गाम्बिया में हाल ही में 69 बच्चों की मौत के बाद भारतीय दवा कंपनियां फिर से सुर्खियों में आ गई हैं। कई रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों को भारत में निर्मित कफ सिरप दी गई थी। इसे पीने के बाद से ही बच्चों की हालत बिगड़ी और आखिरकार उनकी मौत हो गई। इस सिरप का निर्माण भारतीय कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ने किया था और चार अलग-अलग ब्रांडों के तहत इसे अफ्रीकी देश में निर्यात किया गया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड द्वारा बनाई गईं चार दवाओं में डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा सुरक्षित मानकों से अस्वीकार्य स्तर तक' ज्यादा है, जो घातक हो सकता है।
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि ये उत्पाद दूषित' थे और इन्हें इस्तेमाल करने की वजह से पेट में दर्द, उल्टी, दस्त, पेशाब में परेशानी, सिरदर्द, मानसिक स्थिति में बदलाव जैसे वे लक्षण दिखने शुरू हुए जिनसे मौत हो सकती है।'
इस पूरे मसले पर मेडन फार्मास्युटिकल्स ने कहा कि वह उत्पादन की प्रक्रिया में स्वास्थ्य अधिकारियों के प्रोटोकॉल का सही तरीके से पालन कर रहा था'। वह इस घटना से हैरान' और काफी दुखी' है।
गाम्बिया की घटना को लेकर भारत सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए विशेष पैनल गठित किया है। फिलहाल, पैनल ने अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है। हालांकि, इस स्कैंडल ने पहले ही भारत के विशाल दवा उद्योग को लेकर दर्दनाक सवाल खड़े कर दिए हैं।
भारत टीकों के निर्माण के मामले में दुनिया का अग्रणी देश है और जेनेरिक दवाओं का भी बड़ा उत्पादक है। जेनेरिक दवाएं कीमत के लिहाज से सस्ती होती हैं। साथ ही, गुणवत्ता के मामले में ब्रैंडेड दवाओं की तरह ही प्रभावी होती हैं।
वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं की 20 फीसदी आपूर्ति भारत करता है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स का अनुमान है कि बढ़ती निर्यात हिस्सेदारी के साथ भारत का दवा उद्योग बढ़ता रहेगा और अगले साल तक यह उद्योग लगभग 60।9 अरब डॉलर मूल्य का हो जाएगा।
हालांकि, एक विशाल दवा बाजार में नकली दवाओं के उत्पादन और वितरण का भी खतरा होता है, क्योंकि कई लोग भारत के नियम-कानूनों के कड़ाई से पालन पर सवाल उठाते हैं।
दवा बाजार के स्कैंडल
भारत निर्मित कफ सिरप से जुड़ी गाम्बिया की घटना इस तरह की पहली घटना नहीं है। दो साल पहले, डिजिटल विजन नामक कंपनी के बनाए गए सिरप के सेवन से जम्मू और कश्मीर में 17 बच्चों की मौत हो गई थी।
इस घटना की जांच में पाया गया कि सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा काफी ज्यादा थी। गाम्बिया में हुई मौत के बाद डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में भी पाया गया कि वहां भेजे गए कफ सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा सुरक्षित मानकों से अस्वीकार्य स्तर तक' ज्यादा थी।
जम्मू-कश्मीर की घटना के बाद भारत सरकार ने इस कफ सिरप के इस्तेमाल पर रोक लगा दी और उन उत्पादों के इस्तेमाल का निर्णय लिया गया जिनमें ये दो विषैले पदार्थ डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल शामिल नहीं किए जाते।
कुछ साल पहले 2016 में, दो भारतीय दवा कंपनियों पर डायबिटीज के नकली दवाओं के निर्यात का आरोप लगा था।
भारत के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने फार्मास्यूटिकल प्रॉडक्ट ऑफ इंडिया लिमिटेड और वेनवरी की जांच की। इसमें पाया गया कि इन दोनों के बीच निर्माण और निर्यात को लेकर समझौता था। दोनों कंपनियां डायबिटीज की दवा मेटफॉर्मिन हाइड्रोक्लोराइड की अवैध रूप से रीब्रांडिंग कर रही थीं और उन्हें बांग्लादेश, ब्राजील, मेक्सिको और पाकिस्तान को निर्यात कर रही थीं। यह अवैध गतिविधि कई वर्षों से चल रही थी।
2013 में रैनबैक्सी लैबोरेटरीज नामक कंपनी को मिलावटी दवाओं के निर्माण और वितरण के लिए दोषी ठहराया गया था। अमेरिकी न्याय विभाग के साथ एक समझौते के तहत कंपनी 50 करोड़ डॉलर की जुर्माना राशि का भुगतान करने के लिए तैयार हुई।
बात यहीं तक सीमित नहीं है। पिछले साल जब दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत भी कोरोना वायरस की लहर से जूझ रहा था, तब काफी संख्या में रेमडेसिविर की नकली शीशियां ज्यादा कीमतों पर बाजार में बेची गई और निर्यात भी की गई। कोविड के इलाज के लिए इस एंटीवायरल दवा की मांग उस समय काफी ज्यादा बढ़ गई थी।
सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाले दिनेश ठाकुर ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत में 1940 में बने ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत दवा से जुड़े नियमों का पालन किया जाता है। हालांकि, बाद में इसमें थोड़े-बहुत बदलाव किए गए हैं, लेकिन भारत जैसे बड़े बाजार जो राज्यों का एक संघ है उसे सही तरीके से संचालित करने के लिए ये नियम पर्याप्त नहीं हैं।"
दिनेश ठाकुर दवा उद्योग के क्षेत्र में बतौर अधिकारी काम कर चुके हैं। वह आगे कहते हैं, "दवा के निर्माण और वितरण से जुड़े नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी जिस नौकरशाही पर है वह बेकार, अक्षम और भ्रष्ट है।"
सुरक्षा जांच में असफल रहीं हजारों दवाएं
यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (यूएसटीआर) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीय बाजार में बिकने वाले सभी दवा उत्पादों में से 20 फीसदी नकली हैं। आधिकारिक सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है कि 2007 और 2020 के बीच, भारत के मात्र तीन राज्य और तीन केंद्र शासित प्रदेशों से जांच के लिए इकट्ठा किए गए नमूने में से 7500 से अधिक दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गईं।
2018 में, सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने जानकारी दी कि भारतीय बाजार में मौजूद कुल जेनेरिक दवाओं में लगभग 4।5 फीसदी दवाएं घटिया थीं।
इसके अलावा, भारत में मौजूद 12,000 से अधिक विनिर्माण इकाइयों में से महज एक चौथाई ही डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक कार्य करती हैं।
भारत के फॉर्मा सिक्योर के अध्यक्ष और सीईओ नकुल पसरीचा कहते हैं, "भारत में दवा से जुड़े कानून का पालन कराने वाले नियामकों के पास कम संसाधन हैं।" फॉर्मा सिक्योर दवा बनाने वाली प्रमुख कंपनियों के साथ काम करती है, ताकि उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को ट्रैक किया जा सके और उनकी दवाओं की प्रमाणिकता की पुष्टि की जा सके।
नकुल पसरीचा ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमें दवा से जुड़ी प्रणालियों को मजबूत करने की जरूरत है। अगर इस तरह की हाई-प्रोफाइल घटनाओं (गाम्बिया) से हमारे निर्यात पर किसी भी तरह का असर पड़ता है, तो यह स्पष्ट रूप से भारत के दवा उद्योग की प्रतिष्ठा के लिए अच्छी बात नहीं है।"
पसरीचा का यह भी मानना है कि दवा कंपनियों को गुणवत्तापूर्ण दवा का निर्माण करना चाहिए। साथ ही, किसी भी तरह की जालसाजी को रोकने के लिए समय-समय पर जांच करनी चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी कंपनी से बाहर जाने वाली दवा घटिया' न हो।
खतरा शून्य' होना चाहिए
भारत के दवा उद्योग से जुड़े हाल के स्कैंडल पर टिप्पणी करते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के कोच्चि चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष राजीव जयदेवन ने कहा कि मरीजों और डॉक्टरों को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "हालांकि, अगर गाम्बिया जैसी घटनाएं होती हैं, तो प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है। नकली दवा के लिए माफी की गुंजाइश नहीं है। यह शून्य होना चाहिए।”
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि नकली दवा तस्करों पर लगाम लगाने के लिए स्वास्थ्य आपूर्ति श्रृंखला के सभी चरणों की उच्च स्तर की निगरानी और मूल्यांकन' होना चाहिए।
स्वास्थ्य कार्यकर्ता दिनेश ठाकुर भी कुछ ऐसा ही चाहते हैं। वह कानून के तहत ज्यादा पारदर्शिता और जवाबदेही' की मांग करते हैं। ठाकुर कहते हैं, "हमें कानून में बुनियादी बदलाव करने की जरूरत है। साथ ही, यह भी तय किया जाना चाहिए कि इनका अनुपालन कड़ाई से हो।”