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ऑस्ट्रेलिया में अधर में लटके लाखों अस्थायी वीजाधारक

हमें फॉलो करें ऑस्ट्रेलिया में अधर में लटके लाखों अस्थायी वीजाधारक

DW

, गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021 (12:37 IST)
रिपोर्ट : विवेक कुमार
 
ऑस्ट्रेलिया के लाखों लोग ऐसे हैं जिनकी जिंदगी अधर में लटक गई है। अस्थायी वीजा पर रहने वाले इन लोगों के लिए सीमाएं बंद हैं तो उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा।
 
जसवंत कौर का बेटा अक्सर पूछता है कि घर कब जाएंगे। पंजाब में लुधियाना के पास एक गांव में रहने वालीं जसवंत कौर के 5 साल के बेटे के लिए घर का मतलब मेलबर्न है, जहां उसने होश संभाला था। उसके लिए घर का मतलब वहां है जहां उसके पापा हैं और जिनसे वह डेढ़ साल से नहीं मिला है।
 
जसवंत कौर के पास अपने बेटे के सवालों का कोई जवाब नहीं है। भारत की एक यात्रा उनकी जिंदगी को ऐसे उथल-पुथल देगी, उन्हें अंदाजा नहीं था। वह कहती हैं कि मैं तो बस अपनी बीमार मां को देखने आई थी। कहां पता था कि फिर वापस ही नहीं जा पाऊंगी।
 
जसवंत की कहानी
 
जसवंत कौर अपने पति के साथ ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रहती थीं, जहां वह नर्सिंग की पढ़ाई कर रही थीं। 12 मार्च 2020 को वह अपनी मां से मिलने ऑस्ट्रेलिया से भारत गईं। वह बताती हैं कि हम 2 बहनें ही हैं और दोनों ऑस्ट्रेलिया में थीं। मेरी मां यहां अकेली थी। उनकी तबीयत खराब हुई तो मैं 2 हफ्ते के लिए उनसे मिलने आई थी।
 
19 मार्च 2020 को ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान किया कि सीमाएं बंद की जा रही हैं और जो भी देश से बाहर है, 24 घंटे के भीतर लौट आए। लाखों लोगों में हड़बड़ी मच गई। भारत में ही उस वक्त दसियों हजार लोग ऑस्ट्रेलिया से गए हुए थे। वे सभी अपनी अपनी टिकट बदलवाने में लग गए। जसवंत उन चंद लोगों में से थीं जिन्हें बॉर्डर बंद होने से पहले टिकट मिल गई।
 
वह कहती हैं कि मैंने तुरंत अपनी टिकट की तारीख बदलवाई और एयरपोर्ट पहुंच गई। लेकिन मुझे विमान में चढ़ने नहीं दिया गया। अधिकारियों ने कहा कि जब तक मेरी फ्लाइट के मेलबर्न पहुंचने से ढाई घंटे पहले ही बॉर्डर बंद हो चुका होगा। इस आधार पर मुझे एयरपोर्ट से लौटा दिया गया।
 
तब से जसवंत कौर और उनका बेटा इंतजार ही करते रहे। इस बीच उनका स्टूडेंट वीजा खत्म हो गया। उन्होंने दोबारा वीजा अप्लाई किया लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें वीजा नहीं दिया। वह बताती हैं कि 2 बार कोशिश की लेकिन दोनों बार वीजा नहीं मिला। कहते हैं कि मेरी बहन वहां है, इसलिए मैं वापस नहीं लौटूंगी। पर मेरी बहन तो वहां तब भी थी, जब मैं पढ़ रही थी। तब तो मुझे वीजा मिल गया था। फिर अब क्या बदल गया है?
 
लाखों लोगों की कहानी
 
ऑस्ट्रेलिया आप्रवासियों का देश है। यहां 3 तरह के लोग रहते हैं। एक वे जो यहां के नागरिक हैं। वे या तो यहां जन्मे हैं या फिर यहां की नागरिकता ले चुके हैं। दूसरे वे जो यहां के स्थायी निवासी हैं। वे नागरिक तो किसी और देश के हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें स्थायी वीजा दे दिया है जिसके जरिए वे कहीं भी आ-जा सकते हैं। तीसरी श्रेणी में वे लोग हैं, जो अस्थायी वीजा पर ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। इनमें अस्थायी कामगार और छात्र बड़ी संख्या में हैं।
 
जसवंत कौर जैसे इन लोगों का जीवन कठिन होता है, क्योंकि इन्हें सरकारी सुविधाएं जैसे मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा आदि नहीं मिलतीं। कोविड के दौरान जब ऑस्ट्रेलिया ने सीमाएं बंद कीं और पूरे देश में लॉकडाउन हो गया तो इन अस्थायी वीजाधारकों की जिंदगी में उथल-पुथल मच गई। मेलबर्न स्थित माइग्रेशन एक्सपर्ट चमन प्रीत बताती हैं कि अस्थायी वीजाधारकों के लिए ये समय सबसे ज्यादा मुश्किल रहा, क्योंकि जो लोग अपने परिवारों आदि मिलने बाहर गए थे, वे वहीं रह गए। जो यहां थे, उनकी नौकरियां चली गईं और कुछ के लिए तो भूखे मरने की नौबत आ गई थी। ऐसे लाखों लोग हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 31 मार्च 2020 को देश में 2019 के मुकाबले 2,60,034 अस्थायी वीजाधारक कम थे, जो 10.7 प्रतिशत है।
 
लौटने का कोई विकल्प नहीं
 
सीमाएं बंद होने के बाद भी स्थायी वीजाधारकों और नागरिकों को तो लौटने का विकल्प मिला लेकिन अस्थायी वीजाधारकों के लिए सीमाएं अब तक बंद हैं। और अब जबकि ऑस्ट्रेलिया ने सीमाएं खोलने का फैसला किया है, तो भी अस्थायी वीजाधारकों को देश में आने की इजाजत नहीं दी गई है।
 
प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने पिछले हफ्ते देश की सीमाएं खोलने का ऐलान करते हुए कहा कि जिन राज्यों में टीकाकरण की दर 80 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी, वहां के स्थायी निवासी और नागरिक विदेशों से आ-जा सकेंगे। लेकिन उन लाखों लोगों का भविष्य अब भी अधर में है। बहुत से लोगों का ऑस्ट्रेलिया में रहने, पढ़ने या बस जाने का सपना टूट चुका है। जसवंत कौर के पति ने डेढ़ साल इंतजार के बाद भारत लौटने का फैसला किया है।
 
जसवंत कहती हैं कि कब तक इंतजार करेंगे। अब वीजा देने से इंकार ही कर दिया है। लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं। अब और तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, कम से कम हम लोग साथ तो होंगे।

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