प्रभाकर मणि तिवारी
चीन ने अरुणाचल प्रदेश सीमा से सटे इलाके में अपने सबसे बड़े बांध का निर्माण कार्य शुरू कर भारत की चिंता बढ़ा दी है। 170 अरब अमेरिकी डालर की इस परियोजना से भारत ही नहीं पड़ोसी बांग्लादेश की भी मुश्किलें बढ़ने का अंदेशा है।
चीन के मेगा बांध से पैदा होने वाली मुश्किलों से निपटने के लिए भारत ने भी जवाबी रणनीति तैयार की है। इसके लिए अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग जिले में सियांग बहुउद्देशीय परियोजना की रूपरेखा तैयार की गई है। लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध की वजह से अब तक यह परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी है। केंद्र सरकार के सूत्रों का कहना है कि भारत ने राजनयिक स्तर पर चीन को अपनी चिंताओं से अवगत करा दिया है।
इस बांध के प्रतिकूल असर के बारे में लोगों की राय भी बंटी हुई है। अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इसे 'वाटर बम' करार देते हुए कहा है कि भारत और खासकर राज्य में इसका बेहद प्रतिकूल असर होगा। हालांकि असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि इसका कोई तात्कालिक असर होने की संभावना नहीं है।
चीनी बांध परियोजना
चीनी मीडिया में छपी खबरों में बताया गया है कि चीन ने इस पनबिजली परियोजना के निर्माण के लिए चाइना याजियांग ग्रुप कंपनी लिमिटेड नामक एक नई कंपनी का गठन कर बीती 19 जुलाई को निर्माण कार्य का शिलान्यास कर दिया है। 60 गीगावाट क्षमता वाली यह परियोजना चीन के अब तक के सबसे बड़े बांध थ्री गॉर्जेस डैम से तीन गुनी बड़ी है। चीनी बांध यारलुंग सांगपो नदी के एक बड़े मोड़ पर बनेगी। इस नदी को भारत के अरुणाचल प्रदेश में सियांग और असम में ब्रह्मपुत्र कहा जाता है। इसे असम की जीवनरेखा समझा जाता है।
अब इस मुद्दे पर अरुणाचल प्रदेश की चिंता बढ़ रही है। मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस महीने की शुरुआत में पत्रकारों से कहा था, "यह सैन्य खतरे के बाद दूसरा सबसे बड़ा खतरा है। इसका इस्तेमाल वाटर बम के तौर पर किया जा सकता है। उनका कहना था कि चीन ने अगर इस परियोजना से अचानक पानी छोड़ दिया तो पूरा सियांग इलाका साफ हो जाएगा। इसके नतीजे बेहद खतरनाक होंगे।"
पर्वारणविदों का कहना है कि ब्रह्मपुत्र के पानी का करीब 30 फीसदी हिस्सा तिब्बत से और बाकी भारतीय इलाकों में बारिश और सहायक नदियों से आता है। ऐसे में इस बांध का सबसे प्रतिकूल और तात्कालिक असर अरुणाचल और खासकर सियांग इलाके में ही पड़ने की आशंका है। इसके अलावा इसके कारण भारतीय इलाके में प्रस्तावित और मौजूदा पनबिजली परियोजनाओं के लिए पानी की कमी हो सकती है।
पर्यावरणविद डॉ. सुरेश कुमार मोहंती डीडब्ल्यू को बताते हैं, "भारत में 133 गीगावाट पनबिजली उत्पादन की क्षमता है। इसमें से करीब 60 गीगावाट की क्षमता पूर्वोत्तर भारत में हैं। उसमें से 50 गीगावाट बिजली अकेले अरुणाल में पैदा हो सकती है।"
भारत की जवाबी परियोजना
चीन के इस विशाल बांध के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए भारत सरकार ने सियांग जिले में 11।2 गीगावाटा क्षमता वाली सियांग बहुउद्देशीय परियोजना का खाका तैयार किया है। हालांकि स्थानीय लोगों और संगठनों के भारी विरोध के कारण इसका काम आगे नहीं बढ़ सका है। काम पूरा होने के बाद यह देश की सबसे बड़ी परियोजना होगी। इसके निर्माण का जिम्मा नेशनल हाइड्रो पावर कॉर्पोरेशन (एनएचपीसी) को सौंपा गया है।
इस परियोजना से जुड़े एनएचपीसी के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "चीनी परियोजना के मुकाबले के लिए यह परियोजना बेहद अहम है। इसके जरिए नदी के पानी का मार्ग बदलने और कृत्रिम बाढ़ जैसे चीनी खतरों के असर को काफी कम किया जा सकता है। इस परियोजना का मकसद सिर्फ पनबिजली पैदा करना ही नहीं बल्कि चीनी बांध से पैदा होने वाले खतरों से निपटना भी है।"
लेकिन इस परियोजना का विरोध करने वाले सियांग इंडीजीनस फार्मर्स फोरम (एसआईएफएफ) के प्रमुख जेजांग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "भविष्य के किसी अनदेखे खतरे से निपटने के लिए तत्काल अपने लोगों को उजाड़ना कहां तक उचित है? सरकार को वैकल्पिक उपायों के बारे में सोचना चाहिए। यह परियोजना हमें अपने पूर्वजों की जमीन से विस्थापित कर देगी।"
अरुणाचल सरकार के एक अधिकारी ने डीडब्ल्यू से कहा, "इस मुद्दे पर हम केंद्र सरकार के साथ निरंतर संपर्क में हैं। सियांग परियोजना को आगे बढ़ाने के मुद्दे पर भी बातचीत चल रही है।" केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने बीती फरवरी में संसद में कहा था कि सरकार ब्रह्मपुत्र नदी पर होने वाली हर गतिविधि की सावधानीपूर्वक निगरानी कर रही है। राष्ट्र के हित में हरसंभव उपाय किए जाएंगे।
उन्होंने बताया था कि नदी के बेसिन में प्रस्तावित और मौजूदा पनबिजली परियोजनाओं के संभावित पारिस्थितिकी और सामाजिक-आर्थिक असर को कम करने के लिए एक प्रभावी रणनीति तैयार करने की खातिर ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों का अध्ययन भी किया गया है।
"चीनी बांध से फिलहाल खतरा नहीं"
इस बीच, चीनी परियोजना पर पूर्वोत्तर में बढ़ती चिंताओं के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि इससे तत्काल कोई खतरा नहीं है। उन्होंने गुवाहाटी में पत्रकारों से कहा, "ब्रह्मपुत्र एक ताकतवर नदी है और पानी के लिए पूरी तरह तिब्बत पर निर्भर नहीं है।"
उनकी दलील थी कि इस बांध के असर पर वैज्ञानिकों में भी आम राय नहीं है। एक गुट का कहना है कि ब्रह्मपुत्र के बहाव में बाधा पैदा होने की स्थिति में नदी में जलस्तर घटेगा जिसका असर जैव विविधता पर पड़ेगा। लेकिन दूसरे गुट का कहना है कि पानी कम होने से बाढ़ नियंत्रण में मदद मिलेगी। अब इनमें कौन सी दलील सही है, यह बाद में पता चलेगा।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू डीडब्ल्यू से कहते हैं, "सबसे बड़ी चिंता यह है कि चीन ने पानी के बंटवारे पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। ऐसे में वह अगर अचानक किसी दिन भारी मात्रा में पानी छोड़ देता है तो पूरा सियांग इलाका बर्बाद हो जाएगा और जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है।"
दूसरी ओर, विदेश मंत्रालय ने कहा है कि चीन को पहले ही इस मुद्दे पर भारत की चिंता से अवगत करा दिया गया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने दिल्ली में पत्रकारों से कहा, "सरकार इस मामले की निगरानी जारी रखेगी और अपने हितों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाएगी।"
पर्यावरणविदों का कहना है कि ब्रह्मपुत्र का पानी अरुणाचल और असम में खेती व पीने के पानी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। चीनी बांध के असर से भारत और बांग्लादेश में लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
पर्यावरणविद चैतन्य कुमार डेका डीडब्ल्यू से कहते हैं, "चीनी खतरे से निपटने के लिए सियांग इलाके के लोगों की आशंका को दूर कर उस बहुउद्देशीय परियोजना का काम तेज करना जरूरी है। आग लगने के बाद कुआं खोदने से कोई फायदा नहीं होगा। फिलहाल इस बहस में नहीं पड़ना चाहिए की चीनी परियोजना का कितना असर होगा, कितना नहीं। इससे निपटने के लिए समय रहते जरूरी उपाय किए जाने चाहिए।"