उम्र बढ़ने के साथ साथ हाथ पांव के जोड़ों में दर्द होने लगता है और हड्डियों में कमजोरी आने लगती है। सबसे ज्यादा ये परेशानी घुटनों में महसूस होती है। कभी आपने सोचा है ऐसा क्यों होता है?
जीवन के कई सालों तक हमारे शरीर के जोड़ बिना किसी दिक्कत के काम करते रहते हैं। फिर ऐसा क्या होता है कि एक उम्र के बाद उनमें दर्द शुरू हो जाता है, परेशानी होने लगती है? रिसर्चरों का मानना है कि हमारी जिंदगी के अंत में जो सब प्रक्रियाएं होती हैं उनका संबंध जीवन के शुरुआत में होने वाली कुछ प्रक्रियाओं से है। वास्तव में ये प्रक्रियाएं इंसान के जन्म से भी पहले उसकी भ्रूण अवस्था में ही शुरू हो जाती है।
गर्भ में रहने के दौरान भ्रूण में एक परिवर्तन होता है। भ्रूण अवस्था में हमारे शरीर का अस्थिपंजर पूरी तरह से कार्टिलेज से बना होता है। धीरे धीरे इसमें बदलाव होता है और फिर कार्टिलेज से हड्डियां बनती हैं। कार्टिलेज शरीर के सिर्फ उसी हिस्से में रह जाता है, जहां इसकी जरूरत होती है, यानी जोड़ों में। इन जगहों पर कार्टिलेज से हड्डियों में बदलने की यह प्रक्रिया रुक जाती है। इसके साथ ही हम जीवन में रोजमर्रा की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
मजबूत हड्डियों और कार्टीलेज की पतली परत के संयोग से हमारा शरीर इस लायक बनता है कि हम अलग अलग जरूरतों और परिस्थितियों के मुताबिक उसका इस्तेमाल कर पाते हैं। कार्टिलेज बेहद मजबूत होती है। यह सैकड़ों किलो का भार उठा सकती है और इसके साथ ही शरीर को लचीला बनाने में भी मदद करती है। ये सब इसके खास ढांचे की वजह से मुमकिन हो पाता है। कार्टिलेज में एक इलास्टिक घोल मौजूद होता है जो पानी, प्रोटीन और कोलेजन की कई परतों से मिल कर बनता है। ये परत आपस में बहुत बारीकी से जुड़े होते हैं।
कार्टिलेज के इस ढांचे को इसी तरह का बनाए रखना जरूरी होता है और यह काम कार्टिलेज की कोशिकाएं करती हैं। ये कोशिकाएं कार्टिलेज के ऊतकों की गहराई में मौजूद होती हैं। ये कोशिकाएं लगातार कार्टिलेज के फाइबर को बदलती रहती हैं। पुरानी प्रोटीन चेन की जगह नई ले आती हैं और कई सालों तक यह प्रक्रिया इसी तरह से ठीक ठाक चलती रहती है।
उम्र बीतने के साथ इन जोड़ों में एक अजीब सी प्रक्रिया शुरू होती है। जोड़ों में कुछ ऐसा होता है कि कोशिकाएं ही कार्टिलेज को तबाह करने लगती हैं। ये कोशिकाएं दोबारा उसी प्रक्रिया को शुरू कर देती हैं, जो भ्रूण अवस्था में हुई थी। वो कार्टिलेज को खत्म करने में जुट जाती हैं। यह प्रक्रिया कुछ लोगों में जल्दी शुरू हो जाती है और कुछ में थोड़ी देर से।
इस प्रक्रिया में कुछ कार्टिलेज कोशिकाएं मर जाती हैं, तो कुछ हड्डियों की कोशिकाओं में बदल जाती हैं। कार्टिलेज अब फिर हड्डी का रूप लेने लगती है। इसकी वजह से हड्डियों का आकार बदलने लगता है ओर जोड़ों का चलना मुश्किल हो जाता है। वही प्रक्रिया जिसने भ्रूण अवस्था में हमें जीवन के लिए तैयार किया था, अब हमारे जोड़ों को कठोर और स्थिर बनाने लगती है। नतीजा इनमें दर्द के साथ साथ चलने फिरने और काम करने की मुश्किलों के रूप में सामने आता है।
रिपोर्ट: स्कार्लेट लोएर्के/एनआर