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जापान में मांस खाने वाले जानलेवा बैक्टीरिया का बढ़ता कहर

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DW

, सोमवार, 1 जुलाई 2024 (07:55 IST)
फ्रेड श्वालर
जापान में मांस खाने वाले बैक्टीरिया की वजह से एसटीएसएस संक्रमण तेजी से फैल रहा है। इसकी वजह से महज 48 घंटे के अंदर किसी व्यक्ति की मौत हो सकती है। आखिर बैक्टीरिया से होने वाली यह दुर्लभ बीमारी इतनी जानलेवा क्यों है?
 
यह बात सुनने में भले ही किसी डरावनी फिल्म की कहानी जैसी लगती है, लेकिन जापान में इस वक्त 'मांस खाने वाले' एक खतरनाक बैक्टीरिया से जुड़े जानलेवा संक्रमण के कारण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसकी वजह से स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जापान में जनवरी से अब तक स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (एसटीएसएस) के 1,000 से ज्यादा मामले सामने आए हैं, जो पिछले पूरे साल दर्ज किए गए मामलों से भी ज्यादा हैं।
 
एसटीएसएस एक दुर्लभ, लेकिन गंभीर बीमारी है जो आमतौर पर स्ट्रेप्टोकोकस पायोजेन्स नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से होती है। शुरुआत में इससे बुखार और गले में संक्रमण होता है, लेकिन बहुत जल्द ही जानलेवा स्थिति बन जाती है। तेजी से फैलने वाला यह संक्रमण शरीर में 'टॉक्सिक शॉक' पैदा कर सकता है, जिससे अंग काम करना बंद कर सकते हैं। कुछ ही दिनों में प्रभावित व्यक्ति की मौत तक हो सकती है।
 
यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, इलाज के बावजूद भी एसटीएसएस जानलेवा हो सकता है। इस बीमारी से संक्रमित 10 लोगों में से तीन लोगों की मौत हो सकती है।'
 
जापान में क्यों बढ़ रहे STSS के मामले?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों को भी साफ तौर पर यह बात समझ में नहीं आ रही है कि पूर्वी एशिया के देश जापान में एसटीएसएस के मामले अचानक तेजी से क्यों बढ़ गए हैं। सीडीसी के मुताबिक, "विशेषज्ञों को नहीं पता कि एसटीएसएस से पीड़ित लगभग आधे लोगों के शरीर में यह बैक्टीरिया कैसे पहुंचा।"
 
मार्च में, जापान के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इंफेक्शियस डिजीज (NIID) ने कहा, स्ट्रेप्टोकोकस के अचानक और तेजी से गंभीर होने वाले मामलों (फुलमिनेंट स्ट्रेप्टोकोकस) के पीछे के कारणों को लेकर अभी भी कई सारी अनसुलझी बातें हैं। विशेषज्ञों के पास अभी इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है और वे इन कारणों को स्पष्ट रूप से नहीं बता पा रहे हैं।
 
एसटीएसएस के थोड़े-बहुत मामले पूरी दुनिया में सामने आते रहते हैं, लेकिन जापान में हाल के समय में जितनी तेजी से ये मामले बढ़े हैं उसने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें इस बात का डर है कि अन्य देश भी इसकी चपेट में आ सकते हैं और वहां भी यह संक्रमण तेजी से फैल सकता है।
 
हालांकि, फिलहाल इस बात का कोई संकेत नहीं मिला है कि दुनिया के अन्य किसी हिस्से में एसटीएसएस संक्रमण तेजी से फैल रहा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में सीडीसी ने अब तक एसटीएसएस के 395 मामलों को दर्ज किया है, जो कि पिछले साल इस समय तक दर्ज किए गए 390 मामलों के बराबर ही हैं।
 
इतना घातक क्यों है STSS?
स्ट्रेप्टोकोकस पायोजेन्स नामक बैक्टीरिया बहुत से लोगों की त्वचा पर रहता है, लेकिन यह उन्हें बीमार नहीं करता। अगर यह बैक्टीरिया इंसान के खून में मिल जाता है या शरीर के किसी अंदरूनी हिस्से में पहुंच जाता है, तो जानलेवा एसटीएसएस का कारण बन सकता है।
 
जब यह बैक्टीरिया शरीर के अंदरूनी हिस्सों और खून में फैलता है, तो खतरनाक जहर एक्सोटॉक्सिन पैदा करता है। ये एक्सोटॉक्सिन हमारे शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों को नष्ट कर देते हैं। इस वजह से इसे 'मांस खाने वाला बैक्टीरिया' भी कहा जाता है।
 
अगर बैक्टीरिया की वजह से संक्रमण काफी ज्यादा बढ़ जाता है, तो शरीर के अंग काम करना बंद कर सकते हैं और किसी व्यक्ति की मौत हो सकती है। एसटीएसएस खासतौर पर तेजी से अंगों को खराब करने वाला संक्रमण है। इसमें बुखार, बदन दर्द और मिचली जैसे शुरुआती लक्षण दिखने के 24 से 48 घंटों के अंदर ही ब्लड प्रेशर कम होने जैसी गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है।
 
संक्रमण होने पर, एसटीएसएस तेजी से गंभीर रूप ले लेता है। दिल की धड़कन और ब्ल्ड प्रेशर असामान्य हो जाता है। किडनी और लिवर जैसे अंग काम करना बंद कर देते हैं।
 
एसटीएसएस का इलाज आमतौर पर अस्पताल में एंटीबायोटिक दवाओं, जैसे कि एम्पीसिलीन से किया जाता है। हालांकि, स्ट्रेप्टोकोकस पायोजेन्स के कुछ बैक्टीरिया पर दवाओं का असर नहीं होता। वे दवाओं के असर को कम करने वाले एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में, शरीर में संक्रमण फैलने से रोकने के लिए डॉक्टर ऑपरेशन करके संक्रमित टिशू को निकालते हैं। 
 
क्या STSS संक्रामक है?
सीडीसी ने चेतावनी जारी की है कि कम गंभीर बैक्टीरिया का संक्रमण भी एसटीएसएस में बदल सकता है, जैसे कि ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस संक्रमण। ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया बहुत ज्यादा संक्रामक होते हैं। ये बातचीत करने, खांसने, छींकने या फिर संक्रमित त्वचा के घावों के सीधे संपर्क में आने से फैलते हैं।
 
आमतौर पर 65 साल से ज्यादा उम्र के लोग एसटीएसएस से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। साथ ही, वे लोग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं जिन्हें पहले से ही कोई बीमारी है, जैसे कि डायबिटीज या ज्यादा शराब पीने की लत।
 
खुले घाव से भी एसटीएसएस होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए जिन लोगों की हाल ही में सर्जरी हुई है या जिन्हें कोई ऐसा वायरल इंफेक्शन, जैसे कि चिकनपॉक्स या शिंगल्स हुआ है, उन्हें अपने घावों को ढककर रखने की सलाह दी जाती है। इससे स्ट्रेप्टोकोकस पायोजेन्स के संक्रमण का खतरा कम होता है।
 
सीडीसी यह भी सलाह देता है कि लोग ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस से संक्रमित लोगों के संपर्क में आने से बचें और अगर उन्हें खुद यह संक्रमण हो जाए, तो जल्द से जल्द इलाज करवाएं।

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