-मनीष कुमार
Lok Sabha Election 2024: बिहार में जातिवाद और आरक्षण के मुद्दे को मैनेज कर पार्टियां चुनावी जीत की कहानी लिखती रही हैं। यही मैनेजमेंट लालू प्रसाद के उदय और चारा घोटाले में फंसने के बाद वापसी कराने वाला रहा है। इस बार यह रणनीति कितनी कारगर होगी?
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण की वोटिंग तक बिहार की 19 समेत देशभर में 379 सीट पर चुनाव हो चुका है। सभी प्रमुख पार्टियां अपने-अपने हिसाब से जीत-हार का आकलन कर रही हैं। इसी बीच बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के आरक्षण के जिन्न ने पूरा सियासी माहौल गर्म कर दिया है। उनके इस जिन्न ने ही 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें खोया जनाधार वापस दिलाया था। आरजेडी को अकेले 80 सीट मिली और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) महज 53 सीट पर सिमट गई। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी लालू का जिन्न बाहर आ गया है। इस बार वह मुस्लिम आरक्षण पर है।
एक कार्यक्रम में लालू ने पत्रकारों से कह दिया कि मुसलमानों को पूरा आरक्षण मिलना चाहिए। हालांकि, चार घंटे के अंदर वे अपने बयान से पलट भी गए। पलटते हुए भी उन्होंने एक बार फिर मंडल-कमंडल को हवा देने का दांव खेला। बोले- मंडल कमीशन हमने लागू करवाया है। इसकी रिपोर्ट में 3,500 से अधिक पिछड़ी जातियों का उल्लेख है, जिन्हें आरक्षण मिल रहा है। वे लोगों को आगाह भी कर रहे। उन्होंने एक बार फिर कहा है, 'सावधान हो जाइए, भाजपा आपका आरक्षण, देश का लोकतंत्र और संविधान खत्म करने पर तुल गई है। लालू का यही अंदाज विपक्षियों को खूब डराता है।'
चक्रव्यूह में फंस चुकी बीजेपी हुई हमलावर
चुनावी एजेंडा सेट करने में माहिर लालू प्रसाद 2015 के विधानसभा चुनाव के वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान को लेकर यह माहौल बनाने में सफल रहे कि बीजेपी और आरएसएस मिलकर आरक्षण को खत्म करना चाहती है। भागवत ने केवल इतना भर कहा था कि समय आ गया है कि अब आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। पिछली बार लालू के चक्रव्यूह में फंस चुकी बीजेपी इस बार हिसाब बराबर करने में जुट गई।
बिहार में जातिवाद से परेशान हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण में जुटी बीजेपी को एक बड़ा मुद्दा हाथ लग गया। बीजेपी ने लालू के इस दांव को मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करार दे दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक इंडिया गठबंधन पर निशाना साधने लगे। उन्होंने अपनी कई जनसभाओं में कहा, 'जिनको चारा घोटाले में कोर्ट में सजा दी, वे कहते हैं कि मुसलमानों को आरक्षण देंगे। एससी-एसटी और ओबीसी को जितना आरक्षण मिला है, उसे छीनकर पूरा का पूरा आरक्षण वे मुसलमानों को देना चाहते हैं। लेकिन, मैं धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं होने दूंगा।'
दरक तो नहीं रहा एम-वाई समीकरण
जानकार बताते हैं कि समय के साथ-साथ राजनीतिक परिदृश्य और सामाजिक ताना-बाना बदल गया है। लालू प्रसाद ने जिस बीजेपी का डर दिखाकर मुसलमानों को साथ लिया था, वह अब सबका साथ-सबका विश्वास के रास्ते पर चल रही है। पत्रकार शिवानी सिंह कहती हैं, 'पसमांदा मुसलमानों में नीतीश कुमार की पैठ है ही, बीजेपी भी मुस्लिम वोट में सेंधमारी करने में एक हद तक सफल रही है। इन दोनों से इतर ओवैसी फैक्टर भी आरजेडी को सताता है।'
बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव 20 सीट पर लड़ने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने करीब सवा प्रतिशत वोट झटक कर तीन जिलों में 5 सीटें जीत ली थी। हालांकि, बाद में उनके चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए। इस बार ओवैसी की पार्टी लोकसभा की दस सीट पर लड़ रही है। इस वजह से आरजेडी को मुस्लिम वोटों के विभाजन की वजह से एम-वाई समीकरण के दरकने का डर सताना लाजिमी है।
पत्रकार शिवानी कहती हैं, 'मुस्लिम आरक्षण वाला लालू प्रसाद का बयान बैकफायर हो गया है। वे बीजेपी के ट्रैप में फंस गए हैं। अब बीजेपी को यह समझाने का पूरा मौका मिल गया है कि इंडिया गठबंधन पिछड़ों-दलितों का हक मारकर ही मुस्लिमों को आरक्षण देगी।'
इस बार लालू का जिन्न कितना कामयाब हो सकेगा, यह तो 4 जून को चुनाव परिणाम आने पर ही पता चल सकेगा। फिलहाल, इतना तो तय है कि इस जिन्न के सहारे मुसलमानों के गले में आरक्षण की माला डालकर इंडिया गठबंधन खासकर लालू प्रसाद और बीजेपी राजनीतिक यात्रा की राह आसान बनाने की जुगत में हैं।
प्रतिष्ठा बचाने के लिए ध्रुवीकरण की कोशिश
राजनीतिक समीक्षक अरुण कुमार चौधरी कहते हैं, 'लालू प्रसाद की दो बेटियां इस बार चुनाव में हैं। मीसा भारती दो बार बीजेपी के रामकृपाल यादव से पराजित हो चुकी हैं, वहीं छपरा में रोहिणी आचार्या के सामने राजीव प्रताप रूडी जैसे कद्दावर जमीनी नेता हैं। सियासी नब्ज देख एम-वाई समीकरण को मजबूत करने के उद्देश्य से ही ज्यादा संभव है लालू ने मुस्लिम आरक्षण की बात की।'
इसके साथ ही बगल की सीवान लोकसभा सीट से बाहुबली पूर्व सांसद मो। शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। उन्हें ओवैसी का भी समर्थन है। कभी आरजेडी का गढ़ रहे सिवान के मुस्लिम मतदाता मो। शहाबुद्दीन की मौत के बाद लालू परिवार का उनके परिजन से दूरी बनाने की वजह से नाराज बताए जाते हैं। इस कारण मुस्लिम मतदाताओं के एक बड़े वर्ग का आरजेडी से मोहभंग हो सकता है और इसका असर छपरा, गोपालगंज और महाराजगंज की सीट पर भी पड़ सकता है। अगर वास्तव में ऐसा हो गया तो रोहिणी के लिए राह काफी मुश्किल हो जाएगी। सिवान में राजद उम्मीदवार अवध बिहारी चौधरी को भी खासी चुनौती मिलेगी।
5वें चरण का चुनाव
18वीं लोकसभा के चुनाव के 5वें चरण में सोमवार को सारण, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और मधुबनी सीट पर मतदान होना है। मधुबनी में बीजेपी के अशोक यादव का सामना आरजेडी के अली अशरफ फातिमी से होगा। अशोक यादव बीजेपी के सांसद हैं और इनके पिता इसी सीट से 5 बार सांसद रह चुके हैं। यहां बीजेपी ने प्रत्याशी नहीं बदला है, किंतु यहां एमवाई समीकरण का ख्याल रखते हुए लालू ने मुस्लिम उम्मीदवार दिया है, ताकि यादव वोट थोड़ा टूटे भी तो मुस्लिम वोट थोक में मिल सके। यादव जाति के होने की वजह से अशोक के पक्ष में कुछ यादव जा सकते हैं। ऐसे में वोटों का ध्रुवीकरण होना तय है, तब पिछड़े और दलित भी पूरी तरह एनडीए की तरफ झुक सकते हैं।
हाजीपुर में चिराग पासवान (एलजेपी-आर) का आरजेडी के शिवचंद्र राम से मुकाबला है। यहां जातिगत समीकरण के अलावा चिराग को उनके दिवंगत पिता रामविलास पासवान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का लाभ मिलना तय है। मुजफ्फरपुर में दो मल्लाह (निषाद) नेताओं में लड़ाई है। बीजेपी के राजभूषण चौधरी के सामने कांग्रेस के अजय निषाद हैं। समीकरण के हिसाब से यहां जिस दल का जो परंपरागत वोट माना जाता है, वह उन्हें तो मिलेगा ही। किंतु, इस बार ज्यादा संभावना है कि फैसला पिछड़ा-अति पिछड़ा वोट से फैसला हो।
सीतामढ़ी में आरजेडी के एमवाई समीकरण की परख होगी। यहां बिहार विधान परिषद के सभापति व जदयू के प्रत्याशी देवेश चंद्र ठाकुर की टक्कर आरजेडी के अर्जुन राय से है। इस बार यहां शहरी और ग्रामीण वोटर में कहीं आक्रामकता नहीं दिख रही है। सब कुछ यहां जाति के आधार पर ही होना है। मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। देवेश जाति से ब्राह्मण हैं, जिसकी संख्या यहां कम है। कुशवाहा, वैश्य और भूमिहार वोटरों पर इनकी जीत निर्भर करेगी। आरजेडी कुशवाहा और वैश्य वोट में सेंधमारी करने में सफल रहा और भूमिहार उदासीन बने रहे तो एनडीए की राह मुश्किल हो सकती है।