देश में ऊर्जा सुरक्षा पर संकट और पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों को देखते हुए जापान अपने नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के अलावा मौजूदा संयंत्रों को और विस्तार देने की योजना पर काम कर रहा है। जापान केफुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र में हुई आपदा के 11 साल बाद और परमाणु ऊर्जा के बारे में लगातार सावधानी बरतने के बाद अब प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने बदलाव के संकेत दिए हैं।
 
									
			
			 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	
	 
	ग्रीन ट्रांसफॉर्मेशन इम्प्लीमेंटेशन काउंसिल की एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए किशिदा ने सरकारी अफसरों और ऊर्जा विशेषज्ञों को निर्देश दिया कि ज्यादा से ज्यादा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में संचालन फिर से शुरू किए जाएं, यह देखें कि संयंत्रों को ज्यादा समय तक कामकाजी कैसे रखा जा सकता है और यह भी पता लगाएं कि अगली पीढ़ी के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए क्या किया जा सकता है।
 
									
										
								
																	
	 
	ये बदलाव हालांकि जापान की महत्वपूर्ण नीति को लगभग पलट देने वाले हैं लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले और ऊर्जा कीमतों में हुई बढ़ोत्तरी को देखते हुए जापान के लोग धीरे-धीरे ही सही लेकिन अपने परमाणु ऊर्जा विरोधी दृष्टिकोण में बदलाव ला रहे हैं।
 
									
											
									
			        							
								
																	
	 
	किशिदा ने अधिकारियों से कहा है कि वो इस साल के अंत तक परमाणु ऊर्जा पर लौटने वाले विकल्पों की एक कार्ययोजना बना लें। इस योजना में उन्होंने यह बात शामिल करने को भी कहा है कि जिन्हें इसके बारे में संशय हो, उनकी शंका का समाधान कैसे करना है।
 
									
											
								
								
								
								
								
								
										
			        							
								
																	
	 
	पीछे हटने के फैसले का विरोध
	 
	सर्वेक्षण बताते हैं कि लोगों के विचार में परिवर्तन होने लगा है। याहू जापान ने इस बारे में जुलाई में एक मतदान कराया जिसमें 74 फीसदी लोगों का विचार था कि ज्यादा से ज्यादा संयंत्रों को चालू किया जाए। इस सर्वेक्षण की तुलना यदि मार्च 2011 में किए सर्वेक्षण से की जाय तो नतीजे बिल्कुल उलट दिखाई देंगे। तब 80 फीसदी लोगों ने परमाणु ऊर्जा का प्रबल विरोध किया था। 2011 में ये सर्वेक्षण जापान में आए भूकंप और सुनामी के तत्काल बाद कराए गए थे जब फुकुशिमा संयंत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ था।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	हालांकि अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो कि परमाणु ऊर्जा का तीव्र विरोध कर रहे हैं और इन लोगों का कहना है कि देश की ऊर्जा जरूरतों के नाम पर गुमराह किया जा रहा है जबकि ऊर्जा के सस्ते और सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	फिलहाल, फुकुशिमा आपदा से पहले संचालित हो रहे 54 में से 10 परमाणु संयंत्र दोबारा शुरू हो गए हैं। शुरू करने से पहले व्यापक तौर पर इनकी भूकंपीय रीमॉडलिंग और सुरक्षा जांच की गई। जापान सरकार अगली गर्मी तक सात और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का संचालन शुरू करना चाहती है और उसकी योजना है कि साल 2030 तक देश की 20 फीसदी ऊर्जा जरूरत की पूर्ति परमाणु ऊर्जा से हो।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	यह विवादास्पद है लेकिन विशेषज्ञ इस बात की भी जांच कर रहे हैं कि इन संयंत्रों की संचालन अवधि को चालीस साल से ज्यादा कैसे किया जाए। कुछ पुराने संयंत्रों की अवधि को 60 साल तक किया जा रहा है। नेशनल ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीज में ऊर्जा नीति के प्रोफेसर हिसानोरी नेई कहते हैं कि परमाणु ऊर्जा पर सरकारी नीति में यह बदलाव अचानक नहीं है।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	डीडब्ल्यू से बातचीत में नेई कहते हैं कि जुलाई में चुनाव से पहले सरकार इस योजना की घोषणा नहीं करना चाहती थी, क्योंकि उन्हें इस बात की चिंता थी कि इसकी प्रतिक्रिया उन्हें नुकसान भी पहुंचा सकती है। लेकिन किशिदा चुनाव जीत गए और अब उनके पास अगले चुनाव तक तीन साल का समय है। इसलिए यह समय भी हैरान करने वाला नहीं है, क्योंकि उद्योग जगत परमाणु ऊर्जा के लिए लॉबीइंग कर रहा है और मंत्रालय भी अपनी योजनाओं को कुछ इस तरह पेश कर रहे हैं जैसे इसकी बहुत जरूरत है।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	क्या छोटे परमाणु रियेक्टर इसके जवाब हैं?
	 
	इस मामले में सरकार के बढ़ते कदम को रूस-यूक्रेन युद्ध से भी मजबूती मिल रही है, क्योंकि ऊर्जा कीमतें बढ़ गई हैं। जापान इस मामले में इसलिए भी अतिशय संवेदनशील हो गया है, क्योंकि उसके पास ऊर्जा का कोई घरेलू स्रोत नहीं है और ऊर्जा संसाधन पर वो लगभग पूरी तरह से आयात पर ही निर्भर रहता है। सिर्फ एक तकनीक है जिस पर जापान थोड़ा-बहुत भरोसा कर सकता है कि वो अपनी ऊर्जा जरूरतों का हल निकाल सकता है, वो हैं छोटी मॉड्यूल रियेक्टर यूनिट्स यानी एसएमआर।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	जापान ने 26 अगस्त को घोषणा की कि वह अमेरिका और 9 अन्य देशों के साथ एक समझौते के करीब पहुंच गया है जो एसएमआर के विकास में सहयोग करेंगे। इन एसएमआर इकाइयों की क्षमता करीब 3 लाख किलोवॉट है जबकि मौजूदा समय में परंपरागत रियेक्टरों की क्षमता 10 लाख किलोवॉट है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	छोटी इकाइयों का लाभ यह है कि इन्हें बनाना सस्ता पड़ता है और दुर्घटना की स्थिति में इनसे नुकसान की आशंका भी कम होती है। जापान में सरकार चाहती है कि शहरों में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में एसएमआर इकाइयों की स्थापना करे।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	परमाणु ऊर्जा के लिए 'कोई सकारात्मक नहीं'
	 
	क्योटो स्थित ग्रीन एक्शन जापान के साथ प्रचारक का काम कर रहीं एलीन मायोको-स्मिथ कहती हैं कि सरकार की परमाणु ऊर्जा की ओर लौटने वाली नीति को लेकर कोई भी सकारात्मक विचार नहीं रखता है। वो कहती हैं, "हर एक रियेक्टर जिसे वो दोबारा चालू करना चाहते हैं और जिसकी अवधि को बढ़ाना चाहते हैं, वास्तव में ये सब एक और फुकुशिमा जैसी आपदा को दावत देना है। वो हमें बताना चाहते हैं कि उन्होंने आपदा से सीख ली है और तकनीक सुरक्षित है, लेकिन वो इसकी गारंटी नहीं दे सकते हैं।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	वो कहती हैं कि लेकिन सुरक्षा के मुद्दों के अलावा, यह एक खराब ऊर्जा नीति है। इन नए रियेक्टरों को विकसित करना बहुत खर्चीला होने वाला है और इसमें बहुत समय भी लगेगा। इसके बाद अनुमोदन प्रक्रिया में भी समय लगेगा, और उसके बाद उन्हें चलाने के लिए अनुमोदन लेना पड़ेगा और आखिर में आस-पास रह रहे लोगों की भी स्वीकृति लेनी होगी। हमारे पास इतना समय नहीं है। गर्मी के मौसम इतना ज्यादा तापमान होता है। जलवायु संकट चारों तरफ व्याप्त है। इसलिए हमारे पास नई तकनीकों की ओर देखने के लिए फिलहाल समय नहीं है जिन्हें शुरू करने में एक दशक का समय लग सकता है लेकिन वो अभी काम लायक नहीं हैं।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	मायोको स्मिथ मानती हैं कि ऊर्जा के नवीनीकृत स्रोत अच्छे और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प हो सकते हैं, लेकिन जरूरत ऐसे विकल्पों की है जो ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति तत्काल कर सकें। वो कहती हैं कि हमें ज्यादा कुशल होने और ज्यादा ऊर्जा संरक्षण के लिए बदलाव की जरूरत है ताकि हम जिसका उत्पादन कर रहे हैं उसे बर्बाद न करना पड़े।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	इसका एक सामान्य उपाय यह भी है कि ऐसी इमारतें बनाई जाएं जिनमें बिजली पैदा करने वाले उपकरण लगे हों और औद्योगिक स्थलों की बर्बाद हो रही ऊष्मा को भी संरक्षित करने और उसे दोबारा इस्तेमाल में लाने जैसी तकनीक का प्रयोग करना चाहिए।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	मायोको कहती हैं कि फुकुशिमा के बाद, जब सभी रियेक्टर बंद कर दिए गए थे और जापान में बड़ा ऊर्जा संकट आ गया, तो लोगों ने सकारात्मक तरीके से प्रतिक्रिया दी। लोगों ने बिजली की खपत काफी कम कर दी और संसाधनों को बर्बाद ना करने को लेकर काफी जागरूक हो गए। मुझे नहीं लगता कि यदि फिर उनसे ऐसा करने को कहा जाए तो वो नहीं करेंगे।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	'परमाणु पुनर्जागरण'
	 
	प्रोफेसर नेई एक 'परमाणु पुनर्जागरण' होता देख रहे हैं। वो कहते हैं कि यूक्रेन की घटनाओं ने जापान समेत पूरी दुनिया को किसी भी देश की ऊर्जा सुरक्षा के महत्व को दिखा दिया है। सरकार जापान के लोगों के बीच इस संदेश को बार-बार पहुंचाती रहेगी जो ईंधन की बढ़ती कीमतों को लेकर पहले से ही परेशान हैं। दूसरा महत्वपूर्ण संदेश जो उनके बीच पहुंचाया जा रहा है वो ये कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय में जिम्मेदार देश साबित होने के लिए साल 2050 तक कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को काफी कम करना है और इसके लिए परमाणु ऊर्जा को अपनाना बेहद जरूरी है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	वो कहते हैं कि फुकुशिमा हादसे को एक दशक से भी ज्यादा हो गया है और जापान उस घटना से काफी सीख ले चुका है। हम जानते हैं कि कैसे उन्हें दोबारा बनाना है, दोबारा चालू करना है और कैसे सुरक्षित रहना है। इन सारी चीजों को हमें अभ्यास में लाने की जरूरत है तभी हम नई परमाणु तकनीक के विकास में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं और अपनी ऊर्जा आपूर्ति को सुरक्षित रख सकते हैं।(सांकेतिक चित्र)