रिपोर्ट : मुरली कृष्णन
भारत में कोरोनावायरस के संक्रमण के मामले में कुछ दिनों से रिकॉर्ड दर्ज हो रहे हैं और इसी के साथ वायरस से मरने वालों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि मौत की आधिकारिक गिनती पूरी कहानी नहीं बताती है।
18 से 25 अप्रैल के बीच भारत में कोरोनावायरस के 22.40 लाख मामले दर्ज किए गए, जो कि महामारी की शुरुआत के बाद से किसी भी देश द्वारा 7 दिनों की अवधि में दर्ज किए गए मामलों की सबसे अधिक संख्या है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इसी सप्ताह में कोरोना के कारण मौत 8,588 से दोगुनी हो कर 16,257 हो गई। पिछले 5 दिनों में भारत में हर रोज 3 लाख से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। संक्रमण से अबतक के सारे रिकॉर्ड टूटते नजर आ रहे हैं।
अब तक भारत में 1.76 करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1।97 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े चौंका देने वाले हैं, लेकिन विशेषज्ञ और महामारी विज्ञान से जुड़े लोगों का मानना है कि पूरे देश में कोविड के कारण हुई मौतें जो स्वास्थ्य विभाग द्वारा दर्ज की गई हैं वे असल में अधिक हो सकती हैं। एक निजी डॉक्टर अनूप सराया ने डीडब्ल्यू से कहा कि एम्बुलेंस में मरीजों की मौत और श्मशान घाटों के बाहर मृतकों का अंतिम संस्कार बताता है कि त्रासदी कहीं अधिक बड़ी है।
आंकड़ों में विसंगति
भारत की अपेक्षाकृत कम मृत्यु दर पूरी कहानी नहीं बताती है और कई राज्यों में गिनती कम बताई जा रही है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि संदिग्ध मामलों को अंतिम गिनती में नहीं जोड़ा जा रहा है और संक्रमण से होने वाली मौतों के लिए मरीज की स्वास्थ्य स्थिति को जिम्मेदार बताया जा रहा है। अशोक यूनिवर्सिटी में जीवविज्ञान के प्रोफेसर गौतम मेनन कहते हैं कि कोविड-19 के कारण मौतों के आधिकारिक रिकॉर्ड और श्मशान और कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के रिकॉर्ड के बीच एक व्यापक विसंगति नजर आती है। वे कहते हैं कि इन अंतरों से पता चलता है कि सही संख्या को छिपाया जा रहा है। वे कहते हैं कि कोविड-19 से होने वाली मौतों की वास्तविक संख्या आधिकारिक संख्या से 5 से 10 गुना हो सकती है। साथ ही मामले कम कर रिपोर्ट किए जा रहे हैं। इसके अलावा पूरे देश में जिस तरह से पॉजिटिविटी दर देखने को मिल रही है, महामारी की असली तस्वीर कहीं अधिक खराब हो सकती है।
विषाणु विज्ञानी और त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के निदेशक शाहिद जमील भी मानते हैं कि दर्ज की जा रही मौतों से असली मौतों की संख्या अधिक हो सकती है। वे मानने हैं कि श्मशान घाट और कब्रिस्तान की रिपोर्टों के आधार पर, मरने वालों की वास्तविक संख्या दर्ज की गई संख्या की तुलना में अधिक है। वे कहते हैं कि कोविड जांच की बढ़ती मांग ने बैकलॉग पैदा कर दिया है, जिससे प्रयोगशालाएं जो घंटों के भीतर परिणाम जारी करती हैं, अब उन्हें नतीजे बताने में कई दिन लगते हैं।
मौतों का पंजीकरण
सूरत, कानपुर और गाजियाबाद जैसे छोटे शहरों में, जहां कोविड से होने वाली मौतों की एक बड़ी संख्या दर्ज हो रही है, वहां श्मशान की जगह में कमी और आधिकारिक आंकड़ों से कहीं अधिक मौतों के कारण खुले स्थानों पर सामूहिक दाह-संस्कार हो रहे हैं। हालांकि कई देश कोविड के कारण हुई मौतों की सही संख्या दर्ज करने में नाकाम रहे हैं, भारत के कई हिस्सों में मृत्यु पंजीकरण प्रणाली की कमी से यह समस्या और जटिल हो गई है।
एक विश्वसनीय मृत्यु पंजीकरण प्रणाली के अभाव में सरकार का एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) कोविड मामलों और कोविड से होने वाली मौतों का डाटा परीक्षण प्रयोगशालाओं और अस्पतालों से एकत्र कर रहा है। हालांकि आईडीएसपी की एक बड़ी खामी यह है कि इसके पास अस्पतालों के बाहर होने वाली मौतों पर नजर रखने का कोई तरीका मौजूद नहीं है। प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम के विकास बाजपेयी ने डीडब्ल्यू को बताया कि वर्तमान परिदृश्य में, भारत की बढ़ती आधिकारिक कोविड मौत सिर्फ छोटे हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं, क्योंकि बड़े शहरों के बाहर कोरोना की जांच कम हो रही है। वास्तविक मामले और कोविड से होने वाली मौतें कुछ नहीं तो 10 से 30 गुना अधिक हो सकती है।
इस बीच कोरोना पॉजिटिव होने की दर भी बढ़ी है। जहां देश में 5 में से एक पॉजिटिव निकल रहा है वहीं दिल्ली में 3 में से एक कोरोना पॉजिटिव हो रहा है। टोरंटो में सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के प्रभात झा के मुताबिक कि कोविड-19 से मौतों की बेहतर रिपोर्टिंग की जरूरत है। कुल मृत्यु की दैनिक या साप्ताहिक रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए। उम्र और लिंग के साथ-साथ प्रत्येक नगरपालिका द्वारा मौतों को गिना जाना चाहिए जिससे यह पता लगाने में मदद मिलेगी की कि कोविड से होने वाली मौतों में उछाल दर्ज की जा रही है।