में है। लेकिन प्रवक्ता ने साथ ही यह भी कहा इस विषय का ब्रिटेन की भारत के साथ चल रही व्यापार संबंधी चर्चा पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग के एक प्रवक्ता ने कहा, "ऑस्ट्रेलिया इन आरोपों से बहुत चिंतित है और इस मामले में जारी जांच को संज्ञान में लेता है।" प्रवक्ता ने यह भी कहा कि ऑस्ट्रेलिया ने भारत में वरिष्ठ स्तरों पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
जानकारों का कहना है कि यह मामला पश्चिमी देशों के लिए दुविधा का विषय बन गया है, क्योंकि इसमें एक तरफ कनाडा है जो दूसरे पश्चिमी देशों का महत्वपूर्ण मित्र देश है और दूसरी तरफ भारत है जो इस समय पश्चिमी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बना हुआ है।
निज्जर की हत्या पर भारत और कनाडा में तकरार तेज
ऐसे में देखना होगा कि आने वाले समय में भी इस मामले पर इन देशों का रुख कैसा रहता है। अमेरिकी अखबार "वॉशिंगटन पोस्ट" ने लिखा है कि बाइडेन इंडो-पैसिफिक इलाके में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लुभाने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन इस विवाद ने उनकी कोशिशों को पेचीदा बना दिया है।
क्या कहते हैं जानकार
भारत में इस मामले को लेकर जानकारों की राय बंटी हुई है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कनाडा के आरोपों की कोई विश्वसनीयता नहीं है, जबकि कुछ जानकारों का मानना है कि यह भारत के लिए गंभीर समस्या बन सकता है।
इंस्टीट्यूट ऑफ कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट एंड साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के कार्यकारी निदेशक अजय साहनी ने टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में छपे एक लेख में लिखा है कि ट्रूडो सरकार के आरोप विश्वसनीय नहीं हैं और भारत को निशाना बनाने की एक सुनियोजित कोशिश का हिस्सा लगते हैं।
वहीं येल विश्वविद्यालय में लेक्चरर सुशांत सिंह ने एक्स पर लिखा कि आप जी7 को छोड़ भी दें, तो कनाडा के नाटो और फाइव आईज अलायन्स का हिस्सा होने की वजह से भारत के लिए इस मामले को सीधे और सरल तरीके से निपटाना आसान नहीं होगा।
इस बीच ट्रूडो ने मंगलवार 19 सितंबर को एक और बयान में कहा कि वो भारत को भड़काना नहीं चाह रहे हैं और भारत सरकार के साथ काम करना चाह रहे हैं ताकि सारा मामला साफ हो सके।